सुप्रीम कोर्ट ने बिना चार्जशीट के UAPA के आरोपी को 2 साल की कस्टडी पर हैरानी जताई, ज़मानत दी

Update: 2025-12-05 09:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे आदमी को ज़मानत दी, जिस पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट (UAPA) के तहत केस दर्ज था, जिसे बिना चार्जशीट फाइल किए 2 साल से ज़्यादा समय तक कस्टडी में रखा गया था।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले की सुनवाई की। मटेरियल देखने के बाद जस्टिस मेहता ने बिना चार्जशीट फाइल किए याचिकाकर्ता को 2 साल से ज़्यादा समय तक कस्टडी में रखने पर असम के वकील को फटकार लगाई।

बेंच ने कहा कि UAPA की धारा 43D के तहत चार्जशीट फाइल करने का समय "कोर्ट के साफ आदेश से" ज़्यादा से ज़्यादा 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता को बिना चार्जशीट फाइल किए 2 साल से ज़्यादा कस्टडी में रखा गया।

बेंच ने कहा,

"UAPA की धारा 43D के तहत डिफ़ॉल्ट बेल के नियम नीचे दिए गए... ज़ाहिर है, उप-धारा (2) की आसान भाषा के हिसाब से अगर CrPC की धारा 167 में बताए गए 90 दिनों के अंदर जांच पूरी करना मुमकिन नहीं है तो कोर्ट के साफ़ आदेश से यह समय 180 दिन तक बढ़ाया जा सकता है। इस मामले में याचिकाकर्ता की कस्टडी 2 साल से ज़्यादा समय से है। इसलिए किसी भी तरह से इसे कानूनी नहीं कहा जा सकता।"

याचिकाकर्ता की 2 साल से ज़्यादा की "गैर-कानूनी कस्टडी" से नाराज़ होकर जस्टिस मेहता ने असम के स्टैंडिंग काउंसिल से कहा,

"चाहे कितने भी कड़े नियम हों, यह एक्ट (UAPA) ऐसी किसी भी कार्रवाई को नहीं रोकता, जिससे गैर-कानूनी कस्टडी की स्थिति पैदा हो। यह बहुत बुरा है! 2 साल से आप चार्जशीट फाइल नहीं कर रहे हैं और आदमी कस्टडी में है? आप खुद को देश की सबसे बड़ी एजेंसी मानते हैं?"

दावों के मुताबिक, याचिकाकर्ता को 23 जुलाई 2023 को असम पुलिस ने पकड़ा था, जब उसके पास 3.25 लाख रुपये के भारतीय नोट थे। इसके बाद जुलाई-अगस्त, 2023 में किसी समय उसे प्रोडक्शन वारंट के ज़रिए हिरासत में लिया गया। चार्जशीट 30 जुलाई, 2025 को फाइल की गई। UAPA के दो दूसरे मामलों में उसे ट्रायल कोर्ट से डिफ़ॉल्ट बेल मिल गई।

सुप्रीम कोर्ट से पहले उसने बेल के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। हालांकि, हाईकोर्ट का मानना ​​था कि याचिकाकर्ता गैर-कानूनी तरीके से भारत में आया और UAPA की धारा 43D(7) के तहत डिफ़ॉल्ट बेल का हकदार नहीं है। उसने यह कहते हुए बेल देने से मना कर दिया कि याचिकाकर्ता ने बेल पर रिहाई को सही ठहराने के लिए कोई खास हालात नहीं बताए।

Case Title: TONLONG KONYAK Versus THE STATE OF ASSAM, SLP(Crl) No. 10579/2025

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