"जज जितना मजबूत होगा, आरोप उतने ही बदतर होंगे": सुप्रीम कोर्ट ने जज के खिलाफ वकील के आचरण की निंदा की, अवमानना की सजा को बरकरार रखा

Update: 2022-05-23 14:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज कर दिया। मामले में एक वकील को अदालत की अवमानना ​​​​के लिए दंडित किया गया था।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अवकाश पीठ के समक्ष मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका दायर कि गई थी, जिसमें एक वकील को अवमानना ​​का दोषी ठहराया गया था। उसे 2 सप्ताह की कैद की सजा सुनाई गई थी। साथ ही एक साल के लिए उसे प्रैक्टिस करने से रोक दिया गया था। उस पर हाईकोर्ट द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट के निष्पादन में बाधा डालने का मामला था।

एडवोकेट के आचरण को "पूरी तरह से अवमानना" करार देते हुए, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने मौखिक रूप से कहा,

"आखिरकार आप जानते हैं कि जजों पर हमला किया जाता है। जिला अदालतों में जजों की कोई सुरक्षा नहीं है, कभी-कभी लाठी भांजने वाला पुलिसकर्मी भी नहीं होता है। यह पूरे देश में हो रहा है। आप बेबुनियाद आरोप नहीं लगा सकते। 100 वकीलों के इकट्ठा होने की कल्पना करें। वकील भी कानून की प्रक्रिया के अधीन हैं और हम सभी राज्य के नागरिक हैं। मैंने देखा है कि देश के अन्य हिस्सों में क्या होता है और जजों के खिलाफ आरोप लगाना फैशन बन रहा है। जज जितना मजबूत होगा, उतना ही बुरा आरोप होगा। यह बॉम्बे में हो रहा है, उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रहा है और अब मद्रास में भी हो रहा है।"

आक्षेपित फैसले में, जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस एए नक्कीकिरन की मद्रास हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एडवोकेट पीआर आदिकेशवन को दो सप्ताह के साधारण कारावास और 2,000 रुपये का जुर्माना की सजा दी थी। जुर्माना से चूकने पर एक सप्ताह के साधारण कारावास की सजा और दी गई थी।

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए वकील को मद्रास हाईकोर्ट में प्रैक्टिस नहीं करने का निर्देश दिया था।

हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पीठ ने अपने आदेश में कहा,

"आवेदक का व्यवहार और आचरण पूरी तरह से अवमाननापूर्ण था और जब उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया तो उसने न्याय में बाधा डालने का एक स्पष्ट प्रयास किया था। मद्रास हाईकोर्ट के सिंगल जज के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं। एक जज को अनुचित आधार पर अलग करने की भी मांग की गई थी। याचिकाकर्ता के मन में न्याय प्रशासन के लिए कोई सम्मान नहीं है। सजा को लागू करने को अनुपातहीन नहीं माना जा सकता है। इसलिए हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है।"

आज सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

जब मामला सुनवाई के लिए पेश किया गया तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "वह वकीलों के एक वर्ग से ताल्लुक रखते हैं जो पूरी तरह से अक्षम्य हैं। कानूनी पेशे पर एक धब्बा है। अब बहुत देर हो चुकी है। दो सप्ताह की कैद बहुत उदार है। उन्हें पश्चाताप करने दे, वह दो सप्ताह के लिए जेल में रहेंगे और एक साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।"

यह प्रस्तुत करते हुए कि आदिकेशवन ने बिना शर्त माफी भी मांगी थी, याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से एडवोकेट पर लगाई गई सजा को निलंबित करने का आग्रह किया। उन्होंने आगे मांग की कि उनके आचरण की हाईकोर्ट द्वारा निगरानी की जाए।

मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष मामला

मौजूदा मामले में जस्टिस पीटी आशा की एकल पीठ ने प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेंसी एक्ट, 1909 की धारा 9 से 13 के तहत शुरू की गई दिवाला कार्यवाही में अदालत के समक्ष पेश होने के लिए एडवोकेट पीआर आदिकेशवन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था। 31 मार्च को, जबकि एक पुलिस निरीक्षक ने वारंट को निष्पादित करने का प्रयास किया, न केवल आदिकेशवन बल्कि पचास से अधिक वकीलों द्वारा उनका घेराव किया गया। वकीलों ने हाईकोर्ट के आदेश को निष्पादित करने से रोका था।

यह देखते हुए कि आदिकेशवन कार्यवाही की पेंडेंसी से पूरी तरह अवगत थे, हालांकि जानबूझकर हाईकोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुए थे, न्यायालय ने वकीलों द्वारा की गई आपराधिक अवमानना ​​का संज्ञान लिया।

खंडपीठ ने जब स्वत: संज्ञान आपराधिक अवमानना ​​​​याचिका में आदेश सुरक्षित रखा था, उस समय आदिकेशवन ने दो उपआवेदन दायर किए थे। एक में जस्टिस पीटी आशा को इस मामले में गवाह के रूप में जांच करने के लिए समन जारी करने की मांग की गई थी और दूसरे में जस्टिस पीएन प्रकाश को मामले की सुनवाई से को अलग करने की मांग की गई थी। आवेदन प्राप्त होने पर, हालांकि हाईकोर्ट ने उन्हें जज को अलग करने के लिए वैध शिकायत पेश करने का समय दिया, हालांकि एडवोकेट ने ऐसा किया नहीं, जिसके बाद उन्हें सजा दी गई।

केस टाइटल: पीआर आदिकेशवन बनाम रजिस्ट्रार जनरल मद्रास हाईकोर्ट और अन्य | Crl.A. No 847/2022

हाईकोर्ट के आदेश को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News