S. 482 CrPC/S.528 BNSS | सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट के लिए फॉर-स्टेप टेस्ट निर्धारित किए

Update: 2025-09-09 10:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने CrPC की धारा 482 (अब BNSS की धारा 528) के तहत रद्द करने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करते समय हाईकोर्ट द्वारा विचार किए जाने वाले चरण निर्धारित किए।

निम्नलिखित चरणों से सामान्यतः किसी अभियुक्त द्वारा CrPC की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए दायर की गई रद्द करने की प्रार्थना की सत्यता का निर्धारण किया जाना चाहिए: -

(i) पहला चरण, क्या अभियुक्त द्वारा जिस सामग्री पर भरोसा किया गया- वह ठोस, उचित और निर्विवाद है, अर्थात, सामग्री उत्कृष्ट और त्रुटिहीन गुणवत्ता की है?

(ii) चरण दो, क्या अभियुक्त द्वारा जिस सामग्री पर भरोसा किया गया, वह अभियुक्त के विरुद्ध लगाए गए आरोपों में निहित दावों को खारिज कर देगी, अर्थात, वह सामग्री शिकायत में निहित तथ्यात्मक दावों को खारिज करने के लिए पर्याप्त है, अर्थात, वह सामग्री ऐसी है, जो किसी भी विवेकशील व्यक्ति को आरोपों के तथ्यात्मक आधार को खारिज करने और झूठा ठहराने के लिए प्रेरित करेगी।

(iii) चरण तीन, क्या अभियुक्त द्वारा जिस सामग्री पर भरोसा किया गया, उसका अभियोजन/शिकायतकर्ता द्वारा खंडन नहीं किया गया है; और/या वह सामग्री ऐसी है, जिसका अभियोजन/शिकायतकर्ता द्वारा उचित रूप से खंडन नहीं किया जा सकता है?

(iv) चरण चार, क्या मुकदमे को आगे बढ़ाने से न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और न्याय का उद्देश्य पूरा नहीं होगा?

अदालत ने स्पष्ट किया,

"यदि सभी चरणों का उत्तर सकारात्मक है तो हाईकोर्ट की न्यायिक अंतरात्मा को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए ऐसी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस शक्ति का प्रयोग, अभियुक्त के साथ न्याय करने के अलावा, अदालत के कीमती समय की बचत करेगा, जो अन्यथा ऐसे मुकदमे (और उससे उत्पन्न होने वाली कार्यवाही) में बर्बाद होता, खासकर जब यह स्पष्ट हो कि इससे अभियुक्त को दोषसिद्धि नहीं मिलेगी।"

मामला

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से उत्पन्न मामले की सुनवाई की, जिसमें शिकायतकर्ता द्वारा दायर शिकायत पर मजिस्ट्रेट द्वारा अपीलकर्ता को शादी का झांसा देकर बलात्कार के अपराध के लिए जारी समन रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता-अभियुक्त ने प्रस्तुत किया कि वह शिकायतकर्ता के साथ सहमति से संबंध में था, और जब कुछ गड़बड़ हुई तो उन्होंने अलग होने का फैसला किया। उन्होंने शिकायत की सत्यता पर सवाल उठाया क्योंकि यह 2014 में चार साल बाद दर्ज की गई थी।

हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली और शिकायत मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन को रद्द कर दिया।

अदालत ने कहा,

“हमारा मानना ​​है कि अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने समन आदेश पारित करने में त्रुटि की है। हाईकोर्ट ने भी धारा 482 के आवेदन को खारिज करते समय मामले के प्रासंगिक पहलुओं की अनदेखी की। शिकायत को सीधे पढ़ने पर विशेष रूप से आरोपों की प्रकृति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यह किसी भी तरह का विश्वास पैदा नहीं करता। इस बात का कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया गया कि प्रतिवादी नंबर 2 को शिकायत दर्ज करने में चार साल क्यों लगे।”

इसी संदर्भ में, न्यायालय ने याचिकाओं को रद्द करने का निर्णय लेते समय हाईकोर्ट के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु उपरोक्त कदम निर्धारित किए।

Cause Title: PRADEEP KUMAR KESARWANI VERSUS THE STATE OF UTTAR PRADESH & ANR.

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