सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय एफआईआर/शिकायत में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या सच्चाई की जांच नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-12-13 06:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए एक हाईकोर्ट एफआईआर/ शिकायत में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में कोई जांच शुरू नहीं कर सकता है।

जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा,

धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियां बहुत व्यापक हैं, लेकिन व्यापक शक्तियों के कारण अदालत को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

इस मामले में भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण और आवास और शहरी विकास विभाग, ओडिशा सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन कुछ लोक सेवकों के खिलाफ आरोप था कि उन्होंने वाणिज्यिक परिसर जिला केंद्र, चंद्रशेखरपुर, भुवनेश्वर में प्रमुख भूखंडों को गुप्त रूप से वितरित किया।

यह आरोप लगाया गया था कि सभी आरोपी व्यक्तियों ने धारा 120 बी आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (2) सहपठित धारा 13 (1) (डी) के तहत अपराध किया है। धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए , उड़ीसा हाईकोर्ट ने एफआईआर को खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपील में कहा कि मौजूदा मामले में आरोप दुर्भावनापूर्ण इरादे से शक्तियों के दुरुपयोग का उदाहरण है और आपराधिक साजिश के जरिए परिजनों को औनेपौने दामों पर भूखंडों के आवंटन का है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा है।

कोर्ट ने कहा,

यह सामान्य बात है कि रद्द करने की शक्ति का प्रयोग संयम से और सावधानी के साथ और दुर्लभ मामलों में किया जाना चाहिए।

कानून के तय प्रस्ताव के अनुसार, एक एफआईआर/शिकायत, जिसे रद्द करने की मांग की गई है, की जांच करते समय अदालत एफआईआर/शिकायत में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में कोई जांच शुरू नहीं कर सकती है।

शिकायत/एफआईआर का रद्द करना किसी सामान्य नियम के बजाय अपवाद होना चाहिए। आम तौर पर आपराधिक कार्यवाही को धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियों के प्रयोग के जर‌िए रद्द नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि पूरी तरह से जांच के बाद आरोप पत्र दायर किया गया हो।

सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आरोपमुक्त करने और/या आवेदन पर विचार करने के चरण में अदालतों को आरोपों और/या सबूतों के गुण-दोष पर विस्तार से विचार करने की आवश्यकता नहीं है, जैसे कि मिनी ट्रायल चल रहा हो। जैसा कि इस न्यायालय ने कहा है कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियां बहुत विस्तृत है, लेकिन व्यापक शक्ति के कारण न्यायालय को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। यह न्यायालय पर एक कठिन और अधिक मेहनत का कार्यभार आरोपित करता है।

अदालत ने कहा कि यदि कोई लोक सेवक अपने पद का दुरुपयोग करता है चाहे वह अपनी चूक या कृत्य से हो, और इसका परिणाम किसी व्यक्ति को चोट या सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हो तो ऐसे लोक सेवक के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

अदालत ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने पूर्वोक्त पहलुओं को बिल्कुल भी नहीं बताया है और जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों की विश्वसनीयता और वास्तविकता की जांच शुरू कर दी है, जैसे कि हाईकोर्ट मिनी ट्रायल कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।


केस शीर्षक: ओडिशा राज्य बनाम प्रतिमा मोहंती

सिटेशन: एलएल 2021 एससी 730

Case no.| Date : CrA 1455-­1456 OF 2021 | 11 Dec 2021

कोरम: जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्न


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