भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 को गैर-आस्तिक मुसलमानों पर लागू किया जा सकता है या नहीं, संसद ही तय कर सकती है : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि यह तय करना केवल संसद के अधिकार क्षेत्र में है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 को गैर-आस्तिक मुसलमानों पर लागू किया जाएगा या नहीं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ याचिकाकर्ता सफिया पीएम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ के बजाय 1925 के अधिनियम में उन मुसलमानों को शामिल करने की मांग की थी, जिन्होंने अपना धर्म त्याग दिया।
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भट्टी ने प्रस्तुत किया कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 58 के अनुसार, मुसलमानों को स्पष्ट रूप से कानून के दायरे से बाहर रखा गया।
उन्होंने कहा,
"याचिकाकर्ता, जो एक मुस्लिम है, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत आना चाहता है, लेकिन अधिनियम की स्पष्ट भाषा के कारण ऐसा संभव नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा,
"इस पर केवल संसद ही निर्णय ले सकती है।"
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए एडवोकेट प्रशांत पद्मनाभन ने न्यायालय को सूचित किया कि 1925 अधिनियम की धारा 58 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए एक नया आवेदन दायर किया गया।
इन दलीलों पर गौर करते हुए पीठ ने केंद्र सरकार को वर्तमान मामले में जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि न्यायालय ने अप्रैल में याचिका पर नोटिस जारी किया था।
केस टाइटल: सूफिया पीएम बनाम भारत संघ डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 135/2024