भरण पोषण उचित और यथार्थवादी होना चाहिए, एलिमनी का उद्देश्य जीवनसाथी को सजा देना नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-11-09 04:00 GMT

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अंतरिम/ स्थायी निर्वाह व्यय/ भरण पोषण देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आश्रित पति-पत्नी विवाह की विफलता के कारण निराश्रित न हो, न कि दूसरे पति-पत्नी/जीवनसाथी को सजा देना।

रजनेश बनाम नेहा मामले में बुधवार को अपना फैसला देते हुए जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि भरण पोषण (Maintenance) के लिए दी जाने वाली राशि उचित और यथार्थवादी होनी चाहिए, और दोनों में से किसी भी चरम सीमा से बचना चाहिए अर्थात पत्नी को दिए जाने वाले मैंटेनेंस में न तो इतना ज्यादा होना चाहिए जो प्रतिवादी के लिए दमनकारी और असहनीय हो जाए और न ही इतना कम होना चाहिए कि वह पत्नी को दरिद्रता की तरफ ले जाए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि पत्नी की ओर से उसकी जरूरतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की प्रवृत्ति बन गई है और दूसरी तरफ पति द्वारा अपनी वास्तविक आय को छुपाने की भी एक समान प्रवृत्ति है। अंतरिम मैंटेनेंस देने के लिए एक वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करने के लिए, पीठ ने यह भी निर्देश दिया है कि संबंधित फैमिली कोर्ट/जिला न्यायालय/ मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष लंबित कार्यवाही सहित मैंटेनेंस की सभी कार्यवाही में दोनों पक्षों द्वारा संपत्तियों और देनदारियों के बारे में सूचना देने वाला हलफनामा दायर किया जाए।

अदालत ने कहा कि इसी बीच अदालत को जिन कारकों पर विचार करना होगा,वो हैं- पक्षकारों का स्टे्टस, पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित आवश्यकता, क्या आवेदक शिक्षित और पेशेवर रूप से योग्य है?, क्या आवेदक के पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत है? क्या यह आय आवदेक को जीवन-यापन के उसी मानक को बनाए रखने में सक्षम करने के लिए पर्याप्त है, जैसा कि वह अपने वैवाहिक घर में जी रही थी?,क्या परिवार, बच्चों के पालन पोषण और परिवार के वयस्क सदस्यों की देखभाल के लिए पत्नी को अपने रोजगार के अवसरों का त्याग करना आवश्यक था?, एक गैर-कामकाजी पत्नी के लिए मुकदमेबाजी की उचित लागत आदि।

यह भी कहा गया है कि रखरखाव की उचित मात्रा के भुगतान का निर्देश देते समय अदालत को उपरोक्त के अलावा कुछ अन्य तथ्यों का भी ध्यान रखना होगा,जो इस प्रकार हैं-पति की वित्तीय क्षमता, उसकी वास्तविक आय, स्वयं के रख-रखाव के लिए उचित खर्च, और परिवार के आश्रित सदस्य जिन्हें वह कानून के तहत बनाए रखने के लिए बाध्य है और यदि उस पर कोई देनदारी है तो।

अदालत ने कहा कि संबंधित अदालतें आवेदक को देय रखरखाव की मात्रा निर्धारित करते समय निम्नलिखित मानदंडों को ध्यान में रखें

1-लंबी अवधि के एक विवाह में जहां पक्षकारों ने कई वर्षों के रिश्ते को समाप्त कर दिया है, यह ध्यान में रखा जाने वाला एक प्रासंगिक कारक होगा। रिश्ते की समाप्ति पर, अगर पत्नी शिक्षित और पेशेवर रूप से योग्य है, लेकिन उसे अपने रोजगार के अवसरों को छोड़ना पड़ा था ताकि वह परिवार की जरूरतों को, नाबालिग बच्चों को और परिवार के बड़े सदस्यों की प्राथमिक देखभाल पर ध्यान दे सकें तो इस कारक को उचित महत्व दिया जाना आवश्यक है। यह इस समकालीन समाज में विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि अत्यधिक प्रतिस्पर्धी उद्योग मानकों को देखते हुए पत्नी को अलग होने के बाद फिर से विपणन योग्य कौशल हासिल करने के लिए नए प्रशिक्षण से गुजरना होगा और नौकरी पाने के लिए खुद को फिर से प्रशिक्षित करना होगा। बढ़ती उम्र के साथ एक आश्रित पत्नी के लिए कई वर्षों के ब्रेक के बाद फिर से नौकरी शुरू करना मुश्किल काम होगा।

2-घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत निवास का आदेश पारित करते समय, मजिस्ट्रेट पक्षकारों की वित्तीय आवश्यकताओं और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादी को निर्देश दे सकता है कि वह किराया और अन्य खर्चों के लिए भुगतान करे।

3-यदि पत्नी कमा रही है, तो यह कारक पति द्वारा रखरखाव दिए जाने के मामले में एक बार या रोक के रूप में काम नहीं कर सकता है। न्यायालय को यह निर्धारित करना होगा कि क्या पत्नी की आय उसे वैवाहिक घर में उसके पति की जीवनशैली के अनुसार खुद को बनाए रखने में सक्षम बनाने के लिए पर्याप्त है। एक योग्य पति को अपनी पत्नी और बच्चों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त धन कमाने में सक्षम माना जाता है, और वह यह दावा नहीं कर सकता है कि वह अपने परिवार को बनाए रखने के लिए पर्याप्त रूप से कमाने की स्थिति में नहीं है।

4- यह जिम्मेदारी पति पर होती है कि वह आश्यक सामग्री के साथ स्थापित करें कि उसके पास इस बात के पर्याप्त आधार हैं कि वह परिवार को बनाए रखने में असमर्थ है, और अपने नियंत्रण से परे कारणों के चलते वह अपने कानूनी दायित्वों का निर्वहन नहीं कर पा रहा है। यदि पति अपनी आय की सही राशि का खुलासा नहीं करता है, तो न्यायालय द्वारा उसके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

5-बाल सहायता प्रदान करते समय बच्चे के रहन-सहन के खर्च,जिसमें भोजन, कपड़े, निवास, चिकित्सा व्यय, बच्चों की शिक्षा के खर्च शामिल होंगे। वहीं बुनियादी शिक्षा के पूरक जैसे अतिरिक्त कोचिंग क्लासेस या किसी भी अन्य व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आदि पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। यद्यपि, इन पाठ्येतर/कोचिंग कक्षाओं के लिए प्रदान की जाने वाली राशि उचित होनी चाहिए, न कि वह अत्यधिक असाधारण राशि, जिसके लिए दावा किया जा रहा है या किया जा सकता है। बच्चों की शिक्षा खर्च सामान्यतः पिता द्वारा वहन किया जाना चाहिए। यदि पत्नी काम कर रही है और पर्याप्त रूप से कमा रही है, तो खर्च को समान रूप से पार्टियों के बीच साझा किया जा सकता है।

6-जीवनसाथी की गंभीर विकलांगता या बीमार स्वास्थ्य, विवाह से पैदा हुए बच्चे/आश्रित रिश्तेदार, जिन्हें निरंतर देखभाल और आवर्तक व्यय की आवश्यकता होती है, रखरखाव को निर्धारित करते समय एक प्रासंगिक विचार होगा।

कोर्ट ने कहा कि

 हालांकि, डी.वी. अधिनियम और सीआरपीसी की धारा 125, दोनों के तहत ही रखरखाव मांगने पर कोई रोक नहीं है। परंतु पति को प्रत्येक कार्यवाही के तहत रखरखाव का भुगतान करने के लिए निर्देशित करना उचित नहीं होगा। इसलिए पहली कार्यवाही के दौरान रखरखाव का भुगतान करने का निर्देश दिए जाने के बाद दूसरी कार्यवाही में रखरखाव की राशि का निर्धारण करते समय सिविल कोर्ट/फैमिली कोर्ट को पहली कार्यवाही के दौरान दिए गए रखरखाव की राशि को ध्यान में रखना होगा और उसी अनुसार रखरखाव की राशि का निर्धारण करना होगा। न्यायालय ने यह भी माना है कि सभी अधिनियमों के तहत रखरखाव का दावा करने का अधिकार आवेदन दाखिल करने की तिथि से शुरू होना चाहिए।

 केस-रजनेश बनाम नेहा,सीआर.ए नंबर 730/2020

कोरम-जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी

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