"यदि वह बालिग होती तो क्या आप उसके खिलाफ यौन अपराध करने के हकदार हैं? सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी की ज़मानत अर्ज़ी खारिज की
"क्या आप किसी बालिग के खिलाफ यौन अपराध करने के हकदार हैं? भले ही वह नाबालिग हो या बालिग हो, क्या आप उस पर यौन अपराध करने के हकदार हैं?" नाबालिग लड़की से रेप के आरोपी व्यक्ति को ज़मानत देने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह टिप्पणी की।
यह टिप्पणी आरोपी की ओर से की गई दलीलों के जवाब में आई जब उसकी ओर से दलील के रूप में कहा गया कि जो हुआ उसमें नाबालिग लड़की की सहमति थी।
सीजेआई एनवी रमाना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली आरोपी की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसे जमानत देने से इनकार किया गया था।
याचिकाकर्ता पर 16 साल की एक नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने का आरोप है। हालांकि लड़की के पिता के मुताबिक लड़की की उम्र 14 साल है।
सुनवाई के दौरान आरोपी की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि उसने अपने इस तर्क का समर्थन करने के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों में विभिन्न विचारों का हवाला देने की मांग की कि लड़की सहमति देने वाले पक्षकार के रूप में है।
बेंच ने पूछा,
"आप तर्क दे रहे हैं कि लड़की एक सहमति देने वाली पार्टी थी। क्या आप हमारे सामने बहस करना चाहते हैं? उसकी उम्र क्या थी? क्या वह सहमति देने में सक्षम थी?"
वकील ने कहा,
"वह 16 साल 1 महीने की है।"
"कृपया अपने आप को सही करें। उसके पिता के अनुसार, उसकी जन्म तिथि 1 जनवरी 2007 है।"
वकील ने कहा कि लड़की के स्कूल के रिकॉर्ड के मुताबिक उसकी उम्र 16 साल एक महीने की बताई गई है।
सीजेआई रमाना ने कहा,
"16 या 17 साल इस मामले में जमानत देने का कोई सवाल ही नहीं है।"
आरोपी के वकील ने आगे तर्क दिया कि इसी तरह के एक मामले में हिमाचल हाईकोर्ट ने जमानत दी थी, जहां लड़की 16 साल की थी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा,
"हम हाईकोर्ट से चिंतित नहीं हैं, इस मुद्दे पर हमारे विचार बहुत स्पष्ट और सुसंगत हैं।"
सीजेआई ने कहा,
"आप बेवजह मामले को उलझा रहे हैं। आप एक नाबालिग लड़की का बलात्कार करते हैं और तीन महीने बाद आप जमानत चाहते हैं?"
सीजेआई ने टिप्पणी की,
" यदि वह बालिग होती तो क्या आप उसके खिलाफ भी यौन अपराध करने के हकदार हैं? भले ही वह नाबालिग हो या बालिग, क्या आप इसके हकदार हैं?"
जब वकील ने आगे बहस करने का प्रयास किया तो मुख्य न्यायाधीश ने अर्ज़ी खारिज कर दी। " बहस मत करो, वरना हम जुर्माना लगाएंगे, आप भुगतान करने को तैयार हैं?"
वर्तमान विशेष अनुमति याचिका राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा आरोपी को जमानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता की यह दलील प्रासंगिक नहीं है कि यौन संबंध सहमति से थे, क्योंकि पीड़िता नाबालिग होने के कारण सहमति देने के लिए सक्षम नहीं है।
हालांकि निचली अदालत द्वारा पीड़िता के बयान दर्ज करने के बाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को नई जमानत याचिका दायर करने की छूट दी थी।
केस शीर्षक: देवरम बनाम राजस्थान राज्य