अदालत सजा के निलंबन की मांग के लिए दोषी पर समय आधारित प्रतिबंध नहीं लगा सकती: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-02-05 01:47 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सजा के निष्पादन के निलंबन की राहत और जमानत पर रिहा होना आरोपी का वैधानिक अधिकार है, उस पर न्यायिक आदेशों के जरिए समय विश‌िष्ट प्रतिबंध (time-specific debarment) नहीं लगाया जा सकता है।

"... इस प्रकार का समय-विशिष्ट प्रतिबंध कानून द्वारा परिकल्पित नहीं हैं।"

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रमनाथ की खंडपीठ पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक आदेश पर विचार कर रही थी, जिसने याचिकाकर्ता की उस प्रार्थना को खारिज कर दिया था जिसमें दिए गए समय पर सजा के निष्पादन को निलंबित करने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ता को सत्र न्यायालय, नारनौल ने दोषी ठहराया था। हत्या के लिए उसे आजीवन कारावास और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 (1-बी) (ए) के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक साल के कारावास की सजा सुनाई थी। दोनों दोनों मामलों में जुर्माना लगाया गया था। याचिकाकर्ता ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर किया था, और निम्न दो बिंदुओं पर सजा को निलंबित करने की मांग की थी-

-याचिकाकर्ता कथित अपराध के समय उपस्थित नहीं था और उसे गलत तरीके से फंसाया गया है; और

-ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर ठीक से विचार नहीं किया।

आक्षेपित आदेश के अवलोकन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आवेदन को समय से पहले मानते हुए, हाईकोर्ट ने एक अवलोकन किया था कि याचिकाकर्ता दोष सिद्ध होने की तारीख से कम से कम तीन वर्ष की अवधि से पहले न्यायालय से संपर्क नहीं करेगा।

हाईकोर्ट के आदेश का प्रासंगिक भाग इस प्रकार है -

"जहां तक CRM-5492- 2020 in CRA-D-103 ऑफ 2020 में फाइल आवेदन का संबंध है, हमारा विचार है कि आवेदन समय पूर्व प्रकृति का है और इसे एक अवलोकन के साथ खारिज करने की आवश्यकता है कि वह दोषसिद्धि की तारीख से कम से कम तीन वर्ष की अवधि से पहले इस अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाएगा।"

उपरोक्त अवलोकन को रद्द करते हुए बेंच ने स्पष्ट किया कि सजा के निष्पादन को निलंबित करने और जमानत पर रिहा होने की मांग वैधानिक अधिकार हैं। इसलिए, न्यायिक आदेश द्वारा ऐसा कोई समय-विशिष्ट प्रतिबंध निर्धारित नहीं किया जा सकता है।

केस शीर्षक: कृष्ण कुमार बनाम हरियाणा राज्य SLP (Crl) No. 612 of 2022

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 126

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