जमानत की शर्त | जमानत देने के लिए बैंक गारंटी के प्री-डिपॉजिट की मांग मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-04-26 04:03 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते समय बैंक गारंटी देने की पूर्व शर्त लगाई थी। खंडपीठ ने इस तरह की प्रथा को अस्थिर और बुरा माना है।

जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने मखीजानी पुष्पक हरीश बनाम गुजरात राज्य में दायर अपील का फैसला सुनाते हुए कहा कि जमानत देते समय डिपॉजिट नहीं लगाया जा सकता।

इस मामले में भी कोर्ट ने अपने पिछले समान मामलों में लिए गए अपने रुख से हटने से इनकार कर दिया है, जिसमें न्यायालय ने पूर्व-स्थिति की स्थिति रखी है।

मामले की पृष्ठभूमि

केंद्रीय जीएसटी और केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अधीक्षक (रोकथाम) ने माखीजानी पुष्पक हरीश (अपीलकर्ता) के खिलाफ केंद्रीय सामान और सेवा अधिनियम, 2017 (सीजीएसटी अधिनियम) की धारा 69 और धारा 132 (1) (ए) के तहत शिकायत दर्ज की। शिकायत के आलोक में आरोपित को गिरफ्तार कर लिया गया।

अपीलकर्ता ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 437 के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष जमानत की मांग करते हुए आवेदन दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को कुछ शर्तें लगाते हुए जमानत दे दी। जमानत की शर्तों में से एक अपीलकर्ता द्वारा बैंक गारंटी के रूप में तीन करोड़ रुपये की पूर्व जमा राशि है।

अपीलकर्ता ने तीन करोड़ रुपये की बैंक गारंटी पूर्व जमा करने की जमानत शर्त को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने 12.01.2023 को तीन करोड़ रुपये की बैंक गारंटी देने की शर्त को घटाकर 1.5 करोड़ रुपये कर दिया। अपीलार्थी ने हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

बैंक गारंटी के पूर्व-जमा की शर्त टिकने योग्य नहीं है

खंडपीठ ने कहा कि कई मामलों में राशि जमा करने या बैंक गारंटी प्रस्तुत करने की पूर्व शर्त पर विचार किया गया, जिसमें पूर्व जमा की स्थिति को खराब माना गया।

सुभाष चौहान बनाम भारत संघ, आपराधिक अपील नंबर 186/2023 और अनातभाई अशोकभाई शाह बनाम गुजरात राज्य और अन्य, आपराधिक अपील नंबर 523/2023 में समान मामलों का संदर्भ दिया गया, जिसमें न्यायालय ने अपीलकर्ताओं को जमानत देते समय जमा की शर्त लगाते हुए हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया।

सुभाष चौहान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में भारत संघ/राज्य की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने रिकॉर्ड पर कहा कि जमानत देते समय ऐसी शर्त नहीं लगाई जा सकती।

तदनुसार, बेंच ने निम्नानुसार आयोजित किया,

"वर्तमान मामले के तथ्य पूर्वोक्त दो आपराधिक अपीलों के तथ्यों के समान हैं, हम उपरोक्त दो मामलों में लिए गए दृष्टिकोण से विचलित होने का कोई कारण नहीं देखते हैं। पूर्वोक्त निर्णयों और आदेशों में दिए गए कारणों के बाद हमारी सुविचारित राय है कि हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई बैंक गारंटी प्रस्तुत करने की पूर्व-शर्त बनाए रखने के लिए उत्तरदायी नहीं है। इसलिए इसे रद्द किया जाता।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत देने के लिए लगाई गई बाकी शर्तें हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखी गईं।

बैंक गारंटी प्रस्तुत करने की पूर्व शर्त को अस्थिर घोषित किया गया। तदनुसार, खंडपीठ द्वारा अलग कर दिया गया। ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई शेष शर्तों को बरकरार रखा गया। खंडपीठ ने अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: माखीजानी पुष्पक हरीश बनाम गुजरात राज्य

साइटेशन: आपराधिक अपील नंबर 1193/2023

अपीलकर्ता के वकील: भरत राय चंदानी, दीपक कुमार खोखर, अनीश मित्तल, सोनिया अबरोल और प्रतिवादी के वकील: दीपानविता प्रियंका, स्वाति घिल्डियाल, देवयानी भट्ट।

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




Tags:    

Similar News