सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया ने जस्टिस रंजीत सिंह पर की गई टिप्पणी के लिए खेद प्रकट किया, सुप्रीम कोर्ट ने अपील का निपटारा किया

Update: 2025-04-04 08:35 GMT
सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया ने जस्टिस रंजीत सिंह पर की गई टिप्पणी के लिए खेद प्रकट किया, सुप्रीम कोर्ट ने अपील का निपटारा किया

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (2 अप्रैल) को जस्टिस (रिटायर) रंजीत सिंह द्वारा शिरोमणि अकाली दल के पूर्व प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और पंजाब के पूर्व विधायक बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ दायर याचिका का निपटारा किया, जिसमें उन्होंने 2017 में पंजाब में हुई बेअदबी की घटनाओं की जांच के लिए जस्टिस सिंह की अध्यक्षता वाले आयोग के खिलाफ कथित तौर पर टिप्पणी की थी।

न्यायालय ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि बादल और मजीठिया ने जस्टिस सिंह के समक्ष खेद प्रकट किया है।

इससे पहले, न्यायालय ने मामले का सौहार्दपूर्ण समाधान सुझाते हुए प्रतिवादियों को जस्टिस सिंह के समक्ष खेद प्रकट करने का सुझाव दिया। इसके बाद जब मामले की सुनवाई जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ के समक्ष हुई तो सीनियर एडवोकेट पुनीत बाली ने न्यायालय को बताया कि पिछले वर्ष 19 नवंबर के आदेश के अनुसार प्रतिवादी ने माफी मांगने का निर्णय लिया।

हालांकि, सीनियर एडवोकेट निधेश गुप्ता ने कहा कि हलफनामे में केवल इतना लिखा कि "अगर कोई दुख पहुंचा है तो हमें खेद है"। उन्होंने कहा कि उन्हें आरोप वापस ले लेने चाहिए। बाली ने जवाब दिया कि आरोप वापस लेने का मतलब होगा कि प्रतिवादियों ने आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर ली। उन्होंने कहा कि गुप्ता सुझाव दे सकते हैं कि हलफनामे को कैसे लिखा जाना चाहिए और यह उसी के अनुसार किया जा सकता है।

हलफनामा पढ़ने के बाद खंडपीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि दिए गए बयान को वापस ले लिया गया। तदनुसार, याचिका का निपटारा कर दिया गया।

विषय-वस्तु के लिए जस्टिस सिंह ने एक आयोग का नेतृत्व किया, जिसने जून 2015 और मार्च, 2017 के बीच पंजाब में हुई बेअदबी (और पुलिस गोलीबारी) की विभिन्न घटनाओं की जांच की। अपने निष्कर्षों में आयोग ने डेरा सच्चा सौदा (और उसके अनुयायियों) को फरीदकोट के गुरुद्वारे से गुरु ग्रंथ साहिब की चोरी और अपवित्रता और अपमानजनक पोस्टर लगाने के लिए जिम्मेदार ठहराया। रिपोर्ट में आगे बेअदबी विरोधी प्रदर्शनकारियों पर पुलिस कार्रवाई के लिए SAD संरक्षक प्रकाश सिंह बादल को दोषी ठहराया गया।

अगस्त, 2018 में बादल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि जस्टिस सिंह के पास कोई कानूनी योग्यता नहीं है और आयोग की रिपोर्ट तैयार करने में गवाहों के बयानों सहित दस्तावेजों को गढ़ने का आरोप लगाया। कुछ दिनों बाद मजीठिया सहित शिअद नेताओं ने पंजाब विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया, जहां आयोग की रिपोर्ट का कथित तौर पर मज़ाक उड़ाया गया।

इन घटनाओं के बाद जस्टिस सिंह ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष जांच आयोग अधिनियम की धारा 10 ए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज की, जिसमें बादल और मजीठिया पर आयोग की रिपोर्ट के संबंध में उनके खिलाफ अपमानजनक बयान देने का आरोप लगाया। जवाब में बादल और मजीठिया ने तर्क दिया कि अधिनियम के तहत शिकायत तभी सुनवाई योग्य है जब इसे आयोग के सदस्य द्वारा दायर किया गया हो।

हालांकि, जब जस्टिस रंजीत सिंह द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष शिकायत दायर की गई, तब आयोग का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। उन्होंने आगे कहा कि रिटायर जज द्वारा दायर हलफनामे गलत है, क्योंकि वे यह खुलासा करने में विफल रहे कि वह आयोग के सदस्य/अध्यक्ष नहीं रहे। 8 नवंबर, 2019 को हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद जस्टिस सिंह की शिकायत खारिज कर दी।

गौरतलब है कि मामले की सुनवाई करने वाले जज उस समय ट्रांसफर पर हैं, जब आदेश सुरक्षित रखे गए। जस्टिस सिंह ने इस मामले में याचिका दायर की, जिसमें मामले के फैसले में की गई जल्दबाजी का विरोध किया गया, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट द्वारा उनकी शिकायत खारिज करने को चुनौती देते हुए जस्टिस सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने जनवरी, 2020 में बादल और मजीठिया को नोटिस जारी किए।

केस टाइटल: जस्टिस (जस्टिस) रंजीत सिंह बनाम सुखबीर सिंह बादल और अन्य | सीआरएल.ए. नंबर 1982/2019

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