सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति वंशानुगत आधार पर नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-04-07 13:17 GMT
सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति वंशानुगत आधार पर नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सार्वजनिक सेवा में वंशानुगत नियुक्तियों के खिलाफ फैसला सुनाया।

कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति वंशानुगत आधार पर नहीं की जा सकती और ऐसी नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करती है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने ऐसा मानते हुए पटना हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें चौकीदारों के पद पर वंशानुगत सार्वजनिक नियुक्तियों की अनुमति देने वाले राज्य सरकार के नियम को असंवैधानिक करार दिया गया था।

बिहार चौकीदारी संवर्ग (संशोधन) नियम, 2014 के नियम 5(7) के प्रावधान (ए) में रिटायर चौकीदार को अपने स्थान पर नियुक्ति के लिए आश्रित रिश्तेदारों को नामित करने की अनुमति दी गई।

पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस नियम को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) का उल्लंघन करने वाला बताते हुए खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट के निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्ता-बिहार राज्य दफादार चौकीदार पंचायत (मगध प्रमंडल) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि करते हुए जस्टिस मनमोहन द्वारा लिखित निर्णय में मंजीत बनाम भारत संघ, (2021) 14 एससीसी 48 और मुख्य कार्मिक अधिकारी, दक्षिणी रेलवे बनाम ए. निशांत जॉर्ज, (2022) 11 एससीसी 678 के हालिया मामलों का संदर्भ दिया गया, जहां न्यायालय ने रिटायर कर्मचारियों के बच्चों को नौकरी पाने की अनुमति देने वाली रेलवे योजना रद्द कर दी, इसे "पिछले दरवाजे से प्रवेश" और संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करार दिया।

गजुला दशरथ राम राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, एआईआर 1961 एससी 564 के मामले में संविधान पीठ के फैसले का भी संदर्भ दिया गया, जहां मद्रास वंशानुगत ग्राम कार्यालय अधिनियम, 1895 की धारा 6(1) की वैधता की जांच करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका दायर की गई, जिसके तहत कलेक्टर को उन लोगों में से नियुक्तियां करने की आवश्यकता थी, जिनके परिवार पहले इस पद पर रह चुके हैं।

गजुला दशरथ राम राव के मामले में न्यायालय ने रिट याचिका स्वीकार की और प्रतिवादी की नियुक्ति का आदेश रद्द कर दिया, जिसकी ग्राम अधिकारी के रूप में नियुक्ति सिर्फ इसलिए की गई, क्योंकि वह उस व्यक्ति का पारिवारिक सदस्य है, जो पहले इस पद पर रह चुका है। इस संबंध में न्यायालय ने काला सिंह बनाम भारत संघ, 2016 एससीसी ऑनलाइन पीएंडएच 19387 के मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले का भी संदर्भ दिया, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत (जो उस समय जज थे) के माध्यम से बोलते हुए खंडपीठ ने रेलवे में वंशानुगत नियुक्तियों की अनुमति देने वाली योजना के माध्यम से की गई नियुक्ति खारिज कर दी थी, यह देखते हुए कि रेलवे द्वारा सार्वजनिक रोजगार में पिछले दरवाजे से प्रवेश करने के लिए विकसित की गई यह युक्ति सार्वजनिक रोजगार में समानता के विरुद्ध है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करती है।

इन सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने कहा,

"भारत का संविधान उत्तराधिकार द्वारा सार्वजनिक सेवा में नियुक्ति को रोकता है। दूसरे शब्दों में, रोजगार इस तरह से नहीं होना चाहिए जैसे कि यह वंशानुगत हो।"

सार्वजनिक रोजगार में समान अवसरों के सिद्धांत पर विस्तार से चर्चा करते हुए न्यायालय ने कहा:

"हमारे संवैधानिक न्यायशास्त्र में दो प्रस्ताव अब बहस योग्य नहीं हैं। एक यह है कि सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता होनी चाहिए और दूसरा यह कि कोई भी कानून, जो सभी को समान अवसर दिए बिना सार्वजनिक सेवा में प्रवेश की अनुमति देता है, अनुच्छेद 16 का उल्लंघन होगा और उसे गैरकानूनी घोषित किया जा सकता है, जब तक कि उचित वर्गीकरण, जो वैध भी हो, के अस्तित्व को नहीं दिखाया जा सकता।"

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक रोजगार के लिए पहले (i) पात्र उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित करने के लिए उचित विज्ञापन जारी करना होगा या/और रोजगार कार्यालयों से प्रथम दृष्टया पात्र उम्मीदवारों के नाम मांगे जाने होंगे, (ii) अपात्र उम्मीदवारों को अलग रखकर पात्र उम्मीदवारों की स्क्रीनिंग करनी होगी, (iii) प्रासंगिक कानून के अनुसार गठित चयनकर्ताओं के निकाय के साथ निष्पक्षता और पारदर्शिता की कसौटी पर खरा उतरने वाली चयन प्रक्रिया का संचालन करना होगा, (iv) उम्मीदवारों की परस्पर योग्यता का उचित मूल्यांकन करने के बाद निष्पक्ष और पक्षपात रहित चयन करना होगा, (v) योग्यता के अनुसार उपयुक्त पाए गए उम्मीदवारों की एक योग्यता सूची तैयार करना और उनके नामों को आरक्षण के नियमों के अनुसार उचित सम्मान के साथ व्यवस्थित करना होगा, (vi) यदि शासन के नियमों के अनुसार ऐसा आवश्यक हो तो उम्मीदवारों की प्रतीक्षा सूची तैयार करना होगा और (vii) यदि ऐसी प्रतीक्षा सूची संचालित करने का अवसर उत्पन्न होता है तो योग्यता को उचित सम्मान देते हुए योग्यता सूची के साथ-साथ प्रतीक्षा सूची से भी नियुक्तियां देने की कार्यवाही करनी होगी।

अनुकंपा नियुक्ति, मृत्यु-काल में नियुक्ति, सुरक्षात्मक भेदभाव योजना आदि के लिए सीमित अपवाद हैं।

उपर्युक्त के संदर्भ में न्यायालय ने यह देखते हुए अपील खारिज कर दी कि हाईकोर्ट ने आपत्तिजनक नियम को असंवैधानिक करार देते हुए कोई गलती नहीं की।

केस टाइटल: बिहार राज्य दफादार चौकीदार पंचायत (मगध प्रमंडल) बनाम बिहार राज्य और अन्य

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