सुप्रीम कोर्ट ने सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की यूपी पुलिस की प्रवृत्ति पर लगाई फटकार

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Update: 2025-04-07 11:46 GMT
सुप्रीम कोर्ट ने सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की यूपी पुलिस की प्रवृत्ति पर लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने आज (7 अप्रैल) उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बार-बार सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति पर नाराज़गी जताई और इसे "कानून के शासन का पूर्ण पतन" करार दिया। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि यह प्रथा जारी रही तो उत्तर प्रदेश राज्य पर जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही, कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को यह निर्देश दिया कि वे शरीफ अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में दिए गए निर्देशों के अनुपालन में उठाए गए कदमों पर एक हलफनामा दाखिल करें। इस मामले में कोर्ट ने यह अनिवार्य कर दिया था कि जांच अधिकारी चार्जशीट में स्पष्ट और पूर्ण प्रविष्टियाँ दर्ज करें।

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता पर आपराधिक विश्वासघात, आपराधिक डराने-धमकाने और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए गए थे, साथ ही उनके खिलाफ NI Act की धारा 138 के तहत चेक बाउंस का मामला भी चल रहा था, जो कथित तौर पर शिकायतकर्ता को कुछ रकम वापस न करने से संबंधित था।

चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि यह मामला मूलतः एक सिविल लेन-देन से जुड़ा है और इस तरह के विवादों को आपराधिक मामले बनाना गलत है। उन्होंने यूपी पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा, “यह गलत है! यूपी में हो क्या रहा है? हर दिन सिविल सूट को क्रिमिनल केस बना दिया जाता है। यह ठीक नहीं है! यह तो कानून के शासन का पूरी तरह से टूटना है!”

सुप्रीम कोर्ट ने शरीफ अहमद व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में दिए गए अपने निर्देशों का पालन न करने पर जांच अधिकारी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी दी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने मौखिक रूप से कहा, "मैं जांच अधिकारी को तलब करूंगा, संभवतः उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करूंगा।"

शरीफ अहमद मामले में जस्टिस खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने यह अनिवार्य किया था कि जांच अधिकारी आरोप पत्र में सभी कॉलम स्पष्ट और पूर्ण रूप से भरें ताकि अदालत यह जान सके कि किस अभियुक्त ने कौन-सा अपराध किया और किन साक्ष्यों के आधार पर मामला बनाया गया है। साथ ही, धारा 161 के तहत दर्ज बयान और संबंधित दस्तावेजों को गवाहों की सूची के साथ संलग्न करना अनिवार्य किया गया था।

चीफ जस्टिस ने कहा कि मौजूदा मामले में जांच अधिकारी को यह स्पष्ट करना होगा कि कैसे एक आपराधिक मामला बनता है, केवल पैसा न लौटाने को अपराध नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा, "हमने स्पष्ट किया था कि केस डायरी में विवरण होना चाहिए। अगर केस डायरी जमा की जाती है तो जांच अधिकारी को गवाही देनी होगी। हम निर्देश देंगे कि वह गवाही दे। यह तरीका नहीं है चार्जशीट दाखिल करने का।"

राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में FIR रद्द करने की मांग नहीं की थी, लेकिन CJI ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा, "यह अजीब है कि यूपी में यह रोज़ हो रहा है। वकील शायद भूल गए हैं कि सिविल क्षेत्राधिकार भी कोई चीज होती है।"

चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि वह उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को इस मुद्दे पर पहल करने के निर्देश देंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि शरीफ अहमद के निर्णय का पालन हो।

DGP और केस के IO को अब 2 हफ्तों के भीतर हलफनामा दायर करना होगा जिसमें उन्हें यह स्पष्ट करना होगा कि उन्होंने कोर्ट के निर्देशों का पालन किया या नहीं। साथ ही, ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही को सभी अभियुक्तों के विरुद्ध स्थगित कर दिया गया है, हालांकि NI Act की धारा 138 (चेक बाउंस) से संबंधित कार्यवाही जारी रहेगी।

चीफ जस्टिस ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि निर्देशों का पालन नहीं किया गया, तो राज्य सरकार पर लागत लगाई जाएगी ताकि अनुपालन सुनिश्चित हो सके। अब यह मामला मई में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

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