भारत का संविधान, 1950 अनुच्छेद 124 के तहत "सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) की स्थापना और संविधान" की व्यवस्था करता है। अनुच्छेद 124 (1) के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश और ऐसे अन्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
अनुच्छेद 124 (2) के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सहित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की शर्तें हैं:
1. "सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा उसके हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा नियुक्त किया जाएगा…"
2."…सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद, जिसे राष्ट्रपति इस उद्देश्य के लिए आवश्यक समझें…।"
3. "… और वह तब तक पद पर रह सकते हैं, जब तक पैंसठ वर्ष के नहीं हो जाते।"
अनुच्छेद 124 (2) ("मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश से हमेशा सलाह ली जाएगी।") की पहली शर्त सीजेआई को शामिल करने की धारणा को वाक्यांश "सुप्रीम कोर्ट का प्रत्येक जज" से स्पष्ट करता है। अनुच्छेद 124 (3) के तहत,सीजेआई सहित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता मानदंड निम्नलिखित हैं:
1. भारत का नागरिक
2. या तो निम्न में से:
3. कम से कम पांच साल एक उच्च न्यायालय में या ऐसे दो न्यायालयों में लगातार न्यायाधीश हो
4. या कम से कम दस साल उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायलयों में लगातर वकालत कर चुका हो
5. राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित न्यायविद
अनुच्छेद 124 (6) सीजेआई सहित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए नियुक्ति के बाद के आदेशों को तय करता है अर्थात "प्रत्येक व्यक्ति, जिसे सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया है, इससे पहले कि वह अपने कार्यालय में प्रवेश करे, राष्ट्रपति के समक्ष या उनके द्वारा अपने स्थान पर नियुक्त किसी व्यक्ति से, तीसरी अनुसूची में इस उद्देश्य के लिए निर्धारित प्रपत्र के अनुसार शपथ ले।
डिपार्टमेंट ऑप जस्टिस की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित ज्ञापन में प्रदर्शित "भारत के मुख्य न्यायाधीश और भारत की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए निम्न अर्हताएं हैं:
1. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश 2. कार्यालय संभालने के लिए उपयुक्त - यहां संविधान के अनुच्छेद 124 (2) में परिकल्पित अन्य न्यायाधीशों के साथ परामर्श भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए किया जाएगा।
वरिष्ठतम न्यायाधीश का क्या अर्थ है?
वरिष्ठता का निर्णय सुप्रीम कोर्ट में अनुभव के आधार पर किया जाता है न कि न्यायाधीशों की आयु के अनुसार, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में शामिल होने की तारीख से आमतौर पर वरिष्ठता तय की जाती है। लेकिन ऐसे मामलों में जहां सर्वोच्च न्यायालय में शामिल होने की तारीख समान है तो जो पहले शपथ लेता है उसे वरिष्ठ माना जाता है। यदि दूसरा फिल्टर भी उसी दिन पड़ता है, अनुभव को आधार माना जाता है। इसके अलावा बार से की गई नियुक्तियों को इस उद्देश्य के लिए बेंच से की गई नियुक्तियों के अधीन रखा गया है, इसलिए, निवर्तमान सीजेआई अगले सीजेआई (जो आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज होते हैं) के लिए अपनी सिफारिश अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के परामर्श के बाद कम से कम एक महीने पहले केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री को भेजता है।
फिर केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री द्वारा वह सिफारिश प्रधानमंत्री के समक्ष रखी जाती है जो इस संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देते हैं। राष्ट्रपति अपनी मुहर के तहत सेवानिवृत्ति की आयु तक भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं।
क्या "वरिष्ठता नियम" का अनुपालन अनिवार्य है?
सेकंड जजेज केस के मुताबिक (सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ, एआईआर 1994 एससी 268) "सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश ने कार्यालय संभालने के लिए फिट माना जाए।" और अनुच्छेद 124 (2) के तहत परामर्श केवल तभी आवश्यक है "यदि कार्यालय संभालने के लिए सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश की फिटनेस के बारे में कोई संदेह है, जो लंबे समय से चले आ रही परंपरा से विचलित होने के लिए पर्याप्त है।"
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही सीजेआई क्यों नियुक्त किया जाए?
1951 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एचआर कानिया के निधन के बाद सुप्रीम कोर्ट में उस समय के सभी तत्कालीन सेवारत जजों ने वरिष्ठता के नियम का पालन करने को आवश्यक बना दिया था। सरकार द्वारा पालन न करने की हालत में उन्होंने सर्वसम्मति से इस्तीफे की धमकी दी थी। वरिष्ठता का नियम सरकार की विवेकाधीन शक्तियों के दायरे को कम करके न्यायपालिका की स्वतंत्रता का आश्वासन है।
क्या सीजेआई की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता के पारंपरिक नियम से कोई विचलन रहा है?
25 अप्रैल, 1973 को केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य [(1973) 4 SCC 225] के फैसले, जिसमें 13 जजों की पीठ में सात जजों ने बहुमत से सरकार की विधायी और कार्यकारी कार्रवाइयों को को 'बुनियादी ढांचे' के परीक्षण के लिए अतिसंवेदनशील बना दिया। इसके एक दिन बाद, जे अजीत नाथ रे, जो इस मामले में छह असंतुष्टों जजों में से एक थे, को, तीन वरिष्ठ जजों जेएम शेलत, केएस हेगड़े और एएन ग्रोवर (वे सभी फैसले में बहुमत में शामिल थे) भारत की सुप्रीम का चीफ जस्टिस बना दिया।
इस पर भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सीके दफ्तरी ने टिप्पणी की थी कि " जिस लड़के ने सबसे बढ़िया निबंध लिखा, उसने पहला पुरस्कार जीता।" और पूर्व मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने इसे एक ऐसा अभियान कहा, जहां " जज आगे की ओर नहीं देख रहे, बल्कि अपने भविष्य की ओर देख रहे हैं।" 29 जनवरी, 1977 को केशवानंद भारती मामले में बहुमत में शामिल जजों और अपर जिला मजिस्ट्रेट, जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला (AIR 1976 SC 1207) मामले में एकमात्र असंतुष्ट जज जे हंस राज खन्ना, जो तब सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज थे, को जे मिर्जा हमीदुल्ला बेग से पीछे कर दिया गया।
इस मामले ने आपातकाल के दिनों में न्यायिक उपचार के रूप में बंदी प्रत्यक्षीकरण के अधिकार की पुष्टि की थी। पूर्व मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकटचलैया ने कहा था कि ये निर्णय "इतिहास के कूड़ेदान तक सीमित" किए जाने योग्य है।