विश्वजीत आनंद
सुप्रीम कोर्ट की पांचवी वरिष्ठतम जज जस्टिस आर भानुमति का शुक्रवार, 17 जुलाई अंतिम कार्य दिवस था।
उनकी सेवानिवृत्ति की आधिकारिक तारीख 19 जुलाई (रविवार को कोर्ट की छुट्टी रहती है) थी। जस्टिस भानुमति 2014 में सुप्रीम कोर्ट की जज बनी थीं, और कई महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल रहीं। अक्टूबर 2014 के बाद से, लगभग 42 महीने तक, वह सुप्रीम कोर्ट में एकमात्र महिला जज रहीं।
COVID-19के मद्देनजर, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस भानुमति के लिए 'वर्चुअल विदाई' की व्यवस्था की थी, जिसमें जजों और वकीलों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भाग लिया।
जस्टिस भानुमति का जीवन
1955 में पैदा हुईं जस्टिस भानुमति, 1981 में वकील के रूप पंजीकृत हुईं। वकील के रूप में, उन्होंने तिरुपत्तूर और कृष्णागिरी जिलों की मुफस्सिल कोर्ट में प्रैक्टिस की। उन्होंने तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के हरूर कस्बे में भी प्रैक्टिस की। जस्टिस भानुमति 1988 में जिला जज के रूप में तमिलनाडु उच्च न्यायिक सेवा में प्रत्यक्ष भर्ती के जरिए शामिल हुईं और तमिलनाडु के विभिन्न जिलों में जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में काम किया।
उन्हें 2003 मद्रास हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गय। 2013 में वह झारखंड हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस बनीं। 13 अगस्त, 2014 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की जज के रूप में कार्यभार संभाला।
वह बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सदस्य भी रहीं और राज्य न्यायिक अकादमी में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल न्यायिक अधिकारियों के कार्य प्रणाली प्रशिक्षण के क्रियान्यवयन के लिए सराहा गया। उन्होंने "हैंड बुक ऑफ सिविल एंड क्रिमिनल कोर्ट्स मैनेजमेंट एंड यूज ऑफ कंप्यूटर्स" नामक पुस्तक भी लिखी है।
उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष, तमिलनाडु राज्य कानूनी सेवाएं और अध्यक्ष, मद्रास उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के रूप में भी काम किया।
कॉलेजियम में प्रवेश
जस्टिस रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति के बाद, जस्टिस भानुमति को नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में प्रवेश मिला।
जस्टिस रूमा पाल कोलेजियम के प्रवेश पाने वालीं पहली महिला थीं। 2006 में जस्टिस पाल की सेवानिवृत्ति के बाद, एक महिला जज को कॉलेजियम में शामिल होने में एक दशक से अधिक का समय लगा।
उल्लेखनीय निर्णय
मॉडर्न डेंटल कॉलेज व अन्य बनाम स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश 2016 (7) एससीसी 353 में, जस्टिस भानुमति ने अपने फैसले के जरिए एक समवर्ती विचार दिया, जिसने इस तथ्य को स्थापित किया है कि शिक्षा प्रदान का राज्य का एक निर्विवाद कर्तव्य है और राज्य के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से निजी संस्थान को विनियमित करने की शक्ति है। उन्होंने मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंधों के संबंध में "आनुपातिकता के सिद्धांत" पर विस्तार से चर्चा की है।
चिन्मयानंद मामले में स्वतः संज्ञान
जस्टिस आर भानुमति और एएस बोपन्ना की खंडपीठ ने, चिन्मयानंद के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के लापता होने के बाद, मामले का स्वतः संज्ञान लिया था।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के शाजहांपुर जिले के एक कॉलेज में एलएलएम की पढ़ाई कर रही एक छात्रा ने आरोप लगाया था कि चिन्मयानंद ने कई मौकों पर उसका यौन शोषण किया है। छात्रा जिस कॉलेज में पढ़ती थी, उसका प्रबंधन चिन्मयानंद के पास ही था। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 C के तहत एफआईआर भी दर्ज की गई थी।
बेंच ने अपनी कार्यवाही में उत्तर प्रदेश राज्य को उस छात्रा को उसके भाई के साथ दूसरे कॉलेज में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। साथ ही छात्रा और उसके भाई को समायोजित करने के लिए संबंधित कॉलेज की सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश दिया था। विश्वविद्यालय को आवश्यक प्रमाणपत्र जारी करने के लिए निर्देशित किया गया था कि वे जल्द से जल्द अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर सकें।
पीठ ने दिल्ली पुलिस को छात्रा को सभी सुरक्षा उपाय प्रदान करने निर्देश दिया था। साथ ही दिल्ली पुलिस को छात्रा और उसके माता-पिता के साथ शाजहांपुर में उनके निवास स्थान पर जाने का निर्देश दिया था।
प्रवेश कर का मामला
जस्टिस भानुमति जिंदल स्टेनलेस लिमिटेड व अन्य बनाम हरियाणा राज्य में 9-जजों की बेंच का हिस्सा थीं, जिन्होंने 7:2 के बहुमत से अन्य राज्यों से आने वाले माल पर राज्यों द्वारा लगाए गए प्रवेश कर की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। उन्होंने उस मामले में बहुमत से आंशिक रूप से असहमति जताते हुए अलग फैसला सुनाया था।
आईएनएक्स मीडिया केस: पी चिदंबरम को जमानत
जस्टिस आर भानुमति ने उस बेंच का नेतृत्व किया था, जिसने आईएनएक्स मीडिया लेनदेन से संबंधित मामलों में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर मामलों में वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम द्वारा जमानत अर्जियों पर सुनवाई की थी।
चिदंबरम को 106 दिनों की हिरासत के बाद दी गए जमानत के फैसले में उन्होंने लिखा था कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत सील्ड कवर दस्तावेजों के आधार पर निष्कर्षों की रिकॉर्डिंग, जैसे कि अपराध किया गया है, और ऐसे निष्कर्षों का उपयोग जमानत देने से इनकार करने के लिए करना, निष्पक्ष परीक्षण की अवधारणा के खिलाफ है।
आरटीआई और कोर्ट दस्तावेज़
मुख्य सूचना आयुक्त बनाम हाईकोर्ट गुजरात में जस्टिस भानुमति की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि अदालत के दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने के लिए अदालत के नियमों के तहत आवेदन करना चाहिए। आरटीआई कार्यकर्ताओं की फैसले की आलोचना की थी। फैसले में कहा गया था कि अदालत के दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियों की मांग के संबंध में न्यायालय के नियम आरटीआई पर प्रबल होंगे।
निर्णय में कहा गया था कि कोर्ट के दस्तावेजों से संबंधित तीसरे पक्ष की जानकारी के संबंध में न्यायालय के नियमों की आवश्यकताएं आरटीआई अधिनियम की शर्तों पर प्रबल होंगी।
दिल्ली जल बोर्ड में असंतोष
बीर सिंह बनाम दिल्ली जल बोर्ड में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ का फैसला था कि पैन इंडिया रिजर्वेशन का नियम, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में प्रचलित है, संघ और राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में सेवा से संबंधित संवैधानिक योजना के साथ सहमति में है।
मामले का मुख्य मुद्दा यह था कि, "किसी विशेष राज्य के संबंध में अनुसूचित जाति का व्यक्ति, किसी अन्य राज्य में, रोजगार के मामले में अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को दिए गए लाभ या रियायतों, का हकदार होगा या नहीं?"
बहुमत के फैसले से अलग, उन्होंने कहा था, " यदि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण पूरे भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सभी वर्गों या प्रवासियों के लिए लागू किया जाता है, तो पूरी संभावना है कि अन्य विकसित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण पिछड़े राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों, दिल्ली समेत, की अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को मिल जाए।"
निर्भया केस
जस्टिस भानुमति उस बेंच का भी हिस्सा थीं, जिसने 2017 में निर्भया मामले में फैसला किया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया केस में दोषियों की मौत की सजा को बरकरार रखा था। मामले में जस्टिस भानुमति ने एक अलग लेकिन सहमति वाला फैसला लिखा था।
उन्होंने उस पीठ की भी अगुवाई की थी, जिसने मामले में फांसी सजा पाए दोषियों की विभिन्न याचिकाओं पर फैसला किया था और दया याचिकाओं को खारिज किया था।
20 मार्च को, फांसी से कुछ घंटे पहले, आधी रात की सुनवाई में जस्टिस भानुमति की अगुवाई वाली पीठ ने मामले में दोषी पवन कुमार की याचिका खारिज की थी।
धान की भूमि का संरक्षण
द रेवेन्यू डिवीजन ऑफिसर बनाम जलज दिलीप व अन्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस वी गोपाला गौड़ा और जस्टिस भानुमति की खंडपीठ ने फैसला सुनाया था कि हाईकोर्ट के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि धान भूमि अधिनियम के तहत तैयार किए गए डेटा बैंक की अनदेखी कर आधार टैक्स रजिस्टर में प्रविष्टियां बदलने के लिए अधिकारियों को निर्देश दे।
पेटेंट अवैधता
हाल ही में एक उल्लेखनीय फैसले में, उनके नेतृत्व में एक पीठ ने कहा कि पेटेंट अवैधता एक आधार है, जो विदेशी मध्यस्थ अवार्ड को रद्द करने के लिए उपलब्ध है।
टैक्स छूट मामले में संविधान पीठ का फैसला
जस्टिस भानुमति कमिश्नर ऑफ कस्टम्स (इंपोर्ट), मुंबई बनाम एम / एस में संविधान पीठ का हिस्सा थे। दिलीप कुमार एंड कंपनी, में संविधान पीठ का हिस्सा थीं, जिसने फैसला सुनाया था कि छूट संबंधी अधिसूचनाओं की सख्ती से व्याख्या की जानी चाहिए और यह प्रयोज्यता सिद्ध करने का भार निर्धारिती पर होगा, यह दिखाने के लिए होगा कि उनका मामला छूट खंड या छूट अधिसूचना के मापदंडों के भीतर आता है।
मध्यस्थता में वेन्यू-सीट की समस्या
ब्राह्मणी रिवर पेलेट्स लिमिटेड बनाम कामची इंडस्ट्रीज लिमिटेड में पीठ ने हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया कि कोर्ट का मध्यस्थता की 'सीट' और 'स्थल' दोनों पर समवर्ती क्षेत्राधिकार होगा। जस्टिस भानुमति की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि केवल हाईकोर्ट, जिसके पास 'स्थल' पर अधिकार क्षेत्र है, मध्यस्थता की नियुक्ति की मांग करने वाली याचिका पर विचार कर सकता है।
जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध
मद्रास हाईकोर्ट के जज के रूप में, जस्टिस भानुमति ने, के मुनीआसमीयदेवर बनाम पुलिस उपअधीक्षक व अन्य में 29 मार्च, 2006 को साहसिक फैसला दिया था और सभी प्रकार के जल्लीकट्टू, रेक्ला रेस (बैलगाड़ी दौड़), समेत ऐसे सभी खेलों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिनमें तमिलनाडु में जानवरों के साथ क्रूरता हो रही हो।
इनके अलावा, जस्टिस भानुमति ने कई ऐसे फैसले सुनाए, जिसमें जमानत देने, विशिष्ट प्रदर्शन, साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, आपराधिक मुकदमा, धारा 138 एनआई अधिनियम आदि से संबंधित पहले सिद्धांतों को समझाया और दोहराया गया।
सबरीमाला संदर्भ का भविष्य?
28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मामले में मूल फैसला सुनाया था। 14 नवंबर, 2019 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने समीक्षा याचिकाओं पर विचार के लिए एक आदेश दिया था।
सबरीमाला समीक्षा मामले में कानून के सवाल पर विचार करने के लिए एक नई नौ-जजों की पीठ का गठन किया गया था। जस्टिस भानुमति बेंच में अकेली महिला जज थीं। 9-जजों की पीठ ने मुद्दों को फ्रेम कर लिया था, और फरवरी के दूसरे सप्ताह में सुनवाई शुरू की थी, लेकिन COVID-19 की शुरुआत और बाद के लॉकडाउन ने सुनवाई को बाधित कर दिया।
सीजेआई बोबडे ने सुनवाई को तेज करने की योजना बनाई थी, और 'सबरीमाला संदर्भ के बाद' कहकर कई मामलों को स्थगित कर दिया था। जस्टिस भानुमति की सेवानिवृत्ति के बाद, 9-जजों की पीठ का दोबार गठन करना होगा।