COVID-19 के दौर में न्यायः सुप्रीम कोर्ट में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई का अनुभव
निधि मोहन पाराशर
10 से ज्यादा दिनों तक खुद को क्वारंटाइन रखने के बाद सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कारण सूची में अपने केस की तारीख देखना रोमांचक था। मेरा केस 27 मार्च 2020 को 3 बजे सूचीबद्ध किया गया था।
ज्यादा काबिल-ए-तारीफ यह है कि COVID-19 के कारण जारी लॉकडाउन के दौर में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही जरूरी मामलों को सूचिबद्घ करने और सुनवाई सुनिश्चित करने की एक असाधारण प्रक्रिया विकसित की है।
मामले को सूचीबद्ध कराने का तरीका सरल है और मेरा अनुभव यह है कि सामान्य दिनों की मामले को सूचीबद्ध करने के तरीके की तुलना में यह तरीका अधिक आसान है। एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) या पार्टी-इन-पर्सन को एक ईमेल भेजना होता है, जिसमें मामले की तात्कालिकता का वर्णन हो और साथ में तत्कालिकता का एक असत्यापित हलफनामा भेजना होता है।
कोर्ट ने अनुमति दे रखी है कि विधिवत हलफनामा बाद में किसी और वक्त पर दाखिल किया जाए। उसने माना है कि ऐसे वक्त में वकीलों के ऐसे हलफनामे पर हस्ताक्षर कराना और ओथ कमिश्नर के समक्ष पुष्टि कराना संभव नहीं है।
लिस्टिंग के लिए ईमेल भेजने के बाद, यदि लिस्टिंग की रिक्वेस्ट को अनुमति दी जाती है तो मामला अगले ही दिन लिस्ट हो जाता है। यदि रिक्वेस्ट रिजेक्ट हो जाती है तो भी विकल्प का अंत नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर ऐसे ईमेल रिक्वेस्ट की एक सूची भी अपलोड की जाती है, जिन्हें अस्वीकार कर दिया गया है।
ऐसे सभी मामलों में, सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार वकील को संबंधित प्रभारी जज से संपर्क करना होता है और टेली कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामले की तात्कालिकता से अवगत कराना होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने फोन कॉल पर केस की जानकारी देने की सुविधा देकर ऐसे असाधारण समय में एक असाधरण कदम उठाया है। यह एक ऐसा पहलू है, जिसकी मैं गहराई से तारीफ करती हूं। किसी जरूरी मामले की लिस्टिंग के लिए प्रक्रिया में दी गई यह छूट बहुत ही शानदार कदम है, और इसे हालात सामान्य होने के बाद भी जारी रखा जाना चाहिए।
सुनवाई पर बात करते हैं, 26 मार्च 2020 को देर शाम कारण सूची अपलोड होने के कुछ समय बाद मुझे एक व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा गया। ग्रुप में कई अन्य वकील भी थे, जिनके मामले न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध थे। ग्रुप के एडमिन एक टेक्निकल व्यक्ति थे, उन्होंने कॉल में मदद की, सभी को एक मैसेज भेजा, जिसमें सभी को सुनवाई से संबंधित सभी प्रश्नों को उन्हें बताने को लिए कहा गया।
प्रक्रिया
Vidyo App में लॉगिन का कोई सिस्टम नहीं होता है। सुनवाई से ठीक पहले वकील के साथ एक लिंक साझा किया जाता है, और लिंक पर क्लिक करने पर Vidyo App वकील को लॉगिन करने की अनुमति देता है। बिना उस लिंक के वकील लॉग इन नहीं कर सकता है। यदि आप लिंक पर क्लिक करते हैं और वीडियो-कॉल ड्रॉप हो जाती है तो वही लिंक दोबारा काम नहीं करता है। ऐसे स्थिति में वकील को एडमिनिस्ट्रेटर से नया लिंक मांगना होता है। सुनवाई के दिन हमें एक टेस्ट लिंक भेजा गया, वह ठीक काम कर रहा था।
इस प्रक्रिया के अनुसार, एक वकील को केवल एक बार लॉग-इन करने की अनुमति दी जाती है, वह भी तब, जब उसके केस का नंबर आता है। इसका मतलब यह है कि आइटम 2 के वकील को लिंक तभी दिया जाएगा, जब आइटम 1 की सुनवाई खत्म हो जाएगी। बेंच भी एक के बाद दूसरे को बुलाती हैं, एक साथ नहीं।
इसका मतलब यह है कि अगर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत ( जिन्हें 11 बजे सुनवाई करना था) के समक्ष सुनवाई एक बजे के बाद तक चले तो जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ, कारण सूची के अनुसार जिन्हें एक बजे से सुनवाई करना था, एक बजे के बाद ही सुनवाई कर पाएंगे।
व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिनेस्ट्रेटर ने स्पष्ट किया कि यदि पहले से सूचित किया जाता है तो वकील अपने लिंक को वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ साझा कर सकता है।
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ के समक्ष आइटम एक के मामले में यह सफलतापूर्वक किया गया, जहां श्री केवी विश्वनाथन, वरिष्ठ अधिवक्ता और सुश्री राघेन्त बसंत, अधिवक्ता ने एक ही पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए दो अलग-अलग लिंक से लॉग इन किया।
मैंने मौका नहीं गंवाया और वरिष्ठ अधिवक्ता कार्यालय, श्री मनिंदर सिंह के पास गई, जहां से हमने अपने मामले में वीडियोकांफ्रेंसिंग की।
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता के समक्ष आइटम एक की शुरुआत लगभग 3.20 बजे हुई। आइटम 2 के रूप में मेरे मामले पर 3.50 बजे सुनवाई शुरु हुई।
व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिनेस्ट्रेटर ने मुझे एक लिंक साझा किया था। मैंने 5 बार Vidyo App में लॉग इन करने की विफल कोशिशों के बाद, सुनवाई व्हाट्सएप वीडियो कॉल के जरिए शुरु हुई, जैसा कि 26 मार्च 2020 के एक सर्कुलर में विचार किया गया था। सुनवाई के बीच, मैं व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिनेस्ट्रेटर के साथ ग्रुप में बातचीत भी कर पा रही थी। व्हाट्सएप कॉल पर सुनवाई बहुत ही सुचारू थी।
सुनवाई के बाद, हमें बहुत संतुष्टि हुई कि कम से कम जब पूरा देश बंद है, हमनें अपने मामले की सुनवाई पूरी कर ली। हालांकि, सुनवाई की प्रक्रिया में सुधार की बहुत गुंजाइश है।
जैसे कि, केस का उल्लेख करने के भेजे गए मेरे ईमेल को स्वीकार नहीं किया गया। उपस्थिति की पर्ची जमा करने का भी कोई तरीका नहीं था। जब हमने व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन को दिया तो उन्होंने बताया कि हो सकता है वह कोर्ट मास्टर को न दे पाएं।
इसके अलावा, हमारे पास माननीय पीठ के साथ चर्चा करने के लिए सीमित कानूनी मुद्दा था।
एक ऐसे इंटरफेस के अभाव के कारण, जहां हम बेंच के साथ स्कैन किए गए दस्तावेज/ मिसालें साझा कर सके हैं, हमें सुनवाई के दरमियान उन्हीं मुद्दों और दस्तावेज पर बात करनी होती है, जिसे हम पहले से ही अदालत में दाखिल किया जा चुका है।
इस संबंध में मेरे सवालों को व्हाट्सएप ग्रुप एडमिनिस्ट्रेटर ने जवाब भी नहीं दिया। रहा। इसके अलावा, अगर लॉगिन आईडी और पासवर्ड पहले से एओर को जारी कर दिए जाएं तो हमारी चिंता और कम हो सकती है।
हालांकि, यह अभी शुरुआत है और हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में चीजें और बेहतर होंगी। मैं आशावादी हूं। त्वरित सुनवाई की प्रक्रिया ने वादियों को उम्मीद दी है कि इस देश की सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं।
लेखिका सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं।