भारत के गृह मंत्रालय में एक थिंक टैंक है जिसे पुलिस अनुसंधानऔर विकास ब्यूरो (BPRD) कहा जाता है। कुछ समय पहले, इसने देश भर के सभी पुलिस विभागों को गिरफ्तारी नहीं करने और वरिष्ठ नागरिकों से उनके कार्यालयों या स्टेशनों पर नियमित रूप से यानियमित मामलों के लिए पूछताछ करने के लिए निर्देशित किया था।
इस थिंक टैंक ने सभी पुलिस अधिकारियों को सख्ती से सलाह दी है कि गिरफ्तारी करते समय, पूछताछ के लिए बुलाते समय याहिरासत में लोगों के साथ व्यवहार करते समय सही व उचित प्रक्रिया का पालन करें। लेकिन हमेशा की तरह गृह मंत्रालय या पुलिस द्वारा किसी भी निर्देश का पालन नहीं किया गया और न ही उसे लागू किया गया।
जैसा कि मीडिया में बताया गया है, 23 फरवरी 2022 की सुबह लगभग 5 या 6 बजे केंद्रीय जांच एजेंसी "प्रवर्तन निदेशालय" महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक के मुंबई में कुर्ला स्थित उनके घर पहुंची, मलिक जो कि 62 वर्ष के वरिष्ठनागरिक भी हैं, जांच एजेंसी ने उनको उनके निवास स्थान से उठायाऔर लगभग 7:30 बजे प्रातः प्रवर्तन निदेशालय के कार्यालय में ले गये । उनसे देर दोपहर तक लगातार पूछताछ की गई।
नवाब मलिक के आरोप के अनुसार दोपहर बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सहमति के बिना, दबाव से उन्हें कुछ दस्तावेजों पर जबरन हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था। इस लेख के लेखन के दौरान, ईडी ( प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा कोर्ट ने उनके रिमांड आवेदन पर आदेश में अनुमति दे दी है।
यह एक स्थापित कानून और एक नियमित प्रक्रिया है कि सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद, एक महिला या नाबालिग या वरिष्ठ नागरिक को अत्यधिक आपात स्थिति के मामलों को छोड़कर गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए।
जिस तरह से मलिक को ईडीने हाल ही में दर्ज एक मामले में पूछताछ के लिए घर से उठाया और बाद में पूछताछ को गिरफ्तारी में बदल दिया, यह सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले अर्नेश कुमार जजमेंट सहित सुप्रीम कोर्टके कई अन्य फैसलों का स्पष्ट उल्लंघन है।
हालांकि, रिमांड की सुनवाई के दौरान ईडी का विचार था कि धन शोधन निवारणअधिनियम (पीएमएलए) के तहत एक विशेष अधिनियम का मामला होने के कारण अर्नेश कुमार के फैसले के अनुसार गिरफ्तारी के तरीके पर सवाल ही नहीं उठता।
लेकिन मेरे व्यक्तिगत विचार में, अर्नेश कुमार जजमेंट गिरफ्तारी से संबंधित सभी प्रकार की प्रक्रियाओं को शामिल करता है। यह सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है, इसलिए गिरफ्तारी की प्रत्येक प्रक्रिया पर लागू होता है।
यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तार व्यक्ति को यह जानने का पूरा कानूनी अधिकार है कि उसे किस आधार पर गिरफ्तार किया गया है और वह अपने वकील से तुरंत संपर्क करने का भीअधिकार है। इसका स्पष्ट रूप से दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में उल्लेख किया गया है और न्यायपालिका द्वारा भी कई बार निर्देशित किया गया है।
प्रथम दृष्टया हम मलिक की इस अजीब गिरफ्तारी पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। यह गिरफ्तारी एक वास्तविक प्रक्रिया के बजाय एक राजनीतिक प्रतिशोध की तरह दिखती है, जो स्पष्ट रूप से भारत में कानून के शासन के स्थापित सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
(यह आर्टिकल सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ईलिन सारस्वत ने लिखी है। यह उनके निजी विचार हैं।)
लेखक : ईलिन सारस्वत (एडवोकेट) उच्चतम न्यायालय.
ट्विटर: @iamAttorneyILIN