शिक्षित और कमाने वाली पत्नी से घर के खर्चों में सहयोग करने की उम्मीद क्रूरता नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2025-09-04 05:10 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पत्नी द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए, और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC/ST Act) तथा किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) की विभिन्न धाराओं के तहत क्रूरता का आरोप लगाते हुए दायर किए गए मामलों को खारिज कर दिया।

जस्टिस अजय कुमार गुप्ता ने कहा:

"प्रतिवादी नंबर 2 एक शिक्षित और कमाने वाली महिला है। घर के खर्चों में योगदान देने, COVID-19 लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन खरीदारी करने, या सास द्वारा बच्चे को खिलाने के लिए कहे जाने की नियमित अपेक्षाएं, किसी भी तरह से IPC की धारा 498ए के अर्थ में "क्रूरता" नहीं मानी जा सकतीं। इसी तरह संयुक्त रूप से अधिग्रहित अपार्टमेंट के लिए EMI का भुगतान, या पिता द्वारा बच्चे को बाहर ले जाना, घरेलू जीवन की असामान्य घटनाएं नहीं हैं। जहां किसी भी अभियुक्त को कोई विशिष्ट भूमिका नहीं दी गई। आरोपों में अपराध की तारीख, समय या तरीके के बारे में विवरण का अभाव है, वहां आपराधिक कार्यवाही जारी रखना अभियुक्त के विरुद्ध पूर्वाग्रह और उत्पीड़न के रूप में कार्य करेगा।"

मामले की पृष्ठभूमि

प्रतिवादी नंबर 2 ने पाटुली पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी के समक्ष लिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी शादी याचिकाकर्ता नंबर 2 से हुई। इस विवाह से उसकी एक बेटी भी है। इसमें कहा गया कि वैवाहिक जीवन की शुरुआत से ही वह अपने पति को अपने लिए अनुपयुक्त पाती है। उसके ससुराल वाले उसे गालियां देते हैं और उसे 'नीची जाति' का होने का मज़ाक भी उड़ाते हैं।

यह भी कहा गया कि जब वह अपने पति के साथ दूसरे घर में रहने लगी तो प्रतिवादी नंबर 2 ने उस पर हमला किया और उसका गला घोंटने की कोशिश की। उसने बताया कि उसकी सास उसे भूख न होने पर भी बच्चे को दूध पिलाने के लिए मजबूर करती थी।

यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने उसे "शारीरिक, यौन, मौखिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से" प्रताड़ित किया। उन्होंने दहेज की भी अवैध मांग की और अपार्टमेंट खरीदने के लिए लिए गए ऋण को चुकाने के लिए मासिक किस्त/EMI का भुगतान करने का दबाव डाला।

यह बताया गया कि याचिकाकर्ता नंबर 2 ने प्रतिवादी नंबर 2 का गला घोंट दिया और बच्चे की पिटाई भी की, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी नंबर 2 को मानसिक आघात पहुंचा।

उपरोक्त शिकायत के अनुसरण में पटुली थाना मामला संख्या 52/2022 दिनांक 15.03.2022 को IPC की धारा 498ए/406/506/34, दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3/4 सहपठित किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(यू) के अंतर्गत पंजीकृत किया गया।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आरोप पत्र प्राप्त होने के बाद जज ने उसमें उपलब्ध सामग्री पर ध्यान दिए बिना या अनिवार्य कानूनी आवश्यकताओं का पालन किए बिना यंत्रवत् अपराधों का संज्ञान ले लिया। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता निर्दोष हैं। आरोप पूरी तरह से झूठे, तुच्छ और मनगढ़ंत हैं, जो केवल उन्हें लाभ के लिए परेशान करने के उद्देश्य से लगाए गए।

यह प्रस्तुत किया गया कि आरोप अस्पष्ट हैं। याचिकाकर्ताओं के खिलाफ FIR या आरोप पत्र में कोई भी तथ्य पूरा नहीं किया गया। पूरा मामला एक मनगढ़ंत कहानी पर आधारित है। कानून के घोर दुरुपयोग को रोकने के लिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि SC/ST Act की धारा 3 को लागू करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है कि पीड़ित SC/ST समुदाय से संबंधित हो, बल्कि यह दिखाना चाहिए कि आरोपियों ने सार्वजनिक रूप से अपमानित करके अपराध किया, जो इस मामले में नहीं हुआ।

प्रतिवादी के वकील सं. 2/शिकायतकर्ता ने याचिका का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि 15 मार्च 2022 को दर्ज की गई शिकायत में याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए संज्ञेय अपराधों का स्पष्ट रूप से खुलासा किया गया। आरोप है कि शिकायतकर्ता को शारीरिक और मानसिक क्रूरता, उसके स्त्रीधन की वस्तुओं का दुरुपयोग, दहेज की मांग, गला घोंटने का प्रयास और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकियां दी गईं। यह भी आरोप है कि उसके पति और ससुराल वालों ने उसके नाबालिग बच्चे के साथ क्रूरता की और जानबूझकर उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित किया।

निष्कर्ष

पक्षकारों की सुनवाई के बाद अदालत ने पाया कि पत्नी ने अपनी लिखित शिकायत में यहां तक कि अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत से ही, कई आरोपों का खुलासा किया है, लेकिन उसने समय और स्थान का कोई उल्लेख नहीं किया।

आरोपों में अदालत ने पाया कि केवल दो विशेष तिथियों का उल्लेख किया गया पहली, 14.07.2017 को, जब पी-2 ने ओपी-2 पर कथित तौर पर हमला किया और उसे गंभीर चोटें आईं और उसका इलाज सेना के अस्पताल में हुआ। दूसरी, नवंबर, 2020 में जब याचिकाकर्ता नंबर 2 का ओपी-2 के साथ झगड़ा हुआ और उसने उस पर हमला कर दिया, जिससे उसकी बेटी भी घायल हो गई।

हालांकि, अदालत ने पाया कि जांच के दौरान वह सेना के अस्पताल या किसी अन्य अस्पताल की कोई चोट रिपोर्ट या उपचार संबंधी दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विफल रही। इस अदालत को गला घोंटने के आरोप के संबंध में कोई मेडिकल चोट रिपोर्ट भी नहीं मिली।

अदालत ने कहा कि वह किसी विशिष्ट व्यक्ति पर कोई अपराध थोपने में विफल रही और जांच में दहेज की मांग पूरी न होने पर शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना, या याचिकाकर्ता नंबर 1 या अन्य अभियुक्तों द्वारा स्त्रीधन की वस्तुओं को सौंपने या उनका दुरुपयोग करने का प्रथम दृष्टया मामला भी सामने नहीं आया।

उल्लेख किया गया कि जब जांच के दौरान अभियुक्तों के घरों से सभी वस्तुएं ज़ब्त कर ली गईं तो IPC की धारा 406 लागू नहीं होती। इसी प्रकार, वर्तमान मामले में IPC की धारा 506 लागू नहीं होती, क्योंकि इस धारा के संबंध में कोई विश्वसनीय कथन नहीं दिए गए। यह भी माना गया कि जिन टिप्पणियों से पत्नी व्यथित थी, वे सास द्वारा घर के अंदर की गईं, न कि सार्वजनिक रूप से, इसलिए यह SC/ST Act के तहत अपराध नहीं है।

अदालत ने आगे कहा कि स्वतंत्र गवाहों ने ओपी-2 द्वारा लगाए गए झगड़े, चिल्लाने या दरवाज़ा तोड़ने के आरोपों का समर्थन नहीं किया। अदालत ने कहा कि केस डायरी के अवलोकन पर अपमान या किसी अपराध के आरोप को प्रमाणित करने के लिए कोई सामग्री नहीं मिली, जिससे SC/ST Act की धारा 3(1)(यू) के प्रावधानों को आकर्षित किया जा सके।

यह भी कहा गया कि ओपी-2 ने प्रेम संबंध के बाद याचिकाकर्ता से विवाह करने का निर्णय लिया था। इसलिए अब उसे क्रूर, असमर्थक आदि के रूप में चित्रित करना टिकने योग्य नहीं है।

अदालत ने कहा,

"यह ध्यान देने योग्य है कि 2011 से 2022 तक किसी भी अधिकारी या पुलिस स्टेशन में कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई, भले ही उसने दावा किया हो कि विवाह की शुरुआत से ही उसके साथ क्रूरता की गई। उसने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह कथित क्रूरता वास्तव में कब शुरू हुई... कानून के अनुसार, आरोपों का स्पष्ट, विशिष्ट और विवरणों के साथ समर्थन होना आवश्यक है; अन्यथा, आपराधिक दायित्व तय करना पूरी तरह से अव्यावहारिक हो जाता है।

उसी परिसर की दूसरी मंजिल पर रहने वाले एक पड़ोसी ने CrPC की धारा 161 के तहत अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि यद्यपि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 2 तीसरी मंजिल पर रहते थे, उन्होंने न तो कोई झगड़ा सुना और न ही कोई हमला देखा। उन्होंने याचिकाकर्ता और विपक्षी संख्या 2 के वैवाहिक जीवन में किसी भी वैवाहिक कलह पर ध्यान नहीं दिया।

परिणामस्वरूप, पटुली पुलिस थाना मामला नंबर 52/2022 दिनांक 15.03.2022 से उत्पन्न विशेष मामला नंबर 9/2022 की कार्यवाही IPC धारा 498ए/406/506/34 के साथ किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(यू) के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज कर दिया गया।

Case Title: Dr. Hiralal Konar & Anr. Versus The State of West Bengal and Anr.

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