बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिला सहकर्मी को अश्लील मैसेज भेजने वाले रिटायर प्रोफेसर के खिलाफ FIR खारिज की

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह रिटायर प्रोफेसर के खिलाफ पीछा करने का मामला खारिज कर दिया, जिसने एक महिला सहकर्मी को अश्लील और आपत्तिजनक मैसेज भेजा था, यह देखते हुए कि आरोपी मानसिक असंतुलन से पीड़ित है।
जस्टिस सारंग कोटवाल और जस्टिस श्रीराम मोदक की खंडपीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला ने भी 13 दिसंबर 2022 को मालाबार हिल पुलिस स्टेशन में उसके खिलाफ दर्ज की गई FIR खारिज करने के लिए अपनी सहमति दे दी है।
जजों ने 19 मार्च को पारित आदेश में दर्ज किया,
"उसने (शिकायतकर्ता ने) न्यायालय के समक्ष कहा कि वह याचिकाकर्ता की मानसिक बीमारी को समझ चुकी है। उसने न्यायालय के समक्ष कहा कि उसे कार्यवाही रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं है। उसने यह तथ्य स्वीकार किया कि यह मैसेज अनजाने में भेजा गया, जब याचिकाकर्ता मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं था।"
इस पृष्ठभूमि में उसने कार्यवाही रद्द करने के लिए अपनी सहमति दी है। चूंकि वह खुद आश्वस्त है कि याचिकाकर्ता की मानसिक बीमारी के कारण यह संदेश भेजा गया इसलिए अभियोजन जारी रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार याचिकाकर्ता कैलाश चांडक और शिकायतकर्ता सहकर्मी थे और दोनों दक्षिण मुंबई के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रोफेसर थे। हालांकि 2022 में चांडक रिटायर हो गए जबकि शिकायतकर्ता ने किसी अन्य संस्थान में नौकरी हासिल कर ली।
12 दिसंबर 2022 को चांडक ने शिकायतकर्ता को उसके व्हाट्सएप पर अश्लील और आपत्तिजनक मैसेज भेजा। शिकायतकर्ता को यह सूचना मिलते ही झटका लगा और अगले दिन उसने उसके खिलाफ तत्काल FIR दर्ज करा दी।
इसके बाद मालाबार हिल्स पुलिस स्टेशन ने चांडक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354-D (पीछा करना) और सूचना एवं प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के जरिए अश्लील सामग्री प्रसारित करना) के तहत मामला दर्ज किया।
अपनी याचिका में चांडक ने बताया कि वह मानसिक असंतुलन से पीड़ित है। उसने अपने दावे को पुष्ट करने के लिए एक मनोवैज्ञानिक द्वारा दी गई मेडिकल रिपोर्ट का भी हवाला दिया।
इस मामले को देखते हुए शिकायतकर्ता ने FIR रद्द करने के लिए सहमति का हलफनामा दायर किया जिसमें कहा गया कि FIR दर्ज करने के समय उसे उसकी मानसिक स्थिति के बारे में पता नहीं था।
पीठ ने उसके हलफनामे में उल्लेख किया,
"अपनी मानसिक विकलांगता के कारण याचिकाकर्ता सही सामाजिक व्यवहार का आकलन करने में असमर्थ था। उस स्थिति में उसने अनजाने में उसे आपत्तिजनक व्हाट्सएप मैसेज भेज दिया। याचिकाकर्ता की मानसिक बीमारी के बारे में पता चलने के बाद उसने अपने आरोप वापस लेने का फैसला किया।"
इन टिप्पणियों के साथ जजों ने FIR रद्द कर दिया।
केस टाइटल: कैलाश चांडक बनाम महाराष्ट्र राज्य (रिट याचिका 1419/2025)