दहेज की मांग दंडनीय है, मगर कम दहेज देने पर ताना देना अपने आप में दंडनीय अपराध नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-05-21 06:05 GMT

पति के रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक शिकायतों को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यद्यपि दहेज की मांग दंडनीय अपराध है, लेकिन कम दहेज देने के लिए ताना देना अपने आप में एक दंडनीय अपराध नहीं है।

न्यायालय ने माना कि परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोप स्पष्ट होने चाहिए, जिसमें आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए प्रत्येक सदस्य द्वारा निभाई गई विशिष्ट भूमिकाओं पर प्रकाश डाला जाए।

जस्टिस विक्रम डी. चौहान ने कहा,

“क़ानून दहेज की मांग को दंडनीय मानता है। हालांकि, कम उपहार देने के लिए ताना मारना कोई दंडनीय अपराध नहीं है। आरोपी व्यक्ति द्वारा कथित तौर पर की गई मांग पूरी तरह से अस्पष्ट है।

आवेदकों ने अनुरोध किया कि विपक्षी नंबर 2 आवेदक नंबर 1 की पत्नी थी। सभी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 498ए, 323, 506 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। पत्नी ने आरोप लगाया कि आरोपी ने दहेज के रूप में कार की मांग की और दहेज की मांग पूरी नहीं होने पर उसे ससुराल से निकाल दिया गया और कथित तौर पर दवाइयां दी गईं, जिससे वह बीमार हो गई।

आवेदकों ने कहा कि पत्नी द्वारा मारपीट का कोई आरोप नहीं लगाया गया, किसी भी समय कोई चोट की रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। तर्क दिया गया कि पत्नी द्वारा विवाहित ननद, देवर और अविवाहित ननद के खिलाफ अस्पष्ट और सामान्य आरोप लगाए गए।

न्यायालय ने माना कि शिकायतों में अस्पष्ट आरोप आरोपियों के अधिकार और खुद का बचाव करने की क्षमता में बाधा डालते हैं और बचाव के लिए अनिश्चितता भी पैदा करते हैं।

यह हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल मामले पर आधारित था, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग या तो किसी भी अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए किया जा सकता है या अन्यथा न्याय को सुरक्षित करने के लिए किया जा सकता है, जब एफआईआर में आरोप बेतुके हों। इस हद तक कि उनसे कोई उचित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका।

अदालत ने पाया कि आईपीसी की धारा 498ए, 323, 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत मामला जांच अधिकारी द्वारा मांग के संबंध में सूचक-पत्नी, उसके पिता और उसकी मां के बयानों सहित अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद दर्ज किया गया। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिए गए बयानों में पति के अलावा आवेदकों की भूमिका को रेखांकित करने वाला कोई विशेष आरोप नहीं बताया गया।

अदालत ने माना कि चूंकि शिकायतकर्ता ने छेड़छाड़ और शारीरिक हमले का आरोप लगाते समय आवेदकों के अपराध और भूमिका का विवरण नहीं दिया, इसलिए उनके खिलाफ आपराधिक मामले चलने योग्य नहीं है। तदनुसार, सूचक पत्नी की विवाहित भाभी, बहनोई और अविवाहित भाभी के खिलाफ आपराधिक शिकायतें रद्द कर दी गईं।

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