एक बार जब ट्रायल शुरू हो जाए और कुछ गवाहों की गवाही हो जाए तो संवैधानिक न्यायालयों को जांच को पुनः खोलने या ट्रांसफर करने से बचना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-04-12 16:15 GMT
एक बार जब ट्रायल शुरू हो जाए और कुछ गवाहों की गवाही हो जाए तो संवैधानिक न्यायालयों को जांच को पुनः खोलने या ट्रांसफर करने से बचना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यह टिप्पणी की कि जब एक बार किसी मामले की जांच पूरी हो जाए, आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाए और मुकदमे की सुनवाई शुरू हो जाए तो हाईकोर्ट को सामान्यतः जांच को दोबारा खोलने या किसी अन्य एजेंसी को ट्रांसफर करने से बचना चाहिए। इसके बजाय जहां आरोप पत्र दाखिल हुआ, उस मजिस्ट्रेट या जिस अदालत में मुकदमा चल रहा है उसे कानून के अनुसार आगे बढ़ने दिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

"जहां जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र दाखिल हो चुका है, सामान्यतः हाईकोर्ट को जांच को फिर से नहीं खोलना चाहिए। इसे उसी अदालत के विवेक पर छोड़ देना चाहिए, जहां आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिससे वह कानून के अनुसार कार्यवाही कर सके।"

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस्मान अली द्वारा दाखिल आपराधिक रिट याचिका को खारिज करते हुए दी, जिसमें उन्होंने अपने भाई की हत्या की जांच को क्राइम ब्रांच (CB-CID) से हटाकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) या केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को ट्रांसफर करने की मांग की थी।

पूरा मामला

इस मामले में याचिकाकर्ता ने 25 अक्टूबर, 2018 को अपने भाई (इम्तियाज अहमद, टोपन टाउन क्षेत्र, सोनभद्र के तत्कालीन चेयरमैन) की हत्या को लेकर FIR दर्ज कराई। पहले मामले की जांच सोनभद्र पुलिस ने की लेकिन बाद में यह जांच आरोपियों के अनुरोध पर CB-CID को ट्रांसफर कर दी गई।

फरवरी 2020 में जांच अधिकारी ने CJM कोर्ट में पुलिस रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें आठ लोगों को आरोपी बनाया गया और राकेश जायसवाल एवं रवि जलान को क्लीन चिट दी गई जबकि इन दोनों के नाम मृतक के मरने से पहले दिए गए बयान में भी थे। अगले ही दिन मजिस्ट्रेट ने आरोप पत्र पर संज्ञान लिया।

याचिकाकर्ता का आरोप था कि जांच CB-CID को जायसवाल और जलान के कहने पर सौंपी गई और उन्हीं के निर्देश पर उन्हें क्लीन चिट दी गई। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले अरूप भुइयां बनाम असम राज्य (2023 LiveLaw (SC) 234) के आलोक में आरोपियों के खिलाफ कड़े UAPA प्रावधान लागू होने चाहिए।

याचिकाकर्ता ने एक विरोध याचिका दायर की, जिसे अगस्त, 2020 में खारिज कर दिया गया।

इसके खिलाफ उन्होंने सेशन कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जिसे स्वीकार कर लिया गया और जांच में कई खामियों को रेखांकित करते हुए मामला मजिस्ट्रेट को वापस भेज दिया गया। मई 2022 में मजिस्ट्रेट ने विरोध याचिका को स्वीकार करते हुए जांच की खामियों को ध्यान में रखकर आगे की जांच के आदेश दिए और पुलिस अधिकारी (IO) के खिलाफ कार्यवाही के लिए DGP को भी निर्देशित किया।

इसके बाद मामला CB-CID वाराणसी से CB-CID प्रयागराज को सौंपा गया और एक नया आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिसमें जायसवाल और जलान को भी आरोपी बनाया गया (हालांकि यह रिकॉर्ड में नहीं है)।

इसी दौरान याचिकाकर्ता ने इस नए आरोप पत्र को केस रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए आवेदन दिया, जिसे सितंबर 2024 में CJM, सोनभद्र द्वारा खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने CrPC की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दायर की है, जो अभी लंबित है।

इस बीच सेशन कोर्ट सोनभद्र में ट्रायल शुरू हो चुका है और अभियोजन पक्ष के आठ गवाहों की गवाही हो चुकी है।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

इस मामले में कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि क्या ट्रायल शुरू हो जाने और कई गवाहों के बयान हो जाने के बाद जांच को CBI/NIA को ट्रांसफर किया जा सकता है?

याचिकाकर्ता के सीनियर एडवोकेट राकेश पांडे, एडवोकेट मोहम्मद अमन खान और कृष्ण कुमार वर्मा की सहायता से ने दलील दी कि संवैधानिक न्यायालय किसी भी समय चाहे ट्रायल शुरू हो चुका हो और गवाहों की गवाही हो चुकी हो नए सिरे से जांच, डेनोवो या पुनः जांच का आदेश दे सकते हैं।

कोर्ट ने माना कि आरोप पत्र दाखिल होने और ट्रायल शुरू होने के बाद भी "आगे की जांच" (Further Investigation) का आदेश कानूनन संभव है लेकिन जांच को दोबारा खोलने (Reopening of Investigation) का निर्देश देने से हाईकोर्ट को सामान्यतः बचना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि जहां आरोप पत्र दाखिल हो चुका हो और ट्रायल आरंभ हो चुका हो, वहां यह ट्रायल कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए, जो धारा 311 CrPC (BNSS की धारा 348) के तहत किसी भी गवाह को फिर से बुलाने या नए गवाह को तलब करने का अधिकार रखती है, भले ही दोनों पक्षों की साक्ष्य प्रक्रिया पूरी हो चुकी हो।

CBI/NIA को जांच ट्रांसफर करने की याचिका पर, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के केवी राजेन्द्रन बनाम पुलिस अधीक्षक, CB-CID साउथ (2013) के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि जांच स्थानांतरित करने की शक्ति का उपयोग दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए, जब न्याय के हित में यह आवश्यक हो या राज्य की पुलिस की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न हो।

खंडपीठ ने टिप्पणी की,

“हम पाते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लगातार यह कहा है कि जांच को राज्य एजेंसी से स्वतंत्र एजेंसी जैसे CBI को स्थानांतरित करने की शक्ति केवल उन्हीं मामलों में प्रयोग की जानी चाहिए, जहां यह न्याय के हित में आवश्यक हो, सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने के लिए हो, या राज्य एजेंसी की निष्पक्षता पर सवाल हो।"

इन टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार नहीं की और उसे खारिज कर दिया।

केस टाइटल: उस्मान अली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य 12

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