नियुक्ति में ड्राइवर सेवा नियम का पालन नहीं किया गया, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विशेष चीनी निधि कर्मचारी को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने से किया इनकार
चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस जसप्रीत सिंह की इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने माना कि विशेष चीनी निधि के तहत नियुक्त कर्मचारी को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता, क्योंकि नियुक्ति उत्तर प्रदेश चीनी विभाग ड्राइवर सेवा नियम, 1984 के अनुसार नहीं की गई।
पृष्ठभूमि तथ्य
विशेष चीनी निधि का निर्माण वर्ष 1974 में उत्तर प्रदेश गन्ना (क्रय कर) अधिनियम, 1961 (1961 का अधिनियम) से किया गया। उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त को विशेष चीनी निधि के तहत नियुक्त कर्मचारियों की नियुक्ति प्राधिकारी के रूप में कार्य करने की शक्ति सौंपी गई। वर्ष 1987 में विशेष चीनी निधि ने कुछ मोटर वाहन खरीदे और उसके लिए कुछ ड्राइवरों की नियुक्ति की गई। प्रतिवादी को 19.02.1990 के आदेश के तहत ड्राइवर के पद पर नियुक्त किया गया। वह विशेष चीनी निधि के कर्मचारी के रूप में काम करता रहा। वेतन का भुगतान विशेष चीनी निधि से किया गया। बोनस अंशदायी भविष्य निधि की कटौती के पश्चात प्रतिवादी को वितरित किया गया। राज्य और प्रतिवादी के बीच संबंध नियोक्ता का था, जिसने प्रतिवादी को विशेष चीनी निधि के लिए नियुक्त किया। प्रतिवादी को कभी कोई लाभ नहीं दिया गया और न ही उसे कभी सरकारी कर्मचारी माना गया।
वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2016 (GST Act) के अधिनियमित होने के कारण विशेष चीनी निधि 1 जुलाई, 2017 से निरस्त कर दी गई। राज्य सरकार ने विशेष चीनी निधि के अंतर्गत नियुक्त सभी कर्मचारियों को विभिन्न गन्ना विकास परिषदों में समाहित कर लिया। अतः 07.03.2019 को प्रतिवादी की सेवा समाहित कर ली गई। तत्पश्चात प्रतिवादी को गन्ना विकास परिषद, नवाबगंज, जिला गोंडा में स्थानांतरित कर दिया गया तथा गोंडा में अपनी सेवा के दौरान प्रतिवादी की 21.05.2021 को मृत्यु हो गई।
प्रतिवादी के कानूनी उत्तराधिकारी ने प्रतिवादी को सरकारी कर्मचारी के रूप में माना जाने की अनुमति देने के लिए रिट याचिका दायर की, जिसे सभी परिणामी सेवा लाभों के साथ उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त के कार्यालय में नियुक्त किया गया। एकल न्यायाधीश ने 01.05.2019 को आदेश पारित करके याचिका को अनुमति दी, जिसमें राज्य को प्रतिवादी के दावे पर विचार करने का निर्देश दिया गया।
इससे व्यथित होकर राज्य ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील दायर की।
राज्य द्वारा यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी को कभी भी गन्ना आयुक्त के कार्यालय में नियुक्त नहीं किया गया। प्रतिवादी की नियुक्ति विशेष चीनी निधि के तहत हुई। यह भी तर्क दिया गया कि सरकारी चालक की नियुक्ति उत्तर प्रदेश चीनी विभाग चालक सेवा नियमावली, 1984 द्वारा शासित होती है। इन नियमों के नियम 3 (ए) में विशेष रूप से नियुक्ति प्राधिकारी का प्रावधान है, जो प्रतिवादी के मामले में नहीं था। इसलिए प्रतिवादी हमेशा विशेष चीनी निधि का कर्मचारी था, न कि राज्य सरकार का।
दूसरी ओर, प्रतिवादी द्वारा यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी की नियुक्ति और नियमितीकरण आदेश गन्ना आयुक्त द्वारा पारित किया गया। यह कभी भी इंगित नहीं किया गया कि प्रतिवादी को विशेष चीनी निधि के तहत नियुक्त किया गया। यह भी तर्क दिया गया कि गन्ना आयुक्त 1984 के नियम 3(ए) के अंतर्गत आते हैं, इसलिए प्रतिवादी को 1984 के नियमों के अनुसार नियुक्त किया गया। यह भी तर्क दिया गया कि विशेष चीनी निधि में ड्राइवर का कोई पद स्वीकृत नहीं था, इसलिए प्रतिवादी की नियुक्ति उत्तर प्रदेश राज्य के गन्ना विभाग में थी।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने पाया कि गन्ना आयुक्त द्वारा की गई नियुक्ति अधिनियम 1961 की धारा 3(12) के अन्तर्गत गठित विशेष चीनी निधि समिति के अधिकृत नामित सदस्य की ओर से की गई। गन्ना आयुक्त, चालक सेवा नियम, 1984 के अन्तर्गत नियुक्ति प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर रहे थे। यह पाया गया कि प्रतिवादी के सेवाकाल के दौरान उसके वेतन से अंशदायी भविष्य निधि की कटौती की जा रही थी तथा कभी भी जी.पी.एफ. की कटौती नहीं की गई।
न्यायालय ने यह भी पाया कि विशेष चीनी निधि में चालक का कोई स्वीकृत पद नहीं था, अतः प्रतिवादी को अस्थायी एवं दैनिक वेतन पर चालक के रूप में नियुक्त किया गया तथा वेतन का भुगतान उक्त निधि से किया जा रहा था। अतः प्रतिवादी को गन्ना आयुक्त द्वारा चालक नियम, 1984 के अन्तर्गत चालक के रूप में नियुक्त नहीं किया गया। यह भी पाया गया कि प्रतिवादी की सेवा विशेष चीनी निधि के अन्तर्गत की गई।
न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता, क्योंकि उसकी नियुक्ति ड्राइवर सेवा नियम, 1984 के अनुसार स्वीकृत पद के विरुद्ध नहीं थी। न्यायालय ने आगे कहा कि एकल न्यायाधीश ने यह मान कर गलती की कि गन्ना आयुक्त प्रतिवादी को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दे सकता है। एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को न्यायालय ने रद्द कर दिया।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अपील स्वीकार कर ली गई।