1988 रोड रेज मामला : नवजोत सिंह सिद्धू की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
1988 में पंजाब के पटियाला में रोड रेज के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस जे चेलामेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच तय करेगी कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व क्रिकेटर और पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू व उनके दोस्त रूपिंदर सिंह संधू को तीन साल की सजा के फैसले को बरकरार रखा जाए या नहीं। पीठ ने पक्षकारों को 24 अप्रैल तक लिखिस सबमिशन दाखिल करने को कहा है।
वहीं सुनवाई के दौरान सिद्धू की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आर एस चीमा ने दोहराया कि वो निर्दोष हैं और पुलिस ने उन्हें फंसाया। यहां तक कि कोई भी गवाह खुद आगे नहीं आया बल्कि पुलिस ने गवाहों से बयान लिए। इस घटना के पीछे उनका कोई उद्देश्य नहीं था। वो ये नहीं जानते थे कि गुरनाम सिंह को दिल की बीमारी है।
वहीं पिछली सुनवाई में पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जाए जिसमें नवजोत सिंह सिद्धू व उनके साथी को गैर इरादतन हत्या का दोषी मानते हुए को 3 साल की सजा सुनाई थी। खास बात ये है कि फिलहाल सिद्धू पंजाब सरकार में ही मंत्री हैं।
जस्टिस जे चेलामेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच के सामने पंजाब सरकार के वकील ने कहा कि सिद्धू के ये आरोप बेबुनियाद हैं कि उन्हें जानबूझकर कर नही फंसाया गया। ये रोड रेज का मामला है और ऐसा कोई सबूत नही है जिससे साबित हो कि गुरनाम सिंह की मौत दिल के दौरे से हुई थी।
सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता की और से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार और सिद्धार्थ लूथरा ने कहा है कि सिद्धू के ख़िलाफ़ हत्या का मामला बनता है।सिद्धू को ये पता था कि वो क्या कर रहे है, उन्होंने जो किया समझबूझ कर किया इसलिए उनपर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।
शिकायतकर्ता की ओर से कहा गया कि अगर ये रोड रेज का मामला होता तो टक्कर मारने के बाद चले जाते लेकिन सिद्धू ने पहले गुरनाम सिंह से कार से निकाला और जोर का मुक्का मारा। यहां तक कि उन्होंने कार की चाभी भी निकाल ली।
नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आर एस चीमा ने दलील दी कि वो निर्दोष है और उन्हें इस मामले में गलत फंसाया गया है।
सिद्धू के वकील ने कहा कि ये मामला किसी को बेरहमी से पीट कर मारने का नही है। इस मामले में कई अहम गवाहों के बयान पुलिस ने दर्ज नही किए। निचली अदालत का आरोपमुक्त करने का फैसला सही था। चीमा ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में भी ये बात सामने आई है कि जिस व्यक्ति की मौत हुई उसे बेहद मामूली चोट आई थी। गुरनाम का दिल पहले से ही कमजोर था और ये बात पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आई है।
हाईकोर्ट का आदेश सही नही है और हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर ठीक से विश्लेषण नही किया और अपना नतीजा निकाला जो सही नही है।
गौरतलब है कि 27 दिसम्बर 1988 को सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू की पटियाला में कार पार्किंग को लेकर उनकी गुरनाम सिंह नाम के बुजुर्ग के साथ कहासुनी हो गई। झगडे में गुरनाम की मौत हो गई।सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया। पंजाब सरकार और पीड़ित परिवार की तरफ से मामला दर्ज करवाया गया। साल 1999 में सेशन कोर्ट से सिद्धू को राहत मिली और केस को खारिज कर दिया गया। कोर्ट का कहना था कि आरोपी के खिलाफ पक्के सबूत नहीं हैं और ऐसे में सिर्फ शक के आधार पर केस नहीं चलाया जा सकता।
लेकिन साल 2002 में राज्य सरकार ने सिद्धू के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की। 1 दिसम्बर 2006 को हाईकोर्ट बेंच ने सिद्धू और उनके दोस्त को दोषी माना। 6 दिसम्बर को सुनाए गए फैसले में सिद्धू और संधू को 3-3 साल की सज़ा सुनाई गई और एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगा। सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 10 जनवरी 2007 तक का समय दिया गया। दोनों आरोपियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और 11 जनवरी को चंडीगढ़ की कोर्ट में सरेंडर किया गया। 12 जनवरी को सिद्धू और उनके दोस्त को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सज़ा पर रोक लगा दी। वहीं शिकायतकर्ता भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं और सिद्धू को हत्या का दोषी करार देने की मांग की है।