महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की
महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की मांग वाली याचिका पर सात महीने तक 12 सुनवाई करने के बाद जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच ने इसे खारिज कर दिया। बुधवार को अपना फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा, “ ये याचिका खारिज की जाती है।”
नए तथ्यों के आधार पर महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की मांग वाली याचिका पर बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि अब इस मामले की दोबारा जांच के आदेश नहीं दिए जा सकते।
बेंच ने सारे पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि इस मामले में सारी जांच और कार्रवाई पूरी हो चुकी है। अब कोर्ट को लगता है कि इसमें आगे जांच की जरूरत नहीं है।
याचिकाकर्ता पंकज फडनिस ने पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में एक लिफाफा दिखाते हुए दावा किया था कि उन्होंने न्यूयार्क से कुछ दस्तावेज हासिल किए हैं जो महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित हैं। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि अमेरिका सरकार की ओर से बताया गया है कि भारत सरकार ने इन दस्तावेज पर बैन लगाया है इसलिए वो इन्हें खोल नहीं सकते।
फडनिस चाहते थे कि कोर्ट इन कागजात को दाखिल करने की इजाजत दे लेकिन जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच ने कहा कि पहले वो इनके लिए अर्जी दाखिल करें फिर तय किया जाएगा।
वहीं याचिकाकर्ता ने कहा था कि उन्हें अमेरिका के अटार्नी का पत्र मिला है जिसमें कहा गया है कि ऐसी तकनीक मौजूद है जिसके जरिए पुराने फोटो की फोरेंसिक जांच संभव है।
लेकिन बेंच ने कहा था कि पहले अर्जी दाखिल करें। बेंच ये देखेगी कि क्या इतने पुराने मामले को फिर से खोलने की जरूरत है। बेंच ने अर्जी की कॉपी एमिक्स क्यूरी अमरेंद्र शरण को भी देने को कहा था।
गत 12 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते में देरी और उसके लोकस व अन्य तीन सवालों के जवाब देने को कहा था।
जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच ने कहा, "आप कृपया इस मामले में शामिल व्यक्ति की महानता से दूर रखिए। ये बताइए कि इस मामले में कोई साक्ष्य उपलब्ध है या नहीं। आपको कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का जवाब देना होगा। उनमें से एक देरी है, दूसरा केस में आपका लोकस और तीसरा तथ्य यह है कि देरी के कारण सबूतों का हर टुकड़ा खत्म हो चुका है।”
बेंच ने ये भी कहा था कि कोई भी गवाह अब जिंदा नहीं है। यहां तक कि याचिकाकर्ता जिस फोटो को आधार बना रहे हैं, वो भी गवाही देने के लिए दुनिया में नहीं है।
गौरतलब है कि एमिक्स क्यूरी वरिष्ठ वकील अमरेंद्र शरण ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा था कि इस हत्याकांड की दोबारा जांच की आवश्यकता नहीं है।
करीब 35 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में शरण ने कहा है कि ऐसा कोई सबूत नही मिला है जिससे ये साबित होता हो कि महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने नहीं बल्कि किसी और ने की हो।साथ ही याचिकाकर्ता पंकज फडनिस के उस दावे को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि महात्मा गांधी को तीन नहीं बल्कि चार गोलियां लगी थीं। रिपोर्ट के मुताबिक एक गोली महात्मा गांधी के शरीर में थी और दो बाहर से मिली जबकि दो खाली कारतूस बाहर से देवदास गांधी ने बरामद किए। ये सभी आपस में मैच कर गए थे। चौथी गोली ग्वालियर से मिली थी जो गोडसे की पिस्तौल से मैच नहीं करती
अमरेंद्र शरण ने ये भी कहा है कि ऐसा कोई सबूत नही मिला है जो ये साबित करे कि महात्मा गांधी की हत्या के पीछे किसी और का हाथ था।
जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच ने इस मामले में वरिष्ठ वकील अमरेंद्र शरण को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया था। बेंच ने अमरेंद्र शरण को दस्तावेज देखकर ये बताने को कहा था कि इस केस में पर्याप्त सबूत हैं कि दोबारा जांच के आदेश दिए जा सकते हैं या नहीं। इसी दौरान बेंच ने याचिकाकर्ता को कहा था कि कोर्ट किसी दोषी व्यक्ति को तो सजा दे सकता है लेकिन किसी संगठन को कैसे सजा दी जाए। सवाल है कि अगर महात्मा गांधी की हत्या के पीछे कोई तीसरा शख्स था तो वो कौन था, क्या वो जिंदा है ? जस्टिस बोबडे ने कहा था कि इसके लिए सबूत कहां से आएंगे ये भी बडा सवाल है।
वहीं याचिकाकर्ता पंकज कुमुद चंद्र फडनिस का कहना था कि इस हत्या के पीछे फोर्स 136 संगठन का हाथ था और सुप्रीम कोर्ट को मामले की छानबीन करनी चाहिए।।दरअसल महात्मा गांधी की हत्या को लेकर कई सवाल सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में उठाए गए हैं और साथ ही अनुरोध किया गया है कि नया जांच आयोग गठित करके गांधी की हत्या के पीछे की बड़ी साजिश का खुलासा किया जाए।
अभिनव भारत, मुंबई के शोधार्थी और न्यासी डाक्टर पंकज फडनिस द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि वर्ष 1966 में गठित जस्टिस कपूर जांच आयोग पूरी साजिश का पता लगाने में नाकाम रहा। यह साजिश राष्ट्रपिता की हत्या के साथ पूरी हुई।
फडनिस ने गोडसे और नारायण आप्टे सहित अन्य आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए विभिन्न अदालतों द्वारा सही मानी गई तीन गोलियों की कहानी पर भी सवाल उठाए। दोषियों को 15 नवंबर 1949 को फांसी पर लटकाया गया था जबकि सावरकर को सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ दिया गया। सावरकर से प्रेरित होकर अभिनव भारत, मुंबई की स्थापना 2001 में हुई थी और इसने सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए काम करने का दावा किया था।
फडनिस ने दावा किया कि उनका शोध और उन दिनों की खबरें बताती हैं कि महात्मा गांधी को तीन नहीं बल्कि चार गोलियां मारी गई थीं और तीन तथा चार गोलियां के बीच अंतर अहम है क्योंकि गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को जिस पिस्तौल से महात्मा को गोली मारी थी उसमें सात गोलियों की जगह थी और बाकी की चार बिना चली गोलियां पुलिस ने बरामद की थीं। ऐसे में यह तय है कि उस पिस्तौल से सिर्फ तीन गोलियां चलीं। उन्होंने याचिका में कहा कि इस (गोडसे) पिस्तौल से चौथी गोली आने की कोई संभावना नहीं है। यह दूसरे हत्यारे की बंदूक से आई जो कि वहीं मौजूद था।