विधवाओं को लेकर उदासीन राज्य सरकारें, सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 2-2 लाख का जुर्माना [आर्डर पढ़े]
देशभर की विधवाओं के हालात पर क्या कदम उठाए गए, इस पर जवाब ना देने पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
इनमें उतराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, मिजोरम, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, तमिलनाडू और अरूणाचल प्रदेश के अलावा केंद्रशासित दादर व नगर हवेली शामिल हैं।
जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच ने विधवाओं के लिए उठाए गए कल्याणकारी कदम पर केंद्र सरकार को रिपोर्ट ना देने पर ये जुर्माना लगाया है। जिन राज्यों ने आधी अधूरी रिपोर्ट दी, उन पर भी एक- एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सभी राज्यों की रिपोर्ट के आधार पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी।बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि सूचना मांगने के बावजूद इन राज्यों मे जानकारी नहीं दी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि कोर्ट को इस रवैए से बडी पीडा हुई है लेकिन राज्यों को कुछ ही फर्क पडा है। कोर्ट ने कहा कि लैंगिक न्याय पर बडी बडी बाते कहने का कोई मतलब नहीं रह जाता जब राज्यों के पास विधवाओं के लिए तैयार योजनाएं बताने के लिए पांच मिनट का वक्त तक नहीं है।
कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 30 जनवरी को करेगा।
गौरतलब है कि 11 अगस्त को उत्तर प्रदेश के वृंदावन और देश के दूसरे आश्रमों में रहने वाली विधवाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन विधवाओं के जीवन में रोशनी होनी चाहिए और उन्हें भी आत्मसम्मान से जीवन जीने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाज की विधवाओं के पुनर्विवाह पर स्टीरियोटाइप सोच को बदलने की भी जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर आदेश जारी करते हुए एक कमेटी बनाई जो सारी रिपोर्ट का अध्ययन कर ये तय करेगी कि कैसे इन विधवाओं को समाज में गरिमा से जीने का NGO जागोरी से सुनीता धर, गिल्ड फोर सर्विस से मीरा खन्ना, वकील और एक्टिविस्ट आभा सिंघल जोशी, हेल्पेज इंडिया और सुलभ इंटरनेशनल से नामित एक- एक सदस्य और सुप्रीम कोर्ट की वकील अपराजिता सिंह को शामिल किया है। बेंच ने कहा कि वो विधवाओं के पुनर्विवाह पर भी विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो उन बेआवाज विधवाओं की आवाज बना है और ये आदेश जारी कर अपनी संवैधानिक डयूटी को निभा रहा है ताकि ये महिलाएं गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। इसमें भी कोई संदेह नहीं या कुछ संदेह हो सकता है कि कई हिस्सों में विधवाएं सामाजिक रूप से वंचित हैं या पूरी तरह बहिस्कृत हैं। इसी उम्मीद में वो वृंदावन या दूसरे आश्रम आती हैं लेकिन वहां भी वो आत्मसम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार हैं।
18 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सामाजिक बंधनों की परवाह ना करते हुए वो ऐसी विधवाओं के पुनर्वास से पहले पुनर्विवाह के बारे में योजना बनाए जिनकी उम्र कम है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि पुनर्विवाह भी विधवा कल्याकारी योजना का हिस्सा होना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रोडमैप पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसमें सफाई, पोष्टिक भोजन, सफाई समेत कई मुद्दों पर खामियां हैं। कोर्ट ने यहां तक कहा कि विधवा महिलाओं से बेहतर खाना जेल के कैदियों को मिलता है।
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा था कि विधवाओं के पुनर्वास की बात तो की जाती है लेकिन उनकेपुनर्विवाह केबारे में कोई नहीं बात करता। सरकारी नीतियों में विधवाओं के पुनर्विवाह की बात नहीं है जबकि इसे नीतियों का हिस्सा होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि वृंदावन सहित अन्य अन्य शहरों में विधवा गृहों में कम उम्र की विधवाएं भी हैं। पीठ ने कहा कि यह दुख की बात है कि कम उम्र की विधवाएं भी इन विधवा गृह में रह रही हैं।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति में भी बदलाव करने की बात कही है। अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय नीति 2001 में बनी थी और इसे 16 वर्ष बीत चुके हैं। लिहाजा इसमें बदलाव की जरूरत है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि हमें नहीं लगता कि महिलाओं का सशक्तिकरण हो पाया है। जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि स्थितियों में सुधार हो रहा है। सरकार लगातार प्रयास कर रही है। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार राष्ट्रीय नीति में बदलाव करेगी।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को सरकार की योजनाओं से अवगत कराया। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी(सीएसआर) में विधवाओं के कल्याण पर खर्च करने की शामिल करने की योजना है। उन्होंने कहा कि सरकार को पूरा भरोसा है कि सार्वजनिक उपक्रम इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। साथ ही सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि विधवाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा की योजना है। इस दौरान पीठ ने यह भी सुझाव दिया कि क्यों नहीं इन होम में रहने वाली महिलाओं को पास स्थित बाल सुधार गृह या वृद्धाश्रम में काम करने का मौका दिया जाए।
सुनवाई में विधवाओं के लिए रोडमैप तैयार कर ना देने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर एक लाख का जुर्माना लगाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा था कि आपको विधवाओं की कोई चिंता नहीं है। आप खुद काम नहीं करते औप बाद में कहते हैं की सुप्रीम कोर्ट देश चला रहा है। आपको विधवा महिलाओं के लिए कुछ सोचना चाहिए
दरअसल देश में विधवा महिलाओं के कल्याण को लेकर NGO इनवायरमेंट एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन फाउंडेशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इसमें अतुल सेठी की किताब " वाइट शेडो आफ वृंदावन " का हवाला भी दिया गया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन में रहने वाली विधवा महिलाओं के रहने और मेडिकल आदि के लिए आदेश जारी किए थे और फिर मामले को सारे राज्यों से जोड दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग को सभी राज्यों में जाकर विधवा महिलाओं के हालात पर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई कर रहा है कि केंद्र के एग्रीड एक्शन प्लान में क्या किया गया है।