सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

21 Jan 2024 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (15 जनवरी 2024 से 18 जनवरी 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बार काउंसिल को लॉ स्टूडेंट को सलाह देने के इच्छुक सीनियर वकीलों की सूची प्रकाशित करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने इस सप्ताह राज्य बार काउंसिलों को निर्देश जारी कर उन्हें कानूनी शिक्षा नियम, 2008 की अनुसूची III के नियम 26 के अनुपालन के संबंध में स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए बाध्य किया।

    यह आदेश जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई के बाद दिया गया, जिसमें कॉलेज की छुट्टियों के दौरान लॉ स्टूडेंट को सलाह देने के इच्छुक अनुभवी वकीलों की सूची प्रकाशित करने का आग्रह किया गया। इन सीनियर वकीलों के पास बार में कम से कम 10 साल का अनुभव होना चाहिए और प्रशिक्षुओं का मार्गदर्शन करने में सक्षम होना चाहिए।

    केस टाइटल- नीरज सालोदकर बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया एवं अन्य। | रिट याचिका (सिविल) नंबर 698/2022

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    सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को 30 अप्रैल तक कमजोर गवाह बयान केंद्र स्थापित करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को सभी जिलों में कमजोर गवाह बयान केंद्र (VWDC) स्थापित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया 30 अप्रैल 2024 को या उससे पहले पूरी होनी चाहिए।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ महाराष्ट्र राज्य बनाम बंदू @ दौलत (2018) 11 एससीसी 163 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन में कमजोर गवाह कोर्ट रूम स्थापित करने की आवश्यकता पर विविध आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।

    केस टाइटल: स्मृति तुकाराम बडाडे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य,

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    सीआरपीसी की धारा 197 केवल लोक सेवक के आधिकारिक कर्तव्य पर ही लागू होगी, दस्तावेज गढ़ना आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (17 जनवरी) को एक आपराधिक अपील पर फैसला करते हुए कहा कि फर्जी दस्तावेज बनाने के कृत्य के लिए किसी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के अनुसार अभियोजन की पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि कथित कृत्य उनके आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं हैं।

    इस मामले में हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत पूर्व अनुमति के अभाव में लोक सेवक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था।

    केस : शादाक्षरी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य

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    'COTPA की धारा 5(1) उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होगी, जो तंबाकू के कारोबार में शामिल नहीं': सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिल अभिनेता धनुष और 2014 की फिल्म 'वेला इल्ला पट्टाधारी' के निर्माताओं और वितरकों के खिलाफ सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों पर (Prohibition of Advertisement and Regulation of Trade and Commerce, Production, Supply and Distribution Act) 2003 (COTPA) की धारा 5 के तहत आपराधिक कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी।

    सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसने COTPA के तहत तमिलनाडु पीपुल्स फोरम फॉर टोबैको कंट्रोल (TNPFTC) के राज्य संयोजक एस. सिरिल अलेक्जेंडर द्वारा दायर शिकायत खारिज कर दी।

    केस का नाम: एस. सिरिल अलेक्जेंडर बनाम राज्य, जिसका प्रतिनिधित्व डॉ. वी. के. पलानी द्वारा किया गया।

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    सुप्रीम कोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि विवाद में शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए आयुक्त नियुक्त करने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 जनवरी) को कृष्ण जन्मभूमि मामले में मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए आयुक्त नियुक्त करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगाई।

    जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 14 दिसंबर के आदेश के खिलाफ मस्जिद कमेटी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया, जिसके द्वारा उसने मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए अदालत आयुक्त की नियुक्ति के लिए आवेदन की अनुमति दी थी।

    केस टाइटल- प्रबंधन समिति, ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह बनाम भगवान श्री कृष्ण विराजमान और अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 481/2024

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    मुकदमे की सुनवाई योग्यता पर सवाल उठाया जाने पर अदालत को अंतरिम राहत देने से पहले प्रथम दृष्टया क्षेत्राधिकार तय करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी सिविल मुकदमे की सुनवाई योग्यता पर सवाल उठाया जाता है और उस आधार पर अंतरिम राहत देने का विरोध किया जाता है तो अंतरिम राहत देने का निर्णय लेने से पहले ट्रायल कोर्ट को कम से कम प्रथम दृष्टया संतुष्टि करनी चाहिए।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा, "जहां सिविल कोर्ट के समक्ष किसी मुकदमे में अंतरिम राहत का दावा किया जाता है और ऐसी राहत दिए जाने से प्रभावित होने वाला पक्ष, या मुकदमे का कोई अन्य पक्ष, उसकी सुनवाई योग्यता का मुद्दा उठाता है, या यह कानून द्वारा वर्जित है और इस पर भी बहस करता है, इस आधार पर कि अंतरिम राहत नहीं दी जानी चाहिए, किसी भी रूप में राहत देने से पहले कम से कम प्रथम दृष्टया संतुष्टि के गठन और रिकॉर्डिंग से पहले होना चाहिए कि मुकदमा सुनवाई योग्य है, या यह कानून द्वारा वर्जित नहीं है।"

    केस टाइटल: आसमा लतीफ़ और अन्य बनाम शब्बीर अहमद और अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 482 को लागू करने पर हाईकोर्ट को सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए कि क्या आरोप अपराध बनते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल के आदेश में कहा कि जब हाईकोर्ट को आपराधिक मामला रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का उपयोग करने के लिए कहा गया तो यह इस सवाल पर विचार करने के लिए हाईकोर्ट के लिए बाध्य है कि क्या आरोप अपराध का गठन करेंगे, जो आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आरोप लगाया गया।

    हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए, जिसने आरोपी व्यक्ति के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर असंतोष व्यक्त किया कि आईपीसी की धारा 420, 406, 504 और धारा 56 के तहत अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक सामग्री आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ नहीं बनती है।

    केस टाइटल: राजाराम शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य।

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