भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 407 से 412 तक मृत्युदंड की पुष्टि के लिए सत्र न्यायालय से हाईकोर्ट तक की पूरी न्यायिक प्रक्रिया
Himanshu Mishra
8 April 2025 1:19 PM

मृत्युदंड (Death Penalty) भारतीय आपराधिक कानून के तहत सबसे कठोर सज़ा मानी जाती है। इसकी गंभीरता को देखते हुए कानून में यह स्पष्ट रूप से तय किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति को Sessions Court (सत्र न्यायालय) द्वारा मृत्युदंड की सज़ा दी जाती है, तो वह सज़ा तब तक लागू नहीं की जा सकती जब तक High Court (उच्च न्यायालय) उसकी पुष्टि (Confirmation) न कर दे।
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 (बीएनएसएस) के अध्याय 30 में इसी प्रक्रिया का पूरा विवरण दिया गया है। इस अध्याय में Sections 407 से 412 तक कुल छह धाराएँ शामिल हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि मृत्युदंड की सज़ा न्यायोचित और गहराई से जांची गई हो।
धारा 407: मृत्युदंड की पुष्टि के लिए सत्र न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय को प्रेषण
(Section 407: Submission of Death Sentence by Sessions Court for Confirmation)
इस धारा के अनुसार, यदि Sessions Court किसी आरोपी को मृत्युदंड की सज़ा देता है, तो उसे तुरंत पूरी कार्यवाही (Proceedings) उच्च न्यायालय को भेजनी होती है। जब तक High Court इस सज़ा की पुष्टि नहीं करती, तब तक इसे लागू नहीं किया जा सकता। साथ ही, सत्र न्यायालय को उस व्यक्ति को जेल में हिरासत (Jail Custody) में रखने के लिए वारंट के ज़रिए जेल भेजना अनिवार्य होता है।
इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी व्यक्ति को इतनी गंभीर सज़ा केवल एक न्यायालय के निर्णय के आधार पर न दी जाए, बल्कि High Court द्वारा पुनः पूरी जांच-पड़ताल हो। यह एक तरह की Automatic Appeal की तरह काम करता है, चाहे आरोपी अपील करे या नहीं।
धारा 408: अतिरिक्त जांच या साक्ष्य एकत्र करने की शक्ति (Section 408: Power to Direct Further Inquiry or Take Additional Evidence)
यह धारा High Court को यह शक्ति देती है कि वह चाहे तो किसी विशेष बिंदु पर दोबारा जांच (Further Inquiry) करवा सकती है या अतिरिक्त साक्ष्य (Additional Evidence) जुटवा सकती है। High Court यह कार्य खुद भी कर सकती है या Sessions Court को निर्देश दे सकती है कि वह यह जांच या साक्ष्य एकत्र करे।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए किसी केस में गवाह की गवाही अधूरी रह गई हो या कोई दस्तावेज़ न्यायालय के सामने नहीं आ पाया हो, तो High Court उसे फिर से पेश करने का आदेश दे सकती है।
इस धारा के अंतर्गत यह भी कहा गया है कि जब तक High Court विशेष रूप से आदेश न दे, तब तक जांच के दौरान आरोपी की उपस्थिति आवश्यक नहीं मानी जाएगी। यदि Sessions Court द्वारा जांच या साक्ष्य संग्रह किया जाता है, तो उसका प्रमाण पत्र High Court को भेजा जाना ज़रूरी होता है।
धारा 409: High Court के अधिकार (Section 409: Powers of the High Court)
जब High Court को Section 407 के अंतर्गत कोई मामला प्राप्त होता है, तब उसके पास कई विकल्प होते हैं।
पहला, वह मृत्युदंड की सज़ा को Confirm कर सकती है या कानून के अनुसार कोई दूसरी सज़ा दे सकती है। दूसरा, वह दोषसिद्धि (Conviction) को रद्द कर सकती है और आरोपी को किसी ऐसे अपराध में दोषी ठहरा सकती है जिसमें Sessions Court भी दोषी ठहरा सकती थी, या फिर उसी आरोप या संशोधित आरोप (Amended Charge) पर दोबारा मुकदमा (New Trial) चलाने का आदेश दे सकती है। तीसरा विकल्प यह है कि High Court आरोपी को पूर्ण रूप से बरी (Acquit) कर सकती है।
इस धारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जब तक Appeal करने की समय-सीमा समाप्त न हो जाए, या यदि Appeal दायर की गई है तब तक उसका निपटारा न हो जाए, तब तक High Court कोई अंतिम Confirmation Order जारी नहीं कर सकती।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि दोषसिद्ध व्यक्ति को अपील का पूरा अवसर मिले और उसके अधिकारों का उल्लंघन न हो।
धारा 410: दो या अधिक न्यायाधीशों द्वारा हस्ताक्षर की आवश्यकता (Section 410: Confirmation or New Sentence to be Signed by Two Judges)
यदि High Court में यह मामला दो या दो से अधिक न्यायाधीशों की पीठ (Bench) के सामने पेश होता है, तो सज़ा की पुष्टि या नया आदेश कम से कम दो न्यायाधीशों के हस्ताक्षर से होना आवश्यक है।
यह व्यवस्था Collective Judicial Wisdom यानी सम्मिलित न्यायिक समझदारी को बढ़ावा देती है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि इतनी गंभीर सज़ा किसी एक न्यायाधीश की राय पर आधारित न हो।
धारा 411: न्यायाधीशों के बीच मतभेद की स्थिति में प्रक्रिया (Section 411: Procedure in Case of Difference of Opinion)
यदि High Court में यह मामला दो या अधिक न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुना गया और उनके बीच राय समान रूप से बँटी हुई (Equally Divided Opinion) हो, तो मामला Section 433 के अनुसार निपटाया जाएगा।
Section 433 में यह प्रावधान है कि ऐसे मामलों में एक और न्यायाधीश को शामिल किया जाएगा और फिर बहुमत (Majority) के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि केवल न्यायाधीशों के बीच मतभेद के कारण कोई मामला अधर में न रह जाए।
धारा 412: आदेश को सत्र न्यायालय को भेजने की प्रक्रिया (Section 412: Procedure for Sending High Court's Order to Sessions Court)
जब High Court मृत्युदंड की पुष्टि करती है या कोई नया आदेश पारित करती है, तो High Court के संबंधित अधिकारी को बिना देर किए यह आदेश सत्र न्यायालय को भेजना होता है।
इस आदेश को या तो भौतिक रूप (Physically) में या Electronic माध्यम (Digitally) से भेजा जा सकता है। यह आदेश High Court की मुहर (Seal) के साथ और अधिकारी के आधिकारिक हस्ताक्षर से प्रमाणित होना चाहिए।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि निर्णयों के क्रियान्वयन (Execution) में देरी न हो और आदेश की वैधता स्पष्ट बनी रहे।
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 के अध्याय 30 में मृत्युदंड की पुष्टि की पूरी प्रक्रिया को बहुत ही बारीकी से तय किया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि मृत्युदंड जैसी गंभीर सज़ा केवल तभी दी जाए जब उच्च न्यायालय उसे विधिक और नैतिक दोनों दृष्टिकोणों से सही माने।
Section 407 से 412 तक की ये धाराएँ केवल तकनीकी प्रक्रियाएँ नहीं हैं, बल्कि यह भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था की गहराई और मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। यह अध्याय यह सुनिश्चित करता है कि मृत्युदंड केवल अंतिम उपाय के रूप में, पूरी तरह विचार-विमर्श और न्यायिक समीक्षा (Judicial Scrutiny) के बाद ही दी जाए।
इस पूरी व्यवस्था से यह स्पष्ट होता है कि कानून न केवल दोषियों को दंडित करने का माध्यम है, बल्कि वह यह भी सुनिश्चित करता है कि निर्दोष को गलत सज़ा न मिले। इसीलिए High Court की पुष्टि की यह प्रक्रिया भारतीय संविधान के Article 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की आत्मा से पूरी तरह मेल खाती है।