न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को सूचना देने से संबंधित प्रावधान : धारा 19 राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम

Himanshu Mishra

8 April 2025 1:24 PM

  • न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को सूचना देने से संबंधित प्रावधान : धारा 19 राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम

    राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act) के अंतर्गत न्यायालय शुल्क (Court Fee) और विषय-वस्तु के मूल्यांकन (Valuation of Subject-matter) से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और न्यायसंगतता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं। इस अधिनियम की धारा 19 एक ऐसा ही महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह उचित समझे तो राज्य सरकार को ऐसे मामलों में सूचना दे सकता है जिनमें न्यायालय शुल्क के निर्धारण या विषय-वस्तु के मूल्यांकन से जुड़ी कोई जांच या सुनवाई होनी है।

    यह धारा न्यायालय की प्रक्रिया में राज्य सरकार की भूमिका को स्पष्ट करती है और सुनिश्चित करती है कि यदि किसी मामले में शुल्क या मूल्य निर्धारण विवादास्पद है, तो राज्य सरकार की ओर से भी पक्ष रखा जा सके। इस लेख में हम धारा 19 की सरल भाषा में विस्तृत व्याख्या करेंगे, साथ ही संबंधित अन्य धाराओं जैसे धारा 10 से 14 और 17 व 18 से इसका संबंध भी स्पष्ट करेंगे ताकि पाठक को संपूर्ण समझ मिल सके।

    धारा 19 की मूल भावना: राज्य सरकार को सूचना देने की शक्ति

    धारा 19 के अनुसार, यदि किसी वादपत्र (Plaint), लिखित कथन (Written Statement), आवेदन पत्र (Petition), अपील ज्ञापन (Memorandum of Appeal) या किसी अन्य दस्तावेज से संबंधित न्यायालय शुल्क की देनदारी या विषय-वस्तु के मूल्यांकन को लेकर न्यायालय के समक्ष कोई जांच (Inquiry) हो रही है, और न्यायालय को लगता है कि उस मामले में राज्य सरकार को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक या न्यायसंगत है, तो वह राज्य सरकार को इस संबंध में सूचना दे सकता है।

    यह सूचना तब दी जाती है जब न्यायालय यह महसूस करता है कि मामला केवल पक्षकारों के मध्य का नहीं है, बल्कि उसमें सार्वजनिक राजस्व (Public Revenue) या राज्य की आय (State Revenue) का भी तत्व मौजूद है। क्योंकि न्यायालय शुल्क सीधे राज्य सरकार की आय से जुड़ा हुआ विषय है, इसलिए यदि न्यायालय को लगता है कि शुल्क कम दिया गया है या मूल्यांकन ठीक नहीं है, तो राज्य सरकार को उसमें सुचित करना न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता के लिए आवश्यक हो जाता है।

    राज्य सरकार की भूमिका: एक पक्षकार के रूप में उपस्थिति

    जैसे ही राज्य सरकार को इस धारा के तहत सूचना दी जाती है, उसे उस वाद (Suit) या कार्यवाही (Proceeding) में एक पक्षकार (Party) मान लिया जाता है, लेकिन केवल उस मुद्दे (Question) के संदर्भ में जो न्यायालय शुल्क या मूल्यांकन से संबंधित हो। इसका अर्थ है कि राज्य सरकार पूरे वाद में पक्षकार नहीं होगी, बल्कि केवल उस विशेष प्रश्न पर ही उसकी उपस्थिति और पक्ष रखा जाना आवश्यक होगा।

    यह प्रावधान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि न्यायालय केवल पक्षकारों के कथनों के आधार पर निर्णय ले और बाद में यह पता चले कि शुल्क या मूल्यांकन में त्रुटि हो गई, तो राज्य के राजस्व को नुकसान हो सकता है। इसलिए, राज्य सरकार को इसमें भाग लेने का अधिकार दिया गया है ताकि वह अपने राजस्व हितों की रक्षा कर सके।

    न्यायालय का अंतिम आदेश और उसका प्रभाव

    धारा 19 में यह भी कहा गया है कि यदि राज्य सरकार को सूचना दी गई है और वह उस प्रश्न पर पक्षकार है, तो जब न्यायालय उस वाद या कार्यवाही में अंतिम आदेश (Final Order) या डिक्री (Decree) पारित करता है, तो उसमें न्यायालय शुल्क या मूल्यांकन से संबंधित निर्णय भी शामिल माना जाएगा।

    इसका सीधा अर्थ यह है कि शुल्क या मूल्यांकन से जुड़ा निर्णय भी उसी अंतिम निर्णय का हिस्सा माना जाएगा और उस पर उसी प्रकार प्रभाव लागू होगा जैसा अन्य वाद में होता है। यह बात इसलिए कही गई है ताकि शुल्क या मूल्यांकन से जुड़ा आदेश अलग से विवादास्पद न बन जाए और पूरे मामले का एकीकृत निपटारा हो सके।

    पूर्ववर्ती धाराओं से संबंध

    धारा 10 से 14 तक के प्रावधानों में इस बात का उल्लेख है कि वादपत्र, लिखित कथन या आवेदन पत्र पर किस प्रकार शुल्क निर्धारित किया जाएगा, और यदि शुल्क कम है तो न्यायालय किस प्रकार की कार्यवाही करेगा। विशेषकर धारा 11 में न्यायालय की जांच प्रक्रिया (Inquiry Process), शुल्क में कमी पाए जाने पर उसे भरने की समय-सीमा, तथा समय पर भुगतान न होने पर वाद या अपील की खारिजी जैसी बातें कही गई हैं।

    धारा 13 में यह प्रावधान है कि यदि वादी अतिरिक्त शुल्क देने में असमर्थ हो तो वह अपने दावे का कोई भाग त्याग सकता है ताकि पहले से दिए गए शुल्क से ही दावा सुनवाई योग्य बन सके। इसी प्रकार, धारा 14 में प्रतिवादी द्वारा दिए गए लिखित कथन पर भी शुल्क लगाने की प्रक्रिया समझाई गई है।

    इन सभी धाराओं में कहीं भी राज्य सरकार को सीधा पक्षकार नहीं माना गया था, लेकिन धारा 19 राज्य सरकार को न्यायालय शुल्क से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप का कानूनी आधार देती है।

    धारा 17 और 18 से जुड़ाव

    धारा 17 में न्यायालय शुल्क निरीक्षक (Court-fee Examiners) की नियुक्ति और भूमिका का उल्लेख है। वे न्यायालयों के रिकॉर्ड की जांच करते हैं और यदि कोई शुल्क संबंधित त्रुटि पाते हैं, तो रिपोर्ट देते हैं। इसी प्रकार धारा 18 में न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि वह यह जांच कर सके कि वाद की विषय-वस्तु का मूल्यांकन सही है या नहीं। इसके लिए वह जांच कर सकता है या कमीशन जारी कर सकता है।

    इन दोनों धाराओं का संबंध धारा 19 से इसलिए है क्योंकि जब निरीक्षक रिपोर्ट देते हैं या न्यायालय जांच करता है और शुल्क या मूल्यांकन में कोई संशय सामने आता है, तो उस समय न्यायालय यदि आवश्यक समझे तो राज्य सरकार को सूचना देकर उसे पक्षकार बना सकता है।

    उदाहरण (Illustration)

    मान लीजिए कि एक वादी ने किसी संपत्ति की वसूली के लिए 10 लाख रुपये का दावा करते हुए वादपत्र दायर किया, लेकिन न्यायालय को संदेह हुआ कि वास्तविक मूल्य इससे अधिक है। न्यायालय ने धारा 18 के तहत जांच करवाई और पाया कि संपत्ति का मूल्य 15 लाख रुपये है, जिससे शुल्क भी अधिक बनता है।

    अब यदि न्यायालय को लगता है कि यह मुद्दा राज्य सरकार की आय से जुड़ा है और इसे एकतरफा निर्णय से नहीं सुलझाया जा सकता, तो वह धारा 19 के तहत राज्य सरकार को सूचना देगा। राज्य सरकार इस प्रश्न पर अपना पक्ष रखेगी, और न्यायालय तब अंतिम आदेश देगा। इस आदेश में मूल्यांकन और शुल्क से संबंधित निर्णय को भी वाद का ही हिस्सा माना जाएगा।

    धारा 19 राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम की एक अत्यंत आवश्यक और न्यायपूर्ण धारा है जो न्यायालय को यह शक्ति देती है कि वह राज्य सरकार को न्यायालय शुल्क और विषय-वस्तु मूल्यांकन जैसे मामलों में पक्षकार बनाए। यह प्रक्रिया न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को बढ़ाती है, बल्कि राज्य के राजस्व हितों की भी सुरक्षा करती है। धारा 10 से 14 और धारा 17 व 18 के साथ इसका सामंजस्य इस बात का प्रमाण है कि यह अधिनियम न केवल व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि सरकार की वित्तीय व्यवस्था को भी संतुलित बनाए रखता है।

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