सीआरपीसी की धारा 202 के तहत जांच या पूछताछ करने का दायरा- सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
Live Law Hindi
22 May 2019 4:27 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह दिए गए एक फैसले में दंड प्रक्रिया संहिता यानि सीआरपसी की धारा 202 के तहत जांच या पूछताछ करने के दायरे के बारे मेंसमझाया।
बिड़ला मामले में,जस्टिस आर.भानुमथि वाली पीठ ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 202 के तहत जांच का उद्देश्य यह पता लगाना है कि प्रथम दृष्टया केस बनताहै या नहीं और क्या अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं। फैसले के पेज संख्या 19-29 में सीआरपीसी की धारा 202 के दायरे के बारे मेंबताया गया है।
पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत प्रस्तुत करने पर मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता व उपस्थित गवाहों,यदि कोई हो,की जांच करना आवश्यक है।तत्पश्चात, शिकायत में लगाए गए आरोपों,शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए बयान,गवाहों के बयान आदि को देखने के बाद मजिस्ट्रेट को खुद को इस बात के लिएसंतुष्ट करना होगा कि अभियुक्त या आरोपी के खिलाफ कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार है।ऐसी संतुष्टि के बाद मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 204 के तहतबताई की प्रक्रिया को जारी करने के लिए निर्देश दे सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप,शिकायतकर्ता का बयान व अन्य मौजूद सामग्रीसे यह पता लगना चाहिए कि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार है। कोर्ट ने कहा कि-
"इस धारा के तहत जांच का दायरा शिकायत में लगाए गए आरोपों तक सीमित है ताकि यह पता निर्धारित किया जा सके कि सीआरपीसी की धारा 204 के तहतप्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए या नहीं। या फिर सीआरपीसी की धारा 203 का सहारा लेकर शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया जाना चाहिए किशिकायतकर्ता के बयान व गवाहों के बयान,यदि कोई है तो, के आधार पर कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। सीआरपीसी की धारा 202 के तहतपूछताछ के चरण में,मजिस्ट्रेट केवल शिकायत में लगाए गए आरोपों या शिकायत में दिए गए सबूतों के समर्थन में दिए गए सबूतों को देखता या विचार करता है ताकि खुद को संतुष्ट कर सकेकि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार है।''
कोर्ट ने यह भी कहा कि ,सीआरपीसी की धारा 202 की संशोधित उपधारा (1) के तहत,यह मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी बनती है कि जो आरोपी उसके अधिकार क्षेत्र सेबाहर रहता है,उसे समन जारी करने से पहले ,वह खुद मामले में पूछताछ करे या किसी पुलिस अधिकारी या ऐसे व्यक्ति को जिसे वह उपयुक्त समझे जांच के लिएनिर्देश दे,ताकि यह पता लगाया जा सके कि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं। इस विषय पर विभिन्न निर्णयों का उल्लेखभी किया-
"आरोपी को समन जारी करने के मजिस्ट्रेट के आदेश से यह साफ पता चलना चाहिए कि उन्होंने मामले के तथ्यों और संबंधित कानून पर सोच विचार करते हुए,मस्तिष्क लगाया गया है. प्रक्रिया सोच समझ कर , मस्तिष्क लगा कर जारी की गयी है- इस बात का खुलासा होना चाहिए।एक शिकायत के मामले में आरोपी को समन जारी करने के मामले में मजिस्ट्रेट के कर्तव्यों और यंत्रवत प्रक्रिया न जारी करने के नियम को देखतेहुए मजिस्ट्रेट को शिकायत पर संज्ञान लेते समय मात्र डाकघर की तरह काम नहीं करना चाहिए।''
- न तो प्रक्रिया बिल्कुल यंत्रवत ( अर्थात बिना सोचे-समझे) जारी की जानी चाहिए और न ही अनावश्यक उत्पीड़न के साधन के तौर पर इस्तेमाल की जानी चाहिए।(पंजाब नेशनल बैंक व अन्य बनाम सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा)।
-किसी आरोपी को आपराधिक मामले में समन जारी करना एक गंभीर मामला है और निश्चित रूप से,एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला यंत्रवत रूप में, आदतन नहीं किया जा सकता है।(पेप्सी फूड्स लिमिटेड और अन्य बनाम स्पेशल ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट व अन्य)।