हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

12 April 2021 4:47 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    05 अप्रैल 2021 से 10 अप्रैल 2021 तक हाईकोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    शिक्षक के रूप में आवश्यक कार्य करने के बाद ही राज्य एक शिक्षक को अतिरिक्त कार्य करने के लिए कह सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह रेखांकित करते हुए कि अतिरिक्त कर्तव्यों का पालन करना वह कारण नहीं है जिसके लिए एक शिक्षक नियुक्त किया गया है, हाल ही में निर्देश दिया कि सभी शिक्षक निश्चित रूप से सबसे पहले शिक्षण कार्य पहले करें और उसके बाद ही अतिरिक्त कार्य उन्हें दिया जा सकता है। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने, "यह एक शिक्षक के रूप में आवश्यक कार्यों के प्रदर्शन के बाद ही है कि राज्य एक शिक्षक को अतिरिक्त कार्य करने के लिए कह सकता है। किसी भी परिस्थिति में अतिरिक्त कार्य का प्रदर्शन संबंधित शिक्षक / हेडमास्टर द्वारा शिक्षण कार्य की लागत पर नहीं हो सकता है।"

    केस का शीर्षक - विक्का नंद दुबे बनाम यू.पी. और 4 अन्य लोग [WRIT - A No. - 2679 of 2021]

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    'अगर एक औरत को लगता है कि वह पुरूष के सहयोग के बिना कुछ भी नहीं है, तो यह सिस्टम की विफलता है'': केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां करते हुए बताया कि समाज सिंगल मां को कैसा मानता है और उनसे किस तरह का व्यवहार करता है। कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि राज्य इन सिंगल मां का सहयोग करने के लिए योजनाएं तैयार करे। जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस डॉ कौसर एदप्पागाथ ने कहा कि, जिस देश में लोग देवी की पूजा करते हैं, उस देश में जहाँ लोगों को स्त्री के बारे में सिखाया गया है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः'' (मनुस्मृति (3.56)) (जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों का सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं)। जिस राज्य में हम शत प्रतिशत साक्षरता का दावा करते हैं, वहां महिलाओं के प्रति हमारा रवैया घृणास्पद है; एक सिंगल माँ के लिए कोई वित्तीय या सामाजिक सहयोग नहीं है।

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    पासपोर्ट जारी करने के लिए महबूबा मुफ्ती की याचिका- "एकल पीठ के अवलोकनों से प्रभावित हुए बिना निर्णय लें": पासपोर्ट प्राधिकरण से जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय [डीबी] ने कहा

    जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय ने शुक्रवार (09 अप्रैल) को जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती द्वारा एकल बेंच के फैसले के खिलाफ दायर अपील का निस्तारण कर दिया। इस अपील में मुफ्ती ने एकल बेंच के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमे उनकी संबंधित अधिकारियों को उन्हे पासपोर्ट जारी करने के लिए दिशा-निर्देश की मांग को खारिज कर दिया गया था। न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी और न्यायमूर्ति ताशी राबस्तान की पीठ ने हालांकि, उन्हे पासपोर्ट आवेदन के संबंध में उपलब्ध उपाय अपनाते हुए उपयुक्त प्राधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी।

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    "इससे गलत संदेश जाता है"- महाराष्ट्र में नेताओं को घर पर टीकाकरण की सुविधा पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सवाल किया कि महाराष्ट्र में राजनीतिक नेताओं का घर पर COVID 19 वायरस का टीकाकरण कैसे हो रहा है, यहां तक कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एक समान डोर-टू-डोर सुविधा की अनुपस्थिति में टीकाकरण के लिए नामित केंद्र में जा रहे हैं। सीजे दत्ता ने कहा कि, "जो कुछ भी हुआ, हुआ। लेकिन अगर हमें कोई रिपोर्ट मिलती है कि भविष्य में कोई भी राजनीतिक नेता घर पर टीकाकरण करवा रहा है तो हम इसे देखेंगे। जब प्रधानमंत्री सहित सभी लोग केंद्रों पर जा कर टीकाकरण करवा सकते हैं तो महाराष्ट्र के नेता क्यों नहीं?"

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    दिल्ली दंगों के आरोपी शाहरुख पठान की जमानत याचिका: दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा

    दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सुरेश कैत की एकल न्यायाधीश की पीठ ने आज यानी शुक्रवार को दिल्ली दंगों के आरोपी शाहरुख पठान खान की जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। शाहरुख पठान को दिल्ली दंगा, 2020 की हिंसा के दौरान जाफराबाद में दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल पर कथित रूप से गोलीबारी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। नवंबर में कड़कड़डूमा कोर्ट (दिल्ली) ने पठान को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। शाहरुख पठान का फरवरी, 2020 के दौरान हुए दंगे का वह वीडियो, जिसमें वह एक पुलिसकर्मी पर "फायरिंग शॉट्स" करते हुए दिखाई दे रहा है, सोशल मीडिया/इंटरनेट पर वायरल हो गया था।

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    गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति अधिनियम में 2021 में किए गए संशोधन के तहत कानूनन गर्भपात के लिए ऊपरी सीमा को बढ़ाना 'महत्वपूर्ण': दिल्ली उच्च न्यायालय

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में अधिसूच‌ित मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमेंडमेंट) एक्‍ट, 2021 के जर‌िए किए गए परिवर्तनों को महत्वपूर्ण माना है और कहा है कि ये परिवर्तन सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्टों के निर्णयों के अनुरूप हैं, जिनमें भ्रूण की असामान्यताओं की स्‍थति में 24 सप्ताह की अवधि के बाद भी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी गई है। जस्टिस प्रथिबा एम सिंह की एकल पीठ ने यह टिप्प‌णियां महिमा यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिन्होंने 25 सप्ताह पुराने भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी।

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    वकीलों को जीएसटी/सर्विस टैक्स का भुगतान करने से छूट दी गई है, डिमांड नोटिस जारी करके उन्हें परेशान न करेंः ओडिशा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने जीएसटी कमिश्नर को निर्देश दिया कि वे राज्य के सभी अधिकारियों को जीएसटी आयोग की दरों में स्पष्ट निर्देश जारी करें, ताकि वकीलों को प्रैक्टिस करने के लिए सर्विस टैक्स / जीएसटी के भुगतान के लिए कोई नोटिस न जारी किया जा सके। मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति बी.पी. राउतराय ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी तरह से यह जानने के बावजूद कि अधिवक्ता सेवा कर या जीएसटी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं, जीएसटी आयुक्तालय द्वारा उन्हें नोटिस जारी किए जाते हैं। इस प्रक्रिया पर कोर्ट अपनी चिंता व्यक्त करता है कि अधिवक्ताओं को प्रैक्टिस के कारण उत्पीड़न का सामना नहीं करना चाहिए। विभाग ने उन्हें सेवा कर / जीएसटी का भुगतान करने के लिए नोटिस जारी करने के लिए कहा, जबकि उन्हें इस प्रक्रिया में भी साबित करने के लिए कि वे वकालत की प्रैक्टिस कर रहे हैं, उन्हें ऐसा करने से छूट दी गई है।"

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    अधिवक्ताओं को भरण-पोषण ‌‌ट्रि‌ब्यूनल्स के समक्ष पेश होने का अधिकार, कानूनी प्रतिनिधित्व पर प्रतिबंध असंवैधानिकः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (भरण-पोषण कानून) के तहत गठ‌ित भरण-पोषण ट्र‌िब्यूनल्स के समक्ष पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए वकीलों पर लगे प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चली की खंडपीठ ने पिछले हफ्ते एक मामले में फैसला सुनाया था, जिसमें उन्होंने 2011 में दायर एक याचिका को अनुमति दी थी।

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    दोषी का निर्धारण, मुआवजा देने के लिए आवश्यक नहीं; राज्य नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए बाध्यः पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करे, बुधवार को मुंगेर मां दुर्गा पूजा गोलीबारी घटना में पिछले साल अक्टूबर में मारे गए 18 साल के लड़के के पिता को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपए प्रदान किया है। यह आदेश महत्वपूर्ण है, क्योंकि क्षतिपूर्ति फायरिंग की घटना की जांच लंबित होने के बावजूद दी गई है। जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की एकल पीठ ने कहा कि मुआवजा देने के उद्देश्य से, यह जानना कि गोलीबारी के पीछे कौन था, जो लड़के के दुर्भाग्यपूर्ण निधन का कारण बना, यह अप्रासंगिक है, क्योंकि यह राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के प्राणों की रक्षा करे।

    केस टाइटिल: अमर नाथ पोद्दार बनाम बिहार राज्य और अन्य

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    COVID-19 मास्क के लिए अनुपालन शुल्क अधिवक्ताओं के लिए सामान्य रूप से अधिक हो सकता है, इगो का इश्यू नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के निजी वाहन में अकेले यात्रा करते समय भी COVID-19 प्रोटोकॉल के हिस्से के रूप में मास्क पहनने के आदेश को चुनौती देने वाली 4 अधिवक्ताओं की याचिकाओं को खारिज करते हुए जोरदार शब्दों में कहा, "एक वर्ग के रूप में अधिवक्ताओं के कारण उनके कानूनी प्रशिक्षण का एक उच्च कर्तव्य है कि विशेष रूप से महामारी जैसी परिस्थितियों का अनुपालन करें। मास्क पहनने को अहम् मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है।"

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    "मास्क सुरक्षा कवच की तरह है" : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अकेले वाहन में भी मास्क लगाना अनिवार्य

    न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने आज व्यक्तिगत वाहनों में अकेले यात्रा के दौरान मास्क नहीं पहनने वाले व्यक्तियों पर दिल्ली सरकार द्वारा जुर्माना लगाने की चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मास्क एक "सुरक्षा कवच" की तरह है जो इसे पहनने वाले और इसके आसपास रहने वाले दोनों लोगों की रक्षा करता है। अदालत ने कहा, "वैज्ञानिक और अंतर्राष्ट्रीय सरकारें मास्क पहनने की सलाह देती हैं। महामारी की चुनौती बहुत बड़ी थी और किसी व्यक्ति को टीका लगा या नहीं, मास्क अनिवार्य है।"

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    COVID-19 मामलों में वृद्धि को देखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने फिर से वर्चुअल सुनवाई शुरू की

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र में COVID-19 मामलों में उछाल को देखते हुए मुंबई में अपनी प्रिंसिपल सीट पर फिजिकल सुनवाई करने और सिविल मामलों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनने का फैसला किया। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता में सोमवार को हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। निर्णय में यह भी तय किया या कि सीजे का न्यायालय एक हाइब्रिड प्रारूप में कार्य करेगा और दोनों प्रारूप फिजिकल और वर्चुअल माध्यम से सुनवाई करेगा।

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    "हैरानी की बात है कि जिस लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया था, उसे रेलवे प्लेटफॉर्म पर छोड़ दिया गया": बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधारात्मक उपायों का निर्देश दिया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार की एक वारदात, जिसमें दुष्कर्म के बाद लड़की को रेलवे प्लेटफॉर्म पर छोड़ दिया गया था, पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए जांच अधिकारी को सुधारात्मक उपाय करने और पीड़ित लड़की का पता लगाने का निर्देश दिया है। शोषण को रोकने के लिए निवारक उपाय करने के कर्तव्य की की याद दिलाते हुए, ज‌स्ट‌िस भारती डांगरे की खंडपीठ ने कहा, "ऐसे विधान हैं, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में निहित अनिवार्यता के अनुरूप राज्य को अनिवार्य करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि युवाओं का शोषण न हो।"

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    'परिवार में होने वाले सामान्य झगड़े ऐसी प्रताड़ना के समान नहीं कि एक दुल्हन को आत्महत्या के लिए उकसाएंः दिल्ली कोर्ट ने पति और परिवार के सदस्यों को बरी किया

    दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में उस मृत महिला के पति व ससुराल वालों को बरी कर दिया है, जिसने शादी के एक महीने के भीतर ही आत्महत्या कर ली थी और उन सभी पर दहेज प्रताड़ना,दहेज हत्या और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप लगाए गए थे। कोर्ट ने कहा कि शादी होने के बाद शुरूआती दिनों में परिवार में होने वाले छोटे-मोट झगड़े या कहासुनी ऐसे नहीं होते हैं कि उन्होंने महिला को इस हद तक प्रताड़ित कर दिया था कि वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो गई थी।"

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