सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

17 Sep 2023 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (11 सितंबर 2023 से 15 सितंबर 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    मणिपुर हिंसा | सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों और गवाहों के बयान लेने के तरीकों पर स्पष्टीकरण जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा से जुड़े मामले में स्पष्ट किया कि पीड़ितों और गवाहों के बयान किस माध्यम से लिए जाने हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने इस संबंध में स्पष्टता की मांग करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट को प्राप्त एक पत्र के जवाब में स्पष्टीकरण जारी किया।

    केस टाइटल: डिंगांगलुंग गंगमेई बनाम मुतुम चुरामणि मीतेई और अन्य डायरी नंबर 19206-2023

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    बिलकिस बानो केस । सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को अन्य कैदियों की तुलना में सैकड़ों दिनों के पैरोल का हवाला दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सवाल किया कि क्या बिलकिस बानो मामले में दोषियों द्वारा जुर्माना न भरना जेल में उनके आचरण की जांच करते समय एक महत्वपूर्ण विचार होगा। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में दोषियों को कई अन्य दोषियों के विपरीत कई दिनों की पैरोल पाने का विशेषाधिकार प्राप्त हुआ।

    जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान कई हत्याओं और हिंसक यौन उत्पीड़न के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों को छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पिछले साल, स्वतंत्रता दिवस पर, गुजरात सरकार द्वारा सजा माफ करने के उनके आवेदन को मंज़ूरी मिलने के बाद दोषियों को रिहा कर दिया गया था।

    केस- बिलकिस याकूब रसूल बनाम भारत संघ एवं अन्य। | रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 491 / 2022

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    सबूत एक जैसे होने पर एक आरोपी को दोषी और दूसरे को बरी नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने उन आरोपियों को भी बरी किया, जिन्होंने अपील दायर नहीं की थी

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि महत्वपूर्ण मामलों में संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अधिकार क्षेत्र को स्वत: संज्ञान से भी लागू किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने दरअसल उक्‍त फैसले के जर‌िए कुछ आरोपी व्यक्तियों की सजा को खारिज कर दिया, जबकि उन्होंने खुद कोई अपील दायर नहीं की थी।

    एक अन्य आरोपी व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए, न्यायालय ने कहा कि सभी आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सबूत समान थे। इसलिए, एक आरोपी को बरी किए जाने का लाभ दूसरे आरोपियों को भी दिया जाना चाहिए, भले ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से संपर्क ना किया हो।

    केस टाइटल: जावेद शौकत अली कुरेशी बनाम गुजरात राज्य

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    यह स्वीकार्य नहीं कि एनएलयू, जोधपुर में केवल संविदा शिक्षक हों, नियमित स्टाफ के बिना उत्कृष्टता की उम्मीद नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने जोधपुर की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को केवल संविदा शिक्षकों के भरोसे संचालित होने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा, "कम से कम यह कहें तो यह अस्वीकार्य और अवांछनीय है।"

    कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार, केवल 10 प्रतिशत कर्मचारी ही संविदा कर्मचारी हो सकते हैं। न्यायालय को बताया गया कि एनएलयू के नियमों में हाल ही में 50 प्रतिशत स्थायी कर्मचारियों और 50 प्रतिशत संविदा कर्मचारियों को रखने के लिए संशोधन किया गया था। लेकिन, इस पर भी अमल नहीं हो सका है।

    केस टाइटल: नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर बनाम प्रशांत मेहता और अन्य |Special Leave to Appeal (C) No(s). 13762- 13764/2019

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    एलएमवी लाइसेंस: सुप्रीम कोर्ट ने माना 'मुकुंद देवांगन' का फैसला उलटने से ड्राइवरों की आजीविका पर असर होगा; केंद्र से संशोधनों पर विचार करने का आग्रह किया

    सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बुधवार को हल्के वाहनों के ड्राइविंग लाइसेंस के मुद्दे पर केंद्र से पूछा कि क्या मोटर वाहन अधिनियम 1988 में संशोधन और नीति परिवर्तन के जरिए यह मसला हल किया जा सकता है।

    संविधान पीठ के समक्ष मुद्दा था कि क्या "हल्के मोटर वाहन" के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति उस लाइसेंस के आधार पर "हल्के मोटर वाहन वर्ग के ट्रांसपोर्ट वाहन" को चलाने का हकदार हो सकता है, जिसका वजन 7500 किलोग्राम से अधिक न हो।

    केस टाइटल : एम/एस बजाज एलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रंभा देवी और अन्य| सिविल अपील संख्या 841/2018

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    दिल्ली पुलिस दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर लगे प्रतिबंध को लागू करने की क्या योजना बना रही है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली पुलिस से सवाल किया कि वे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में लगाए गए पटाखा प्रतिबंध को कैसे लागू करने जा रहे हैं। जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस एम एम सुंदरेश की खंडपीठ भारत में पटाखों की बिक्री, खरीद और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि अदालत के निर्देशों के बावजूद, दिल्ली एनसीआर में खुलेआम उल्लंघन हुआ है।

    केस टाइटल: अर्जुन गोपाल बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 728/2015 और संबंधित मामले

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    'पुलिस ब्रीफिंग का परिणाम मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय को दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया; पुलिस महानिदेशकों से सुझाव देने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय को तीन महीने की अवधि के भीतर पुलिस कर्मियों द्वारा मीडिया ब्रीफिंग पर एक व्यापक मैनुअल तैयार करने का निर्देश दिया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) को मैनुअल के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया। इसके अलावा, अदालत ने निर्देश दिया कि इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के इनपुट पर विचार किया जाए।

    केस टाइटल: पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य | सीआरएलए नंबर 1255/1999

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    एनआई एक्ट 148| राशि का 20% जमा करने की शर्त पूर्ण नहीं; असाधारण मामला बनाने पर राहत दी जाती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजा को निलंबित करने की शर्त के रूप में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 148 के तहत न्यूनतम 20% राशि जमा करना एक पूर्ण नियम नहीं है। न्यायालय ने कहा, जब कोई अपीलीय अदालत एक अभियुक्त की सीआरपीसी की धारा 389 के तहत प्रार्थना पर विचार करती है जिसे निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, वह इस पर विचार कर सकती है कि क्या यह एक असाधारण मामला है जिसमें जुर्माना/मुआवजा राशि का 20% जमा करने की शर्त लगाए बिना सजा को निलंबित करने की आवश्यकता है।

    केस टाइटल- जम्बू भंडारी बनाम मप्र राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड - 2023 लाइव लॉ (SC) 776 - 2023 INSC 822

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    मणिपुर: वकील धमकियों के कारण उनकी पैरवी नहीं करना चाहते- सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने बताया

    सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने मंगलवार (12 सितंबर) को बताया कि मणिपुर में विशेष समुदाय के सदस्य राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि वकील धमकियों के कारण उनके लिए पेश होने को तैयार नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट में प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग के मामले से वकीलों के पीछे हटने का उदाहरण दिया, जब उनमें से एक वकील के घर और कार्यालय में तोड़फोड़ की गई।

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    फर्जी मोटर दुर्घटना दावे: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से स्टेटस रिपोर्ट मांगी, बार काउंसिल से दोषी वकीलों के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में पूछा

    सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने मोटर वाहन एक्ट के तहत मुआवजा पाने के लिए फर्जी दावा याचिका दायर (Fake Motor Accident Claims) करने के संबंध में सुनवाई फिर से शुरू की। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की खंडपीठ ने राज्य सरकारों को फर्जी दावों और की गई कार्रवाइयों के संबंध में अपडेट स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, राज्य सरकारों को अदालत को यह बताने के लिए भी कहा गया कि क्या विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है।

    केस टाइटल: सफीक अहमद बनाम आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड

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    माफी योजना का लाभ उठाने में असफल होने के बाद अपील की बहाली की मांग करने वाले करदाता पर कोई रोक नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि अपील एक वैधानिक उपाय है, इसलिए करदाता को उस अपील की बहाली की मांग करने से नहीं रोका जा सकता है, जिसे उसने एमनेस्टी योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए पूर्व शर्त के रूप में वापस ले लिया था, यदि करदाता बाद में योजना का लाभ उठाने में असफल रहा है।

    सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि अपीलीय प्राधिकारी के साथ-साथ केरल हाईकोर्ट को निर्धारिती को अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपनी अपील की बहाली की अनुमति देनी चाहिए थी ताकि योग्यता के आधार पर उसकी सुनवाई की जा सके।

    केस टाइटल: पीएम पॉल बनाम राज्य कर अधिकारी और अन्य।

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    अनुच्छेद 20(1) आपराधिक ट्रायल में प्रक्रियात्मक बदलाव के पूर्वव्यापी आवेदन को नहीं रोकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार (11 सितंबर) को दोहराया कि अपराध होने के बाद प्रक्रिया में कोई भी बदलाव संविधान के अनुच्छेद 20(1) में निहित कानूनों के पूर्वव्यापी आवेदन पर रोक के आधार पर असंवैधानिक नहीं होगा क्योंकि प्रक्रियात्मक मामले उक्त खंड में शामिल नहीं थे।

    यह मानते हुए कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6ए को असंवैधानिक घोषित करने वाले उसके 2014 के फैसले का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा, अदालत ने धारा 6ए की रूपरेखा का विश्लेषण किया, विशेष रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(1) के तहत सुरक्षित सुरक्षा के संदर्भ में।

    केस: केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम डॉ आर आर किशोर | 2007 की आपराधिक अपील संख्या 377 और अन्य संबंधित मामले

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    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका को बड़ी बेंच के पास भेजा, कहा- आईपीसी की जगह नया विधेयक पिछले मामलों को प्रभावित नहीं कर सकता

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 सितंबर) को राजद्रोह कानून (भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को कम से कम 5 जजों की पीठ के पास भेज दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि बड़ी बेंच के संदर्भ की आवश्यकता है, क्योंकि 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले में 5-न्यायाधीशों की पीठ ने इस प्रावधान को बरकरार रखा था।

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    डीबीएस बैंक निदेशकों पर विलय से पहले लक्ष्मी विलास बैंक के कृत्यों के लिए अभियोजन नहीं चलाया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि डीबीएस बैंक और उसके निदेशक, जिन्हें लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) के साथ विलय के बाद नियुक्त किया गया था और जिनकी नियुक्तियों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंज़ूरी दे दी थी, को पूर्ववर्ती एलवीबी के निदेशक के कार्यों के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

    न्यायालय ने कहा, “वर्तमान संदर्भ में, बैंकिंग प्रणाली में जनता का विश्वास तब खतरे में पड़ गया जब आरबीआई ने हस्तक्षेप किया और मोहलत दे दी और डीबीएस को पूर्ववर्ती एलवीबी की संपूर्ण कार्यप्रणाली, प्रबंधन और संपत्ति को संभालने के लिए कहा। एलवीबी के कृत्यों के लिए डीबीएस पर मुकदमा चलाने की अनुमति देना, जो आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं, न्याय का मखौल उड़ाना होगा। इसलिए, एफआईआर से उत्पन्न होने वाली लंबित आपराधिक कार्यवाही, जिस हद तक इसमें डीबीएस शामिल है और सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया जाता है। आक्षेपित निर्णय को निरस्त किया जाता है। डीबीएस द्वारा अपील की अनुमति दी गई है।"

    केस : डीबीएस बैंक इंडिया लिमिटेड बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य और अन्य

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    जेल में बंद आरोपियों को अदालत के समक्ष पेश करना पुलिस का कर्तव्य है, पुलिस की लापरवाही के लिए आरोपियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब आरोपी व्यक्ति जेल में हैं तो यह पुलिस का कर्तव्य है कि उन्हें ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किया जाए। यदि पुलिस उन्हें अदालत में पेश करने में विफल रहती है तो पुलिस की ऐसी लापरवाही का खामियाजा आरोपियों को नहीं भुगतना चाहिए।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने एक जमानत याचिका (सतेंद्र बाबू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य ) पर फैसला करते हुए ये टिप्पणियां कीं। आरोपी एक साल चार महीने तक सलाखों के पीछे रहा और आरोप पत्र दाखिल किया गया।

    केस टाइटल: सतेंद्र बाबू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, डीएसपीई एक्ट की धारा 6ए को रद्द करने वाले 2014 के फैसले का पूर्वव्यापी प्रभाव

    सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने सोमवार को घोषणा की कि उनका 2014 का एक फैसला, जिसके तहत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6ए को असंवैधानिक घोषित किया गया था, पूर्वव्यापी रूप से प्रभावी होगा। इसका मतलब यह है कि धारा 6ए को, उस तारीख से लागू नहीं माना जाएगा, जिस तारीख को इसे शामिल किया गया था।

    डीपीएसई अधिनियम की धारा 6ए में तय किया गया है कि सीबीआई को संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के स्तर के अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने के लिए पूर्व अनुमति लेनी चाहिए। सुब्रमण्यम स्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में 2014 के फैसले में इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया गया था।

    केस टाइटलः सीबीआई बनाम डॉ आरआर किशोर | आपराधिक अपील संख्या 377/2007 और अन्य संबंधित मामले

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    सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों द्वारा एजीआर बकाया भुगतान में ढील देने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा; कहा- आदेशों को संशोधित करने के लिए आवेदन दाखिल करना अधिक उचित था

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उस जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स के कारण समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) के भुगतान की शर्तों में ढील देने के सितंबर 2021 के कैबिनेट फैसले को चुनौती दी गई थी। जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 01.09.2020 के फैसले को लागू करने की भी मांग की गई।

    इस फैसले में कहा गया था कि जो टेलीकॉम कंपनियां एजीआर बकाया का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं, उन्हें 31 मार्च, 2021 तक बकाया राशि का 10% भुगतान करना होगा। केंद्र द्वारा अपने कैबिनेट निर्णय के माध्यम से पेश की गई बैंक गारंटी में कमी, ब्याज में कमी और स्पेक्ट्रम शेयरिंग फीस को माफ करने के खिलाफ शिकायतें दर्ज की गई थीं।

    केस टाइटल: अंशुल गुप्ता बनाम प्रधान मंत्री कार्यालय, रिट याचिका (सिविल) संख्या 635/2023

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    रिटन वर्ज़न दाखिल न करने के बावजूद पार्टी को एनसीडीआरसी के समक्ष अंतिम दलील देने का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बरकरार रखते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली (एनसीडीआरसी) के फैसले को रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यद्यपि विपरीत पक्ष ने अपना लिखित संस्करण (Written Version) दाखिल नहीं किया है और एनसीडीआरसी के समक्ष कार्यवाही में भाग नहीं लिया है, फिर भी उसे एनसीडीआरसी के समक्ष अंतिम दलील देने का अधिकार है।

    जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने पाया कि शिकायतकर्ता के मामले पर उसकी योग्यता के आधार पर विचार करते हुए विपरीत पक्ष को सुनने से इनकार करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    केस टाइटल : एआरएएन इंफ्रास्ट्रक्चर इंडिया लिमिटेड बनाम हारा प्रसाद घोष, सिविल अपील डायरी नंबर। 31182/2023

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