Panchayat Polls | फर्जी या वास्तविक वोट? ऐसे विवादों का निपटारा केवल चुनाव याचिका में ही हो सकता है: उत्तराखंड हाईकोर्ट

Update: 2025-08-04 05:01 GMT

पिछले हफ़्ते उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा कि पंचायत चुनावों में फ़र्ज़ी मतदान से जुड़े आरोप तथ्य पर सवाल उठाते हैं और इन पर केवल चुनाव याचिका में ही फैसला हो सकता है।

जस्टिस रवींद्र मैठाणी की पीठ ने 'हाथ-पर-हाथ धरे' रहने का रुख़ अपनाते हुए विशेष मतदान केंद्र में डाले गए वोटों को रद्द करने और 'फर्जी' वोट बनवाने के 'भ्रष्ट' तरीके में शामिल दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ स्वतंत्र जाँच की मांग वाली रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

संक्षेप में मामला

यह रिट याचिका राजेंद्र सिंह चौहान द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने दावा किया कि उन्होंने क्षेत्र जोशी गोथान, ब्लॉक और तहसील कालसी, ज़िला देहरादून से क्षेत्र पंचायत 2 की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ा था और चुनाव के दौरान 38 फ़र्ज़ी वोट डाले गए थे।

इसलिए उन्होंने उन वोटों को रद्द करने और मामले की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की।

अदालत के समक्ष राज्य चुनाव आयोग ने दलील दी कि चूंकि यह मामला चुनावी विवाद से संबंधित है, इसलिए इस पर सुनवाई की आवश्यकता होगी।

उन्होंने तर्क दिया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 234-ओ और उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 की धारा 131-एच के तहत लगाए गए प्रतिबंधों के मद्देनजर, रिट याचिका में आरोपों पर निर्णय नहीं लिया जा सकता।

शुरुआत में पीठ ने 2016 के अधिनियम की धारा 131-एच और संविधान के अनुच्छेद 234-ओ का उल्लेख किया और कहा कि हालांकि वैधानिक प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दिए गए उपाय को सीमित नहीं कर सकते। फिर भी इस अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किन परिस्थितियों में किया जाना चाहिए, इस बारे में स्व-निर्धारित सीमाएं हैं।

इसके अलावा, न्यायालय ने हाईकोर्ट के हालिया आदेश (25 जुलाई, 2025 को निर्णीत) को भी ध्यान में रखा, जिसमें पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग एवं अन्य बनाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2018 के निर्णय की निम्नलिखित टिप्पणियों का उल्लेख किया गया था:

"एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद यह सामान्य कानून है कि इसे बीच में ही बाधित नहीं किया जाना चाहिए। लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रिया को पवित्रता प्रदान की जाती है। यही कारण है कि एक सुसंगत मिसाल कायम करते हुए इस न्यायालय ने कानून के अनुशासन पर ज़ोर दिया ताकि किसी चुनाव की वैधता को चुनौती देने वाली किसी भी चुनौती का समाधान शासनकारी क़ानून के तहत प्रदत्त चुनाव याचिका के माध्यम से किया जा सके।"

एकल जज ने आगे कहा कि श्री राम सिंह मामले (सुप्रा) में हाईकोर्ट ने गोवा राज्य एवं अन्य बनाम फौजिया इम्तियाज शेख एलएल 2021 एससी 158 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2021 के फैसले का भी हवाला दिया और निम्नलिखित टिप्पणी की:

"गोवा राज्य (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के पैरा 68.1 में कहा था कि चुनाव की अधिसूचना की तारीख से लेकर परिणाम की घोषणा की तारीख तक अनुच्छेद 243-जेडजी(बी) में निहित गैर-बाधित खंड द्वारा न्यायिक हस्तक्षेप अनिवार्य है।"

बता दें, राम सिंह मामले (सुप्रा) में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नामांकन पत्रों की अनुचित स्वीकृति के खिलाफ दायर एक रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास चुनाव याचिका दायर करने का विकल्प था।

इस पृष्ठभूमि में वर्तमान मामले में भी पीठ ने मतदान केंद्र संख्या 75, जूनियर हाई स्कूल, दातनु (पूर्ववर्ती बदनु), ब्लॉक और तहसील कालसी, जिला देहरादून, मतदान बूथ संख्या 82, जूनियर हाई स्कूल, दातनु (पूर्ववर्ती बदनु), ब्लॉक तहसील कालसी, जिला देहरादून में फर्जी वोट डाले जाने का दावा करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

Case title - Rajendra Singh Chauhan vs. State Election Commission and Others

Tags:    

Similar News