NIA Act | सेशन कोर्ट की अपील भी खंडपीठ के समक्ष: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी हिंसा मामले के मुख्य आरोपी की जमानत याचिका खारिज की
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को हल्द्वानी हिंसा मामले के मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक की जमानत याचिका खारिज की।
जस्टिस रवींद्र मैथानी की पीठ ने जमानत याचिका को सुनवाई योग्यता के आधार पर खारिज करते हुए कहा कि सेशन कोर्ट (जिसे 'स्पेशल कोर्ट' के रूप में कार्य करने का अधिकार है) द्वारा जमानत देने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ अपील केवल राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 (NIA Act) की धारा 21 के तहत हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष ही की जा सकती है।
उत्तराखंड पुलिस के अनुसार, अब्दुल मलिक इस साल फरवरी में भड़की हिंसा का मास्टरमाइंड है, जब राज्य सरकार ने धर्म के नाम पर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे के खिलाफ कार्रवाई की थी। परिणामस्वरूप हुई हिंसा में पांच लोगों की जान चली गई और हल्द्वानी हिंसा में लगभग 69 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक भी शामिल है।
आवेदक/अब्दुल मलिक पर भारतीय दंड संहिता, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से बचाव अधिनियम, 1984 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1976 (UAPA Act) के कई प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया। उन्होंने इन अपराधों के संबंध में सेशन कोर्ट से जमानत मांगी, जिसे हल्द्वानी के एडिशनल सेशन जज ने खारिज कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट की नियमित पीठ के समक्ष अपील पेश की गई।
मामले की योग्यता पर विचार किए बिना न्यायालय ने सेशन कोर्ट के आदेश के खिलाफ जमानत आवेदन की स्थिरता की जांच की। तर्क आवेदक/मलिक द्वारा यह तर्क दिया गया कि NIA Act की धारा 21 के तहत डिवीजन बेंच के समक्ष जमानत आवेदन पेश नहीं किया जा सकता, क्योंकि जमानत खारिज करने का आदेश NIA Act के तहत गठित 'स्पेशल कोर्ट' द्वारा पारित नहीं किया गया। आवेदक के अनुसार, अपील खंडपीठ के समक्ष तभी की जा सकती है, जब जमानत खारिज करने का आदेश स्पेशल कोर्ट द्वारा पारित किया गया हो, न कि सेशन कोर्ट द्वारा।
इसके विपरीत, राज्य द्वारा यह तर्क दिया गया कि 'स्पेशल कोर्ट' शब्द का अर्थ शाब्दिक व्याख्या नहीं बल्कि उद्देश्यपूर्ण व्याख्या दी जानी चाहिए, जिससे सेशन कोर्ट द्वारा अनुसूची अपराध में जमानत खारिज करने वाले ऐसे आदेशों को NIA Act की धारा 21 के तहत खंडपीठ के समक्ष अपील योग्य बनाया जा सके।
न्यायालय का अवलोकन
राज्य द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों में बल पाते हुए न्यायालय ने कहा कि चूंकि अपराध का संज्ञान सेशन कोर्ट द्वारा लिया गया और जांच राज्य पुलिस द्वारा की गई, न कि एजेंसी द्वारा, इसलिए आवेदक को जमानत देने से इनकार करने वाले सेशन कोर्ट द्वारा पारित आदेश NIA Act की धारा 21 के तहत खंडपीठ के समक्ष अपील योग्य होगा।
न्यायालय ने तर्क दिया,
"NIA Act की धारा 22 उपधारा (3) के तहत विशेष न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाला सेश कोर्ट, NIA Act के अध्याय IV के तहत स्पेशल कोर्ट को प्रदान की गई सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। NIA Act की धारा 21 के तहत स्पेशल कोर्ट के आदेशों के खिलाफ अपील दायर की जाती है। स्पेशल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए सेशन कोर्ट को प्रदान की गई शक्तियों के मद्देनजर, इस न्यायालय का विचार है कि धारा 22(3) के तहत सेशन कोर्ट द्वारा पारित आदेश भी NIA Act की धारा 21 के तहत अपील योग्य होंगे।"
सुप्रीम कोर्ट के आंध्र प्रदेश राज्य के महानिरीक्षक, राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनाम मोहम्मद हुसैन उर्फ सलीम (2014) मामले का संदर्भ दिया गया, जहां न्यायालय ने माना कि राज्य में संप्रभुता और सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अपराधों से उत्पन्न होने वाले अंतरिम आदेशों को NIA Act की धारा 21 के दायरे से बाहर नहीं रखा जाएगा। इसके अलावा, न्यायालय ने जाफर सातिक बनाम राज्य के मामले का भी उल्लेख किया, जहां मद्रास हाईकोर्ट की फुल बेंच ने माना कि सेशन कोर्ट द्वारा धारा 22 उपधारा (3) के तहत जमानत आवेदन खारिज करने का आदेश NIA Act की धारा 21 के तहत अपील योग्य होगा।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,
“इस मामले में आवेदक की जमानत अर्जी को एडिशनल सेशन जज, हल्द्वानी ने 10.05.2024 को खारिज कर दिया। इस न्यायालय का विचार है कि वर्तमान जमानत अर्जी इस न्यायालय के समक्ष स्वीकार्य नहीं है। इसके बजाय, इस न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष NIA Act की धारा 21 के तहत अपील की जाएगी। इसलिए तत्काल जमानत अर्जी स्वीकार्य नहीं है। तदनुसार, जमानत अर्जी स्वीकार्य नहीं होने के कारण खारिज किए जाने योग्य है।”
केस टाइटल: अब्दुल मलिक बनाम उत्तराखंड राज्य, प्रथम जमानत अर्जी नंबर 1382/2024