पतियों पर भरण-पोषण का बोझ डालने के लिए शिक्षित पत्नियां जानबूझकर काम करने से बचती हैं, यह सामान्यीकरण 'अनुचित': उड़ीसा हाईकोर्ट

Update: 2025-09-22 05:44 GMT

उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब तक आय या कमाई की वास्तविक संभावनाओं का स्पष्ट भौतिक प्रमाण न हो, तब तक यह सामान्यीकरण 'अनुचित' होगा कि शिक्षित पत्नियां जानबूझकर काम करने से बचती हैं ताकि अपने पतियों पर भरण-पोषण का बोझ डाल सकें।

जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की पीठ ने एक पति द्वारा उसके विरुद्ध पारित भरण-पोषण आदेश के विरुद्ध दायर पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की:

"इसके अलावा, यह सभी मामलों में सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं हो सकता कि उच्च योग्यता वाली पत्नी जानबूझकर काम करने से बचती है ताकि पति को परेशान करके उस पर भरण-पोषण का बोझ डाल सके, जब तक कि इस आशय का कोई भौतिक प्रमाण न हो, क्योंकि आय और/या कमाई की संभावनाओं के किसी भी प्रमाण के अभाव में यह कहना अनुचित होगा कि पत्नियां अपने पतियों पर बोझ डालने के लिए एक प्रकार की बेकार महिलाएं पैदा कर रही हैं।"

संक्षेप में मामला

वर्तमान याचिका जी. देबेंद्र राव द्वारा दायर की गई, जिसमें उन्होंने बरगढ़ स्थित फैमिली कोर्ट के 2019 के एक आदेश को चुनौती दी, जिसमें उन्हें 2012 से अपनी पत्नी और बेटी को ₹5,000 प्रति माह, यानी कुल ₹10,000 का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

हाईकोर्ट के समक्ष पति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी एमए एलएलबी की योग्यता रखती है, एक शिक्षिका और एलआईसी एजेंट के रूप में कार्यरत है। इसलिए वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। उसने यह भी तर्क दिया कि उसकी अब बालिग बेटी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।

इन दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि जहां CrPC की धारा 125 बच्चों के लिए भरण-पोषण को नाबालिगों तक सीमित करती है (दिव्यांगता के मामलों को छोड़कर), वहीं हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) अविवाहित बेटी को विवाह तक भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार देती है, बशर्ते वह अपना भरण-पोषण स्वयं न कर सके।

इसके अलावा, पति की परित्याग की याचिका पर अदालत ने कहा कि चूंकि उसने पुनर्विवाह कर लिया था, इसलिए पत्नी के पास अलग रहने का वैध कानूनी आधार था।

CrPC की धारा 125(3) का हवाला देते हुए पीठ ने कहा,

"यदि पति ने किसी अन्य महिला से विवाह किया है या रखैल रखता है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इनकार करने का उचित आधार माना जाएगा।"

महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने पाया कि हालांकि पत्नी एक वकील है। हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं था कि उसकी पर्याप्त आय है।

अदालत ने कहा,

"ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति वकील के रूप में पंजीकृत हो। हालांकि, वह कई दिनों, महीनों और वर्षों तक किसी भी पद पर कार्यरत न हो।"

अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आय के प्रमाण के बिना पत्नी के भरण-पोषण के दावे को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

महत्वपूर्ण बात यह है कि पीठ ने याचिकाकर्ता के 2016-2019 के आयकर रिटर्न का भी हवाला दिया, जिससे पता चलता है कि उसके पास अपनी पत्नी और बेटी का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त साधन है।

अदालत ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा पत्नी और बेटी को ₹5,000-₹5,000 का दिया गया भरण-पोषण भत्ता न तो बहुत ज़्यादा था और न ही अत्यधिक।

तदनुसार, फैमिली कोर्ट के आदेश के विरुद्ध पति की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई।

Case title - G.Debendra Rao vs. G.Puspa Prabha Rao & another

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