आरोपी के गवाह को बुलाने का आवेदन खारिज करने वाला ट्रायल कोर्ट का आदेश अंतरिम नहीं, आरोपी को पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार: त्रिपुरा हाइकोर्ट

Update: 2024-06-12 06:54 GMT

त्रिपुरा हाइकोर्ट ने माना कि गवाहों को बुलाने का आरोपी का आवेदन खारिज करने वाला ट्रायल कोर्ट का आदेश अंतिम आदेश है, न कि मध्यवर्ती आदेश', जो आरोपी को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 397 के तहत पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार देता है।

आरोपी/याचिकाकर्ता ने 07.03.2024 को दो गवाहों को समन जारी करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया, क्योंकि 24.01.2024 को गवाहों की सूची दाखिल करने के समय बचाव पक्ष ने दो गवाहों के नाम प्रस्तुत नहीं किए। आरोपी/याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ आपराधिक पुनर्विचार याचिका दायर की।

राज्य/प्रतिवादी ने याचिका की स्थिरता का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आरोपी के दावे को खारिज करने वाला ट्रायल कोर्ट का आदेश अंतरिम आदेश है। इसलिए सीआरपीसी की धारा 397 के मद्देनजर ऐसे अंतरिम आदेश के खिलाफ कोई पुनर्विचार नहीं हो सकता। जबकि आरोपी/याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट के आदेश ने याचिकाकर्ता के अपने बचाव को पुख्ता करने के अधिकार को नुकसान पहुंचाया है। चूंकि आदेश याचिकाकर्ता के अधिकार को प्रभावित करता है इसलिए यह अंतरिम आदेश नहीं है।

जस्टिस विश्वजीत पालित की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 233 पर गौर किया, जो आरोपी द्वारा आवेदन करने पर ट्रायल कोर्ट द्वारा किसी भी गवाह को उपस्थित होने के लिए बाध्य करने का प्रावधान करती है। प्रावधान के तहत अभियुक्त का आवेदन खारिज किया जा सकता है। यदि न्यायालय पाता है कि यह परेशान करने या देरी करने या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के उद्देश्य से किया गया।

वर्तमान मामले में हाइकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त के आवेदन को केवल इस आधार पर खारिज किया कि 24.01.2024 को गवाहों की सूची दाखिल करते समय गवाहों के नाम सूचीबद्ध नहीं थे।

इसने कहा,  

“जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि याचिका न्याय के उद्देश्यों को विफल करने या परेशान करने के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई, ट्रायल कोर्ट नए गवाहों को बुलाने के लिए अभियुक्त की याचिका पर विचार करने के लिए बाध्य है।"

इस सवाल पर कि क्या ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश एक अंतरिम आदेश है हाइकोर्ट ने माना कि यह अंतरिम आदेश नहीं बल्कि अंतिम आदेश है।

इसने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश से, “अभियुक्त के आगे सबूत पेश करने के अधिकार को अंतिम रूप से बंद कर दिया गया है।” इसलिए अभियुक्त/याचिकाकर्ता धारा 397 सीआरपीसी के तहत एक पुनरीक्षण याचिका पेश करने का हकदार है।

न्यायालय ने टिप्पणी की:

“अभियुक्त याचिकाकर्ता का यह कर्तव्य है कि वह निचली अदालत के समक्ष प्रस्तुत करते समय गवाहों की विस्तृत सूची प्रस्तुत करे मेरे विचार से इस मामले के उचित निर्णय के लिए याचिकाकर्ता को उसकी याचिका में उल्लिखित गवाहों को समन जारी करने के लिए कदम उठाने का अवसर दिया जाना चाहिए।”

हाईकोर्ट ने अभियुक्त द्वारा लागत का भुगतान करने के पश्चात दोनों गवाहों को समन जारी करने का निर्देश ट्रायल कोर्ट को दिया।

केस टाइटल- अर्जुन देबबर्मा बनाम त्रिपुरा राज्य, सीआरएल. रेव. पी. संख्या 21/2024

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