एकनाथ शिंदे गुट को अयोग्य ठहराने से महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर के इनकार को चुनौती देते हुए उद्धव सेना ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता देने और संविधान की दसवीं अनुसूची के अनुसार दलबदल के लिए शिंदे गुट के सदस्यों को अयोग्य ठहराने से इनकार करने के महाराष्ट्र स्पीकर के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
10 जनवरी को स्पीकर राहुल नार्वेकर ने एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करने वाली उद्धव गुट की याचिकाओं को खारिज करते हुए फैसला सुनाया। स्पीकर ने उद्धव गुट के खिलाफ शिंदे गुट द्वारा दायर अयोग्यता याचिकाओं को भी खारिज कर दिया।
संबंधित घटनाक्रम में शिंदे सेना ने उद्धव समूह के सदस्यों को अयोग्य ठहराने के स्पीकर के फैसले को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
स्पीकर ने कहा कि जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट के पास 55 में से 37 विधायकों का भारी बहुमत था और शिंदे को वैध रूप से पार्टी के नेता के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने कहा कि उस समय "पार्टी पक्षप्रमुख" उद्धव की इच्छा को राजनीतिक दल की इच्छा नहीं कहा जा सकता। यह अंतर-पार्टी असहमति को सक्षम करने के लिए है।
उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को पार्टी नेता पद से हटाने की कोई शक्ति नहीं है।
उद्धव ठाकरे गुट द्वारा दायर याचिकाओं पर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के 40 सदस्यों को अयोग्य ठहराने से इनकार करते हुए स्पीकर ने तर्क दिया कि सुनील प्रभु 21 जून को पार्टी के अधिकृत सचेतक नहीं रह गए थे और उन्हें पार्टी की बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं था।
इसलिए शिंदे-गुट के विधायकों को उक्त व्हिप का उल्लंघन करने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। स्पीकर ने आगे कहा कि शिंदे गुट का बैठक में शामिल नहीं होना ज्यादा से ज्यादा पार्टी के भीतर असहमति का कृत्य कहा जा सकता है और इसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता द्वारा संरक्षित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में स्पीकर के लिए संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए 31 दिसंबर, 2023 की समय-सीमा तय की थी; अदालत ने बाद में समय-सीमा 10 जनवरी, 2024 तक बढ़ा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में स्पीकर की देरी पर कड़ा असंतोष व्यक्त किया और कहा,
"इस अदालत के फैसले की गरिमा बनाए रखी जानी चाहिए।"