UAPA | 'वटाली' का फैसला, लंबे समय से हिरासत में बंद विचाराधीन कैदी को जमानत देने से इनकार करने का उदाहरण नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-07-19 06:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA Act) के तहत आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि NIA बनाम जहूर अहमद शाह वटाली के मामले में दिए गए फैसले को UAPA मामलों में जमानत देने से इनकार करने के उदाहरण के तौर पर नहीं उद्धृत किया जा सकता, जहां आरोपी ने लंबे समय तक कारावास भोगा है।

कोर्ट ने कहा कि वटाली मामले में हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत को मामले के विशिष्ट तथ्यों के कारण खारिज किया, जिसमें हाईकोर्ट ने जमानत देने के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के प्रथम दृष्टया निष्कर्षों को पलटने के लिए एक छोटा ट्रायल किया।

वर्तमान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदी की नौ साल की हिरासत और ट्रायल की धीमी गति को ध्यान में रखते हुए के.ए. नजीब मामले में मिसाल के तौर पर आरोपी को जमानत देने का फैसला किया।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज किया, जिसमें अपीलकर्ता को जमानत देने से इनकार किया गया था।

अदालत ने कहा,

“हम जहूर अहमद शाह वटाली (सुप्रा) के मामले में के.ए. नजीब (सुप्रा) में दिए गए तर्क से सम्मानपूर्वक सहमत हैं। इस निर्णय यानी जहूर अहमद शाह वटाली (सुप्रा) को उस संदर्भ में पढ़ा और समझा जाना चाहिए, जिसमें इसे दिया गया, न कि आपराधिक मुकदमे के अंत की ओर न देखते हुए लंबे समय तक कारावास में रहने वाले विचाराधीन आरोपी को जमानत देने से इनकार करने के लिए एक मिसाल के तौर पर।”

अदालत ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम के.ए. नजीब के मामले पर भरोसा किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि UAPA Act के तहत जमानत पर वैधानिक प्रतिबंध संवैधानिक अधिकारों पर हावी नहीं होने चाहिए। अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरोपों की गंभीरता एक प्रासंगिक विचार है, लेकिन विचाराधीन कैदी की लंबी हिरासत और समय पर सुनवाई पूरी होने की संभावना नहीं होना जमानत देने के लिए वैध आधार हैं।

न्यायालय ने के.ए. नजीब मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा वटाली मामले में दिए गए निर्णय पर अपनी सहमति व्यक्त की। के.ए. नजीब मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने वटाली मामले में दिए गए निर्णय से अलग राय रखते हुए कहा था कि उस मामले में जमानत केवल इसलिए रद्द की गई, क्योंकि हाईकोर्ट ने जमानत देते समय वस्तुतः छोटा-सा ट्रायल किया था और कुछ ऐसे साक्ष्यों की स्वीकार्यता निर्धारित की थी, जो जमानत कार्यवाही के सीमित दायरे से बाहर थे।

वटाली मामले में न्यायालय ने जमानत रद्द की थी, क्योंकि हाईकोर्ट ने UAPA Act की धारा 43डी(5) के तहत प्रथम दृष्टया मूल्यांकन के वैधानिक आदेश से परे जाकर ट्रायल प्रभावित किया था।

केस टाइटल- शेख जावेद इकबाल @ अशफाक अंसारी @ जावेद अंसारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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