सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड दान जब्त करने की याचिका खारिज करने पर पुनर्विचार करने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एडवोकेट डॉ. खेम सिंह भाटी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दिया, जिसमें 2 अगस्त, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा की मांग की गई थी।
इसके तहत 2018 चुनावी बॉन्ड योजना के तहत राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त 16,518 करोड़ रुपये जब्त करने की याचिका को असंवैधानिक ठहराया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए कहा कि न्यायालय को 2 अगस्त के अपने फैसले की समीक्षा करने के लिए कोई अच्छा आधार और कारण नहीं मिला।
पूर्व चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मिश्रा ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता के पास आपराधिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले उपयुक्त मंच या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अगस्त के फैसले में वैकल्पिक उपाय है।
पिछले साल 15 फरवरी को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम UOI में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 चुनावी बॉन्ड योजना और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, कंपनी अधिनियम, 2017 और आयकर अधिनियम, 1961 सहित अन्य कानूनों के प्रावधानों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के विरुद्ध और उल्लंघनकारी माना था।
इसके बाद कॉमन कॉज बनाम अन्य बनाम UOI में डॉ. भाटी द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत चार याचिकाएं दायर की गईं। उक्त याचिका के माध्यम से विशेष जांच दल द्वारा न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग की गई, जिसमें सरकारी कर्मचारियों, राजनीतिक दलों, कंपनी अधिकारियों और अन्य लोगों के बीच क्विड प्रो क्वो व्यवस्था की गई थीजिसका खुलासा आंकड़ों के खुलासे पर हुआ था।
रिट याचिका में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये धनराशि, जिसकी कीमत 16,518 करोड़ रुपये है, महज दान नहीं थे बल्कि ऐसे लेन-देन थे जिनमें क्विड प्रो क्वो शामिल था, जहां राजनीतिक दलों और कॉर्पोरेट दाताओं के बीच कथित तौर पर लाभों का आदान-प्रदान किया गया।
याचिका में विस्तार से बताया गया कि कुल 23 राजनीतिक दलों को 1210 से अधिक दाताओं से इन बांडों के माध्यम से लगभग 12,516 करोड़ रुपये मिले, जिनमें 21 दाताओं ने 100 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान दिया।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने ये विवरण उपलब्ध कराए हैं, जिससे जनता की कीमत पर दानदाताओं को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए योजना के संभावित दुरुपयोग के बारे में सवाल उठते हैं।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया m कि वह केंद्र (प्रतिवादी संख्या 1), ईसीआई (प्रतिवादी संख्या 2) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (प्रतिवादी संख्या 3) को निर्देश दे कि वे शामिल राजनीतिक दलों द्वारा योजना के तहत प्राप्त राशि को जब्त कर लें।
इसके अतिरिक्त, याचिका में प्रमुख राजनीतिक दलों (प्रतिवादी संख्या 4-25) द्वारा दानदाताओं को दिए गए कथित अवैध लाभों की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक्स चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में समिति के गठन की मांग की गई है। वैकल्पिक रूप से यह इन दलों द्वारा दावा किए गए कर छूट का पुनर्मूल्यांकन करने और प्राप्त राशि पर कर ब्याज और दंड लगाने की मांग करता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि क्विड प्रो क्वो व्यवस्था के बारे में एक धारणा बनाई गई थी और कोर्ट से चुनावी बांड की खरीद में एक घूमती हुई जांच शुरू करने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
इसने कहा था,
"इस न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड योजना को शामिल करने वाले वैधानिक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता और विभिन्न क़ानूनों में किए गए परिणामी संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर विचार किया। ऐसे विधायी परिवर्तनों को चुनौती देने का एकमात्र उपाय न्यायिक समीक्षा की शक्ति का आह्वान करना है। दूसरी ओर आपराधिक गलत कामों से जुड़े आरोप एक अलग प्रकृति के होते हैं, जहां संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का सहारा लेना स्वाभाविक नहीं होना चाहिए, खासकर कानून में उपलब्ध उपायों के मद्देनजर।"
केस टाइटल: खेम सिंह भाटी बनाम भारत संघ और अन्य। समीक्षा याचिका (सिविल संख्या /2025 (@ डायरी संख्या 4035/2025)