सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मुद्दे पर दायर जनहित याचिका पर विचार करने से किया इनकार

Update: 2024-07-16 11:39 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने (15 जुलाई को) आवारा कुत्तों के मुद्दे के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की रोकथाम से संबंधित याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश की ओर इशारा किया। उसमें कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मुद्दे से संबंधित याचिकाओं के एक बैच का निपटारा करते हुए कहा कि एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स, 2023 के मद्देनजर अब इस मामले पर संबंधित हाईकोर्ट फैसला कर सकते हैं।

न्यायालय ने 10 मई को अन्य मामलों का निपटारा करते हुए आदेश दिया,

"सभी घटनाक्रमों और विशेष रूप से पशुओं, विशेष रूप से कुत्तों को अनावश्यक पीड़ा और कष्ट पंहुचाने से रोकने के लिए नए नियमों के अधिनियमन को ध्यान में रखते हुए हम इस कार्यवाही को बंद करने का इरादा रखते हैं, जिससे प्रत्येक पक्ष को संवैधानिक न्यायालयों, संबंधित क्षेत्राधिकार वाले अन्य मंचों के समक्ष कानून के अनुसार अपने उपचारों को आगे बढ़ाने के लिए खुला छोड़ दिया जा सके।"

याचिकाकर्ता-इन-पर्सन, सबू स्टीफन ने दलील दी,

लोगों की सुरक्षा सर्वोच्च कानून होगी। मेरे भाई और बहनें दो दशकों से अधिक समय से पूरे भारत में आवारा पशुओं की अधिकता के कारण पीड़ित हैं।"

न्यायालय ने याचिकाकर्ता से तुरंत पूछा,

"क्या आपने देखा है कि हमने 2023 के नियमों के आलोक में सभी मामलों को राज्य हाईकोर्ट को सौंप दिया है?"

इसके बाद न्यायालय ने दृढ़ता से पूछा कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटा सकता और कहा,

"इस न्यायालय में क्यों आना है? स्थानीय परिस्थितियाँ, क्षेत्र, सब कुछ हाईकोर्ट बेहतर जानता है। हाईकोर्ट इससे क्यों नहीं निपट सकता?”

पंचायत राज और वित्त मंत्रालय सहित सात मंत्रालयों को पक्षकार बनाए जाने पर गौर करते हुए जस्टिस बिंदल ने टिप्पणी की,

“क्या भारत संघ में कोई मंत्रालय बचा है? राज्य इस मामले में पक्षकार भी नहीं है?”

हालांकि याचिकाकर्ता ने दलील दी,

“हमारे प्रियजनों के साथ यह सब गलत हो रहा है? हम क्या करेंगे, प्रभु? हम कहाँ जा सकते हैं? इसका अंतिम समाधान भारत भर में इस माननीय न्यायालय के पास है?”

इसके बावजूद पीठ ने मामले पर विचार करने से इनकार किया और याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल- साबू स्टीफन बनाम भारत संघ

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