सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के डीजीपी संजय कुंडू को हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई

Update: 2024-01-03 09:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी) को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी। उक्त आदेश में हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के पुलिस जनरल डायरेक्टर (डीजीपी) को उनके पद से हटा दिया था। न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा कुंडू को डीजीपी के पद से ट्रांसफर करने और उन्हें आयुष विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में तैनात करने के आदेश पर भी रोक लगा दी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कुंडू को आदेश वापस लेने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की भी छूट दी। स्थगन आदेश रिकॉल आवेदन के निपटारे तक प्रभावी रहेगा।

पीठ 26 दिसंबर, 2023 को हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अधिकारी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कांगड़ा जिले के निवासी द्वारा पूर्व आईपीएस अधिकारी और प्रैक्टिसिंग वकील द्वारा उसके जीवन को खतरे में डालने की शिकायत पर शुरू की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही में सुनवाई की गई थी।

हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस एम.एस.रामचंद्र राव और जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने "निष्पक्ष तरीके से जांच नहीं होने की संभावना" को ध्यान में रखते हुए डीजीपी के मौजूदा पद से स्थानांतरण का आदेश दिया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि हाईकोर्ट ने उन्हें सुने बिना ही आदेश पारित कर दिया। यह दावा करते हुए कि याचिकाकर्ता की अब तक बेदाग सेवा रही है, रोहतगी ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश से याचिकाकर्ता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो सेवानिवृत्ति के कगार पर है।

प्रतिवादी के वकील ने कहा कि डीजीपी ने शिकायतकर्ता को 15 मौकों पर बुलाया। इसके बाद डीजीपी द्वारा प्रतिवादी के खिलाफ आईपीसी की धारा 211, 469,499 और 500 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

उन्होंने आगे तर्क दिया कि "जांच और स्टेटस रिपोर्ट जो आदेश में पढ़ी गई, उससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि गंभीर हेरफेर हुआ... पुलिस कुछ नहीं कर रही है, मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा है।"

रोहतगी ने बताया कि उक्त 15 मिस्ड कॉल कार्यालय के लैंडलाइन से किए गए, न कि डीजीपी के निजी मोबाइल से। उन्होंने कहा कि अगर जांच सीबीआई को ट्रांसफर की जाती है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है।

पीठ को यह भी सूचित किया गया कि प्रतिवादी द्वारा दायर दो एफआईआर में कहीं भी याचिकाकर्ता को आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सीनियर आईपीएस अधिकारी को सुने बिना अपना निर्णय दिया।

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