सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा से निष्कासन के खिलाफ महुआ मोइत्रा की याचिका पर लोकसभा सचिवालय से जवाब मांगा

Update: 2024-01-03 10:14 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी) को लोकसभा के महासचिव से अनैतिक आचरण के आरोप में लोकसभा से उनके हालिया निष्कासन को चुनौती देने वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेता महुआ मोइत्रा की रिट याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने लोकसभा के महासचिव को नोटिस जारी करते हुए कहा कि इनमें से मुद्दा लोकसभा की कार्रवाई की समीक्षा करने का न्यायालय का अधिकार क्षेत्र होगा। जवाब तीन सप्ताह के भीतर दाखिल करना होगा और याचिकाकर्ता को उसके बाद तीन सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर, यदि कोई हो, दाखिल करना होगा।

यह मामला 11 मार्च, 2024 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाएगा।

खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी की उस प्रार्थना को भी खारिज कर दिया, जिसमें अंतरिम उपाय के रूप में मोइत्रा को लोकसभा की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति देने की मांग की गई थी।

जस्टिस खन्ना ने कहा,

"नहीं, नहीं, यह वास्तव में आपकी रिट याचिका को अनुमति देना होगा। जब हम स्वयं अपनी जांच की सीमा को लेकर संदेह में हैं..."

खंडपीठ ने कहा कि वह फिलहाल अंतरिम राहत के आवेदन पर कुछ भी व्यक्त नहीं कर रही है।

पूर्व संसद सदस्य (सांसद), जिन्होंने पश्चिम बंगाल में कृष्णानगर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया, उनको 8 दिसंबर को एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट को अपनाने के बाद निष्कासन का सामना करना पड़ा, जिसमें उनके खिलाफ कैश-फॉर-क्वेरी के आरोपों पर अनैतिक आचरण का आरोप लगाया गया।

सिंघवी ने तर्क दिया कि एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट में मोइत्रा के खिलाफ एकमात्र ठोस निष्कर्ष यह है कि उन्होंने अनधिकृत रूप से अपने एमपी पोर्टल की लॉग-इन क्रेडेंशियल तीसरे पक्ष के साथ शेयर की। उन्होंने तर्क दिया कि लॉग-इन क्रेडेंशियल शेयर करने पर रोक लगाने वाला कोई नियम नहीं है।

सिंघवी ने तर्क दिया कि यह कई सांसदों द्वारा अपनाई जाने वाली मानक प्रथा है, जो प्रश्न अपलोड करने के लिए अपना काम सचिवों और सहायकों को सौंपते हैं।

सिंघवी ने कहा,

"क्या कोई सांसद अपना काम नहीं सौंप सकता? कल्पना कीजिए कि हीरानंदानी एक मिनट के लिए उनके सहायक हैं। अब आप कह सकते हैं कि वह उनके सहायक नहीं हैं..."

पीठ ने सिंघवी से पूछा,

"तो क्या आप स्वीकार करते हैं कि आपने हीरानंदानी से ओटीपी शेयर किया था?"

सिंघवी ने जवाब दिया,

"जैसा कि हर सांसद कई सचिवों या लोगों के साथ करता है, जिन्हें वे काम सौंपते हैं...।"

सीनियर वकील ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगाया, क्योंकि दर्शन हीरानंदानी, जिन्होंने मोइत्रा के खिलाफ आरोप लगाने वाली एथिक्स कमेटी के समक्ष हलफनामा दायर किया था, उनको क्रॉस एक्जामिनेशन की अनुमति नहीं दी गई। उन्होंने तर्क दिया कि ऐसे 'मामूली आधार' पर विपक्षी सांसदों का निष्कासन गंभीर संवैधानिक महत्व का मामला है।

लोकतंत्र पर ऐसे निष्कासन के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में चिंता जताते हुए उन्होंने कहा,

"यदि आप हर अनियमितता को उठाते हैं और लोगों को निष्कासित करना शुरू कर देते हैं तो लोकतंत्र का कोई सवाल ही नहीं है।"

यह तर्क देने के लिए राजा रामपाल मामले पर भरोसा किया गया कि सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट रूप से लोकसभा की दुर्भावनापूर्ण कार्रवाइयों में हस्तक्षेप कर सकता है।

लोकसभा महासचिव की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत विधायिका के आंतरिक कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

उन्होंने कहा,

"राज्य का संप्रभु अंग अपने आंतरिक अनुशासन का निर्णय ले रहा है। न्यायिक पुनर्विचार का दायरा क्या है, यदि है भी?"

सॉलिसिटर-जनरल ने तर्क देते हुए कहा कि अदालत का हस्तक्षेप शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।

मोइत्रा के खिलाफ शिकायत करने वाले सांसद निशिकांत दुबे की ओर से सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह और एडवोकेट अभिमन्यु भंडारी पेश हुए।

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