सुप्रीम कोर्ट ने 32 सप्ताह की प्रेग्नेंसी को अबोर्ट कराने की विधवा की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (31 जनवरी) को महिला को 32 सप्ताह से अधिक की प्रेग्नोंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति देने से इनकार किया।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने यह देखते हुए कि मेडिकल बोर्ड ने प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने के खिलाफ राय देत हुए महिला की याचिका खारिज की।
खंडपीठ ने सुझाव दिया कि महिला चाहे तो बच्चे को गोद दे सकती है।
महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने उसकी याचिका खारिज कर दी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 5 जनवरी को महिला को प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति दी थी, जो उस समय 29 सप्ताह की थी। कोर्ट ने उक्त अनुमति इस तथ्य पर विचार करते हुए दी थी कि वह अपने पति की मृत्यु के बाद अत्यधिक आघात से पीड़ित थी। बाद में केंद्र सरकार ने आवेदन दायर कर आदेश वापस लेने की मांग की। इसमें कहा गया कि बच्चे के जीवित रहने का उचित मौका है और अदालत को अजन्मे शिशु के जीवन के अधिकार की रक्षा पर विचार करना चाहिए।
एम्स ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि अगर बच्चे को प्रेग्नेंसी के 34 सप्ताह या उससे अधिक समय में जन्म दिया जाए तो परिणाम बेहतर होंगे। इसमें यह भी कहा गया कि यह सलाह दी जाती है कि मां और नाबालिग के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए प्रेग्नेंसी को अगले दो या तीन सप्ताह तक जारी रखा जाए।
केंद्र सरकार के रिकॉल आवेदन और एम्स के रुख पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने 23 जनवरी को पहला आदेश वापस ले लिया, जिसने प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति दी थी।