BREAKING| सुप्रीम कोर्ट का जीएन साईबाबा और 5 अन्य को बरी करने के फैसले पर रोक लगाने से इनकार, कहा- हाईकोर्ट का फैसला तर्क-संगत

Update: 2024-03-11 08:22 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 मार्च) को बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार किया। हाईकोर्ट ने कथित माओवादी संबंधों को लेकर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 (UAPA Act) के तहत मामले में प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को बरी कर दिया।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रथम दृष्टया कहा कि हाईकोर्ट का निर्णय "बहुत अच्छी तरह से तर्कपूर्ण" है।

खंडपीठ ने बताया कि जीएन साईबाबा और अन्य को हाईकोर्ट की दो अलग-अलग पीठों ने दो बार बरी कर दिया था।

उल्लेखनीय है कि 2022 में हाईकोर्ट ने उन्हें इस आधार पर बरी किया कि UAPA Act के तहत वैध मंजूरी प्राप्त नहीं की गई। पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और मामले को अलग पीठ द्वारा नए सिरे से विचार करने के लिए वापस हाईकोर्ट में भेज दिया। पिछले हफ्ते, हाईकोर्ट ने उन्हें योग्यता के आधार पर भी बरी किया, यह पाते हुए कि आरोपियों को किसी आतंकवादी कृत्य से जोड़ने के लिए कोई सबूत नहीं है और राज्य पुलिस ने उनसे जो बरामदगी करने का दावा किया, उस पर संदेह जताया।

खंडपीठ ने महाराष्ट्र राज्य की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा कि बरी होने के बाद निर्दोषता की धारणा अधिक बल के साथ काम करती है। खंडपीठ ने कहा कि सामान्य स्थिति में तो एसएलपी स्वीकार ही नहीं की जाती।

जस्टिस गवई ने कहा,

"दो अलग-अलग पीठों द्वारा बरी करने के दो आदेश हैं। प्रथम दृष्टया, हम पाते हैं कि निर्णय बहुत तर्कसंगत है।"

जस्टिस संदीप मेहता ने कहा,

"यह बड़ी मुश्किल से बरी किया गया मामला है। उस व्यक्ति ने जेल में कितने साल बिताए हैं?"

जस्टिस गवई ने कहा,

"कानून यह है कि निर्दोष होने का अनुमान है। एक बार जब बरी करने का आदेश आ जाता है तो यह अनुमान मजबूत हो जाता है।"

जब मामला उठाया गया तो एएसजी ने यह कहते हुए एक और तारीख का अनुरोध किया कि कुछ अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की आवश्यकता है। खंडपीठ ने कहा कि वह अपील करने की इजाजत दे सकती है। हालांकि एएसजी ने शीघ्र तारीख का अनुरोध किया, लेकिन खंडपीठ ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि "बरी करने के फैसले को पलटने की कोई जल्दी नहीं है"।

हालांकि, एएसजी ने फैसले पर रोक लगाने के लिए कोई तर्क नहीं दिया, लेकिन खंडपीठ ने यह देखने के बाद कि एसएलपी के पास रोक के लिए आवेदन था, इसे खारिज कर दिया।

खंडपीठ ने आदेश में कहा,

''एएसजी ने रोक लगाने के लिए दबाव नहीं डाला, क्योंकि अपील ज्ञापन में एक प्रार्थना है, हम इसे खारिज करने के इच्छुक हैं।''

खंडपीठ ने इसके साथ ही राज्य को अपील करने की इजाजत भी दे दी।

केस टाइटल- महाराष्ट्र राज्य बनाम महेश करीमन तिर्की और अन्य। | डायरी नंबर 10501/2024

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