याचिकाकर्ता और वकीलों ने हाईकोर्ट जज के दबाव में याचिका वापस लेने का लगाया था आरोप, सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी किया

Update: 2024-03-19 03:14 GMT

Supreme Court

आपराधिक अपील में जहां याचिकाकर्ताओं/आरोपी व्यक्तियों ने तर्क दिया कि राजस्थान हाईकोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ द्वारा उन पर सीआरपीसी की धारा 482 याचिका वापस लेने के लिए "दबाव" डाला गया था, सुप्रीम कोर्ट ने (15 मार्च को) न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत कार्यवाही के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया।

जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इन कथनों को "अवमाननापूर्ण" करार दिया।

खंडपीठ ने कहा,

“यह कहा गया कि हाईकोर्ट के जज के दबाव के कारण याचिकाकर्ताओं के पास कोई अन्य विकल्प नहीं होने के कारण सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर ऐसी याचिका वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। हमारे विचार में इस तरह के कथन प्रकृति में अवमाननापूर्ण हैं।

हाईकोर्ट ने हाल ही में 15 फरवरी को याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 482 याचिका रद्द की।

अपने आक्षेपित आदेश में हाईकोर्ट ने दर्ज किया:

“याचिकाकर्ता के वकील इस आपराधिक विविध याचिका को वापस लेना चाहते हैं। नतीजतन, वर्तमान आपराधिक विविध याचिका वापस ली हुई मानते हुए खारिज की जाती है।”

इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की गई और दावा किया गया कि हाईकोर्ट जज के दबाव के कारण उनके पास अपनी याचिका वापस लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने एम. वाई. शरीफ और अन्य बनाम नागपुर हाईकोर्ट के माननीय जज और अन्य मामले में संविधान पीठ के फैसले पर भरोसा जताया। उसमें यह माना गया कि जो वकील किसी अवमाननापूर्ण टिप्पणी पर अपने हस्ताक्षर करता है, वह भी न्यायालय की अवमानना करने के लिए समान रूप से दोषी है।

यह देखते हुए न्यायालय ने न केवल याचिकाकर्ताओं में से एक (वीरेंद्र यादव), जिन्होंने हलफनामे की सामग्री की पुष्टि की, बल्कि वर्तमान एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड को भी उपर्युक्त नोटिस जारी किया।

इसके अलावा कोर्ट ने यह भी दर्ज किया कि याचिकाकर्ता के वकील लगातार व्यवधान डालकर कामकाज में बाधा डाल रहे थे। इसके अलावा, जब आदेश पारित किया गया तो वकील ने भी तत्काल न्यायालय के आदेश के लिए "आश्चर्य प्रदर्शित करना शुरू कर दिया"।

इस आचरण को देखते हुए कोर्ट ने उन्हें नोटिस भी जारी किया।

कहा गया,

“जबकि हम मिस्टर आर.के. को आदेश दे रहे हैं। वकील राठौड़ ने बीच-बीच में व्यवधान डालकर कामकाज में बाधा डालने की कोशिश की। आदेश पारित होने के बाद भी उन्होंने हमारे द्वारा पारित आदेश पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए इशारे करना शुरू कर दिया है। मिस्टर आर.के.राठौर को भी नोटिस जारी करें।”

केस टाइटल: सुमन बनाम राजस्थान राज्य, डायरी नंबर- 10189 - 2024

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