सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया, भविष्य में तुच्छ याचिकाएं दाखिल करने के खिलाफ चेतावनी दी

Update: 2024-04-25 05:53 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारत संघ द्वारा मेघालय हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने पर केंद्र सरकार के खिलाफ 5,00,000/- रुपये का जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट का उक्त फैसला संघ की अपनी रियायत पर आधारित था कि पिछले निर्णय में इस मामले को शामिल किया गया।

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के संघ के कदम की निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया कि यह "कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग" है और संघ को तुच्छ याचिकाएं दायर करने के प्रति आगाह किया।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अपने आदेश में दर्ज किया,

“तदनुसार, विशेष अनुमति याचिकाएं जुर्माने के साथ खारिज की जाती हैं, क्योंकि हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता-भारत संघ के वकील ने प्रस्तुत किया कि मामला पूरी तरह से पिछले निर्णय द्वारा कवर किया गया। तदनुसार, हाईकोर्ट ने भारत संघ के वकील के बयान पर मामले का निपटारा कर दिया था।“

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ताओं को चेतावनी दी जाती है कि वे भविष्य में ऐसी तुच्छ याचिकाएं दायर न करें।"

हाईकोर्ट के समक्ष संघ ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। इसी तरह के मामले में, जहां संघ ने ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी थी, हाईकोर्ट ने (14 मार्च, 2022 को) इस आधार पर अपील खारिज कर दी थी कि ट्रिब्यूनल ने पर्याप्त कारण दिए। इसके अलावा, न्यायालय ने भारत संघ बनाम एम.एन.रामचंद्र राव, 2012 के डब्ल्यूपी नंबर 45591 मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दी गई कानूनी स्थिति पर भी गौर किया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की।

इस प्रकार, जब वर्तमान मामला हाईकोर्ट के समक्ष (04 अप्रैल, 2022 को) आया तो संघ ने प्रस्तुत किया कि 14 मार्च के आदेश के मद्देनजर इसका निपटारा किया जा सकता है।

इससे सहमत होते हुए न्यायालय ने दर्ज किया:

“इस तरह के निष्पक्ष प्रस्तुतिकरण के मद्देनजर, चूंकि पिछली रिट याचिका को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित प्रासंगिक आदेश में हस्तक्षेप किए बिना निपटाया गया, वही आदेश यहां पारित किया गया। यह भी स्पष्ट किया गया कि 14 मार्च, 2022 के आदेश को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादी जिस राहत का हकदार होगा, वह कर्नाटक के फैसले में बताई गई कानूनी स्थिति तक ही सीमित होगी, उससे आगे नहीं।

अब इस आदेश के खिलाफ संघ ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संघ के पास इस विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से उपरोक्त आदेश को चुनौती देने का कोई आधार नहीं है।

कोर्ट ने कहा,

“हमने 14 मार्च, 2022 के आदेश का आगे अध्ययन किया और पाया कि वर्तमान मामले का निपटारा 14 मार्च, 2022 के आदेश के अनुसार ही किया गया। भारत संघ के पास इस विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से उक्त आदेश को चुनौती देने का कोई अवसर या औचित्य नहीं था।”

इस प्रकार, उपरोक्त जुर्माना लगाने के बाद न्यायालय ने इसे आठ सप्ताह के भीतर सशस्त्र बल युद्ध हताहत कल्याण कोष में जमा करने का निर्देश दिया। इसके एक सप्ताह बाद संघ को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में ऐसी जमा राशि का प्रमाण दाखिल करना आवश्यक है।

याचिकाकर्ता की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी पेश हुए। एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अविजीत रॉय ने उत्तरदाताओं का प्रतिनिधित्व किया।

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