सुप्रीम कोर्ट ने 'राम' शीर्षक कविता के मामले में कवि को अग्रिम जमानत दी

Update: 2024-07-22 05:22 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हिंदू भगवान श्री राम और देवी सीता पर अपनी कविता के माध्यम से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और सांप्रदायिक विवाद पैदा करने के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत याचिका मंजूर की।

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता-आरोपी जांच में सहयोग कर रहा है।

संक्षेप में मामला

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153A/295/295A/416/420 के तहत 23 जनवरी, 2024 को एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि अपनी असली पहचान छिपाते हुए याचिकाकर्ता - मुस्लिम - ने 'नीलाभ सौरव' नाम से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'फेसबुक' पर अकाउंट बनाया और उस पर कविता पोस्ट की। उक्त कविता में हिंदू भगवान राम और देवी सीता पर अश्लील शब्द लिखे गए थे।

गिरफ्तारी की आशंका के चलते याचिकाकर्ता ने गुवाहाटी हाईकोर्ट का रुख किया और दलील दी कि उसका किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था और उसने किसी समुदाय का जिक्र भी नहीं किया। उसने आगे दावा किया कि सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डालने वाली कविता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उसके अधिकार का वैध प्रयोग थी।

याचिकाकर्ता के वकील और राज्य पीपी की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने जांच जारी रहने की बात कहते हुए गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार किया। इसके अलावा, न्यायालय का यह भी मानना ​​था कि याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ 'अपरिहार्य' है।

केस डायरी के अवलोकन के बाद न्यायालय ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता घटना की तारीख से ही फरार है और अगर उसे अग्रिम जमानत दी जाती है तो वह जांच में बाधा डाल सकता है और/या गवाहों से छेड़छाड़ कर सकता है।

हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उसका मामला यह था कि हिरासत में पूछताछ की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसने स्वीकार किया है कि उसने 'राम' शीर्षक वाली कविता लिखी है। यह दावा किया गया कि जब उन्हें एहसास हुआ कि कुछ लोगों को उनकी पोस्ट का संदर्भ पसंद नहीं आया तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगी और विषयगत पोस्ट हटा दी। ऐसा करते हुए उन्होंने भगवान राम और राष्ट्र की परंपरा के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान की घोषणा की।

याचिकाकर्ता ने आगे दावा किया कि वह प्रतिष्ठित कवि हैं, जो 'नीलाभ सौरव' के नाम से लिखने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने शिकायत व्यक्त की कि हाईकोर्ट ने इस तथ्य की सराहना नहीं की कि कविता के पीछे उनका इरादा गरीब दिहाड़ी/मामूली श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली कठिनाइयों को दर्शाना था।

कविता का हवाला देते हुए उन्होंने याचिका में बताया कि 'राम' और 'सीता' नामों का इस्तेमाल इसलिए किया गया, क्योंकि वे देश में 'जैविक' और 'लोकप्रिय' हैं। इसके अलावा, सामाजिक कठिनाइयों का सामना करने वाले श्रमिकों के व्यापक स्पेक्ट्रम का प्रतिनिधित्व करते हैं।

15 मार्च को याचिका पर नोटिस जारी किया गया, जब जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को इस शर्त पर गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण भी दिया कि वह जांच में सहयोग करेगा।

केस टाइटल: रकीब उद्दिन अहमद @ नीलाभ सौरव बनाम असम राज्य और अन्य, आपराधिक अपील नंबर 2837/2024

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