सुप्रीम कोर्ट ने UAPA प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वापस लेने की अनुमति दी
याचिकाकर्ताओं के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA Act) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वापस लेने की अनुमति दी।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित हाईकोर्ट से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी।
खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि कुछ याचिकाकर्ताओं को दी गई सुरक्षा के अंतरिम आदेश याचिकाएं वापस लेने के साथ ही समाप्त हो जाएंगे।
सुनवाई की शुरुआत में जब कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने संबंधित हाईकोर्ट से संपर्क करते हुए अंतरिम आदेशों को बढ़ाने का अनुरोध किया तो अदालत ने प्रार्थना खारिज कर दी।
जस्टिस त्रिवेदी ने कहा,
"नहीं, नहीं, नहीं...अंतरिम आदेश तुरंत रद्द कर दिया जाएगा।"
उल्लेखनीय है कि याचिकाओं के इस बैच में नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी कठोर कदम (गिरफ्तारी सहित) नहीं उठाने के लिए अंतरिम निर्देश पारित किए थे।
अन्यथा न्यायालय को समझाने के लिए त्रिपुरा पुलिस द्वारा UAPA Act के तहत गिरफ्तार किए गए दो वकीलों और पत्रकार का प्रतिनिधित्व करते हुए एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड प्रशांत भूषण ने प्रस्तुत किया कि दोनों वकीलों के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उन्होंने त्रिपुरा की स्थिति के बारे में तथ्य-खोज रिपोर्ट की। जबकि पत्रकार को इसलिए आरोपी बनाया, क्योंकि उसने ट्वीट किया, "त्रिपुरा जल रहा है"।
इस पृष्ठभूमि में, UAPA Act के तहत एफआईआर दर्ज की गई और याचिकाकर्ताओं को सीआरपीसी की धारा 41 के तहत नोटिस दिए गए।
उन्होंने बताया कि जब याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो त्रिपुरा में हालात बहुत खराब थे और वे गिरफ्तारी की आशंका को लेकर राज्य अधिकारियों के पास नहीं जा सकते थे। हालांकि, अब याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले सकते हैं और हाईकोर्ट का रुख कर सकते हैं। हालांकि, उन्हें पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा 2 सप्ताह के लिए बढ़ाई जा सकती है, अन्यथा त्रिपुरा जाते ही उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।
जस्टिस त्रिवेदी ने दलील सुनने के बाद कहा,
"आम तौर पर हम अनुच्छेद 32 के तहत सीधे ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं करते...और न ही कोई अंतरिम आदेश देते।"
भूषण ने जोर देकर कहा,
"परिस्थितियों की प्रकृति के अनुसार, मैं प्रार्थना कर रहा हूं..."
जस्टिस त्रिवेदी ने राज्य (एएसजी एसवी राजू द्वारा प्रतिनिधित्व) की ओर मुड़ते हुए कहा,
"हम कोई आदेश पारित नहीं कर रहे हैं, लेकिन कम से कम दो सप्ताह तक कुछ न करें।"
इस समय, भूषण ने प्रार्थना की कि यदि वे किसी कारण से त्रिपुरा जाने में असमर्थ हैं तो न्यायालय याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने की भी अनुमति दे सकता है।
जस्टिस त्रिवेदी ने कहा,
"हम हर चीज का सूक्ष्म प्रबंधन नहीं कर सकते... हाईकोर्ट को फैसला लेने दीजिए कि आपको वीडियो के माध्यम से पेश होने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।"
तदनुसार, याचिकाएं वापस ली गई मानकर खारिज कर दी गईं।
केस टाइटल: अमरीन बनाम पुलिस अधीक्षक | रिट याचिका (आपराधिक) नंबर 88/2022 और संबंधित मामले