अदालत के समक्ष दिया गया बयान अंततः PMLA Act की धारा 50 के तहत दिए गए बयान से ज्यादा मायने रखता है: जस्टिस संजीव खन्ना

Update: 2024-04-16 06:14 GMT

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजीव खन्ना ने सोमवार (15 अप्रैल) को मौखिक रूप से कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 50 के तहत दर्ज आरोपी के बयान की स्वीकार्यता और उसके साक्ष्य मूल्य के बीच अंतर है।

जस्टिस खन्ना ने कहा कि अदालत के समक्ष साक्ष्य अदालत में व्यक्ति द्वारा दिया गया वास्तविक बयान है, न कि PMLA Act की धारा 50 के तहत दिया गया बयान।

जज ने कहा,

PMLA Act की धारा 50 का बयान अदालत के समक्ष साक्ष्य नहीं है।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ AAP विधायक अमानतुल्ला खान द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली वक्फ बोर्ड की भर्ती में कथित अनियमितताओं से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें अग्रिम जमानत देने से दिल्ली हाईकोर्ट के इनकार को चुनौती दी गई।

विवादित आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि "अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला करने के चरण में PMLA Act की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयानों पर विचार करना और सराहना करना प्रासंगिक होगा।"

सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने PMLA Act की धारा 50 के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर आपत्ति व्यक्त की।

उन्होंने कहा,

"निर्णय में कुछ टिप्पणियां हैं, जो मामले के गुण-दोष पर जाती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। धारा 50 के बयानों की विश्वसनीयता के संबंध में (टिप्पणियां) इस स्तर पर आवश्यक नहीं हैं।"

जस्टिस खन्ना ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू को यह तथ्य बताया, जो प्रवर्तन निदेशालय का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

जस्टिस खन्ना ने आगे कहा,

"धारा 50 का बयान साक्ष्य का एक टुकड़ा है। यह न्यायालय के समक्ष साक्ष्य नहीं है। दोनों के बीच एक अंतर है। न्यायालय के समक्ष साक्ष्य अदालत में व्यक्ति द्वारा दिया गया वास्तविक बयान है। मैं यह नहीं कह रहा हूं ( धारा 50 कथन) स्वीकार्य नहीं है। दोनों के बीच अंतर है। यह स्वीकार्य है, जैसे कोई भी दस्तावेज़ स्वीकार्य है, लेकिन अंततः जो बात मायने रखती है, वह है धारा 50 बयान का उपयोग किया जा सकता है।“

PMLA Act की धारा 50 के अनुसार, ED अधिकारी किसी मामले के संबंध में बुलाए गए व्यक्ति से मामले के संबंध में बयान देने की मांग कर सकता है। विजय मदनलाल चौधरी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत गारंटीकृत आत्म-दोषारोपण के खिलाफ अधिकार का उल्लंघन करने के लिए PMLA Act की धारा 50 असंवैधानिक थी। कोर्ट ने माना कि PMLA Act की धारा 50 के तहत ED अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए बयान साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हैं।

अमानतुल्लाह खान की याचिका के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने अंततः उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया और उन्हें जांच के लिए ED के सामने पेश होने को कहा। हालांकि, न्यायालय ने मामले की योग्यता पर दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों के संबंध में अपनी आपत्ति दर्ज की।

केस टाइटल: अमानतुल्ला खान बनाम प्रवर्तन निदेशालय, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 4837/2024

Tags:    

Similar News