SEBI v. Sahara| सुप्रीम कोर्ट ने SEBI से वर्सोवा भूमि के लिए सहारा समूह के प्रस्तावित संयुक्त उद्यम समझौते की जांच करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI) को सहारा समूह के मुंबई में वर्सोवा भूमि के विकास के लिए प्रस्तावित संयुक्त उद्यम समझौते की जांच करने और न्यायालय के समक्ष सीलबंद लिफाफे में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। परियोजना के लिए प्रस्तावित डेवलपर को आज से 15 दिनों के भीतर न्यायालय में 1000 करोड़ रुपये जमा करने का भी आदेश दिया गया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ सहारा समूह की कंपनियों के खिलाफ अवमानना याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी, जो न्यायालय के 2012 के आदेश का उल्लंघन कर रही थीं।
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा की दो कंपनियों को 2008-2011 के बीच उनके डिबेंचर में निवेश करने वाले दो करोड़ से अधिक छोटे निवेशकों को 15% ब्याज के साथ 25,000 करोड़ रुपये (लगभग) वापस करने का आदेश दिया। जमा राशि सेबी के पास जमा करने का निर्देश दिया गया। जब निर्देशित राशि बकाया रही तो सहारा के खिलाफ अवमानना का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की गई।
न्यायालय ने 5 सितंबर, 2024 को सहारा समूह को 15 दिनों के भीतर एक अलग एस्क्रो अकाउंट्स में 1000 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया और नकदी की कमी से जूझ रही कंपनी को अपने ऋणदाताओं को भुगतान किए जाने वाले 10,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाने के लिए मुंबई के वर्सोवा में अपनी संपत्तियों के विकास के लिए संयुक्त उद्यम में प्रवेश करने की अनुमति दी।
पीठ ने यह भी आदेश दिया कि विकास परियोजनाएं न्यायालय द्वारा संयुक्त उद्यम समझौतों की मंजूरी के बाद ही क्रियान्वित की जाएंगी। यदि 15 दिनों के भीतर समझौता दायर नहीं किया जाता है तो वर्सोवा की संपत्ति को 'जैसा है, जहां है' के आधार पर बेचने का आदेश दिया जाएगा।
यह 3 सितंबर, 2024 को अपने पहले के निर्देश के बाद था, जहां न्यायालय ने समूह से कहा कि वह एक योजना पेश करे कि वह Sahara-SEBI रिफंड अकाउंट्स में बकाया राशि कैसे जमा करने की योजना बना रहा है। न्यायालय ने कंपनी से अपनी उन संपत्तियों की सूची भी मांगी है, जिन पर कोई भार नहीं है।
सहारा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि विकास समझौता तैयार है और सीलबंद लिफाफे में न्यायालय में दाखिल किया गया तथा प्रस्तावित बिल्डर ओबेरॉय रियल्टी आरंभिक चरण में 2000 करोड़ रुपए देगा। सहारा समूह और बिल्डर के लिए होल्डिंग अनुपात क्रमशः 25:75 होगा।
बिल्डर का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने किया।
सिब्बल ने यह भी बताया कि दो संपत्तियों में से एक के लिए विकास के लिए तटीय क्षेत्र विनियमन (CRJD) की मंजूरी मिल गई। प्रस्तुतीकरण के अनुसार, परियोजना का विकास 14 वर्षों में किया जाएगा। डेवलपर/बिल्डर इन 14 वर्षों में सहारा को 21000 करोड़ रुपए का नकद भुगतान करेगा।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने स्पष्ट किया,
"यदि हम पाते हैं कि परियोजना में देरी हो रही है तो न्यायालय बिना ब्याज के 1000 करोड़ रुपए लौटा देगा और संयुक्त उद्यम को रद्द कर देगा।"
सिब्बल ने कहा कि वर्तमान वर्वोसा संयुक्त उद्यम ऐसा है, जिसके लिए अनुमोदन की आवश्यकता है, लेकिन कई अन्य संयुक्त उद्यम परियोजनाएं हैं, जिनके लिए ऐसे अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है और जिन्हें आगामी 9 महीनों में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
सिब्बल ने कहा,
"9 महीनों के भीतर 8000 करोड़ की पर्याप्त धनराशि का भुगतान कर दिया जाएगा।"
वर्तमान बिल्डर के अलावा, 'वेलोर' नामक डेवलपर द्वारा एक और प्रस्ताव रखा गया, जिसका प्रतिनिधित्व एडवोकेट मिश्रा ने किया।
हालांकि, वेलोर द्वारा समझौतों की शर्तों को अभी प्रस्तावित किया जाना है और न्यायालय के समक्ष दाखिल किया जाना है। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने आदेश दिया कि सहारा और ओबेरॉय रियल्टी के बीच संयुक्त उद्यम समझौते को SEBI और सीनियर एडवोकेट शेखर नाफड़े (एमिक्स क्यूरी) को सौंप दिया जाए, जो प्रस्ताव की आगे जांच करेंगे।
इसके बाद SEBI का जवाब न्यायालय में सीलबंद लिफाफे में दाखिल किया जा सकता है। प्रस्तावक SEBI की ओर से उपस्थित वकील और सीनियर वकील नाफड़े को प्रस्ताव सौंपेंगे, जो इस न्यायालय में एमिकस क्यूरी के रूप में उपस्थित रहे हैं।
"SEBI अपनी जांच करेगी और प्रस्ताव की जांच करेगी। वे इस न्यायालय में सीलबंद लिफाफे में अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं, जिसकी प्रति प्रस्तावक और SHICL तथा SIRECL की ओर से पेश होने वाले वकीलों को भेजी जाएगी।"
वैलोर को भी न्यायालय के समक्ष अपना प्रस्ताव प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया। ओबेरॉय रियल्टी और वैलोर दोनों को आदेश की तिथि से 15 दिनों के भीतर न्यायालय के समक्ष 1000-1000 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया गया।
"वैलोर द्वारा दायर आवेदनों की प्रति SEBI और मिस्टर नफड़े के साथ-साथ प्रस्तावक/सहारा के लिए एओआर को भी प्रस्तुत की जाएगी। वैलोर द्वारा दिए गए प्रस्ताव की भी SEBI द्वारा जांच की जाएगी। वैलोर ने आज से 15 दिनों की अवधि के भीतर डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से इस न्यायालय में 1000 करोड़ रुपये जमा करने का वचन दिया।"
"ओबेरॉय रियल्टी (प्रस्तावक) द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत डिमांड ड्राफ्ट भी आज से 15 दिनों की अवधि के भीतर न्यायालय में जमा किया जाएगा। उक्त डिमांड ड्राफ्ट को भुनाया नहीं जाएगा।"
केस टाइटल: सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम सुब्रत रॉय सहारा और अन्य और अन्य CONMT.PET.(C) नंबर 001820 - 001822 / 2017 और संबंधित मामले।