अनुच्छेद 300ए के तहत गैर-भारतीय नागरिक को भी संपत्ति का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत प्रदत्त संपत्ति का अधिकार उन लोगों तक भी है, जो भारत के नागरिक नहीं हैं।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा,
“अनुच्छेद 300-ए में व्यक्ति की अभिव्यक्ति न केवल कानूनी या न्यायिक व्यक्ति को कवर करती है, बल्कि ऐसे व्यक्ति को भी शामिल करती है, जो भारत का नागरिक नहीं है। संपत्ति की अभिव्यक्ति का दायरा भी व्यापक है। इसमें न केवल मूर्त या अमूर्त संपत्ति बल्कि संपत्ति के सभी अधिकार, शीर्षक और हित भी शामिल हैं।”
खंडपीठ ने यह टिप्पणी यह निर्णय करते हुए की कि शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत 'शत्रु संपत्ति' को नगरपालिका कानूनों से छूट नहीं है, क्योंकि यह केंद्र सरकार के पास निहित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद ने शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 को देश भर में सभी शत्रु संपत्तियों के संबंध में एकरूपता लाने के लिए कानून बनाया, जिससे अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उन्हें संरक्षित, प्रबंधित और समान रूप से निपटाया जा सके।
अधिनियम के उद्देश्यों और उद्देश्यों पर ध्यान देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 300-ए संपत्ति रखने का संवैधानिक अधिकार न केवल कानूनी या न्यायिक व्यक्ति तक बल्कि उन लोगों तक भी फैला हुआ है, जो भारत के नागरिक नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि यदि संपत्ति का स्वामित्व दुश्मन से कस्टोडियन को हस्तांतरित हो जाता है, जो संपत्ति पर कब्जा कर लेता है। इसका प्रशासन या प्रबंधन करता है। इस तरह स्वामित्व संघ का होगा तो उस स्थिति में वास्तविक मालिक की संपत्ति से वंचित होना होगा, जो शत्रु या शत्रु विषय या शत्रु फर्म हो सकता है, लेकिन संपत्ति का ऐसा अभाव मुआवजे के भुगतान के बिना नहीं हो सकता।
खंडपीठ ने आगे कहा,
“अधिनियम के अनुच्छेद 300-ए के हितकारी सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए हम कस्टोडियन द्वारा प्रशासन के उद्देश्य से शत्रु संपत्ति पर कब्ज़ा करने को वास्तविक मालिक से स्वामित्व के हस्तांतरण के उदाहरण के रूप में नहीं मान सकते हैं।”
केस टाइटल: लखनऊ नगर निगम और अन्य बनाम कोहली ब्रदर्स कलर लैब प्रा. लिमिटेड एवं अन्य, 2024 की सिविल अपील नंबर 2878