लखनऊ के अकबर नगर में तोड़फोड़ अभियान को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
लखनऊ के अकबर नगर में वाणिज्यिक स्थानों के विध्वंस को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को 24 कब्जेदारों की याचिका खारिज कर दी, जिससे लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के लिए कथित तौर पर अवैध प्रतिष्ठानों को ध्वस्त करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद एलडीए ने मंगलवार शाम को अकबर नगर में अयोध्या रोड के किनारे दुकानों और अन्य व्यावसायिक भवनों को निशाना बनाते हुए विध्वंस प्रक्रिया शुरू करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया। बुधवार की सुबह सीनियर एडवोकेट एस मुरलीधर ने जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया और हाईकोर्ट के आदेश पारित करने के तुरंत बाद जिस जल्दबाजी के साथ विध्वंस किया गया, उसके खिलाफ निंदा की।
हालांकि, अदालत ने बताया कि विशेष अनुमति याचिका उसके समक्ष नहीं रखी गई। इसलिए इस पर फिलहाल विचार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस खन्ना ने निर्देश दिया कि याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए पहले रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष लाया जाए। एक बार सूचीबद्ध होने पर मामले को उठाया जाएगा।
इन व्यावसायिक स्थानों पर रहने वालों ने एलडीए के ध्वस्तीकरण आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
हालांकि, जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसे याचिकाकर्ताओं के पक्ष में अपने विवेकाधीन क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं मिला।
अदालत का निर्णय कब्जेदारों को दो समूहों में वर्गीकृत करने पर निर्भर था: करदाता और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) कार्डधारक। अदालत ने कहा कि व्यक्तियों ने खुद को झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के रूप में पेश किया और सटीक जानकारी देने में असफल रहे। अदालत ने स्पष्ट किया कि दस्तावेजों की गहन समीक्षा के बाद यह स्पष्ट हुआ कि न तो याचिकाकर्ता झुग्गीवासी हैं और न ही उनके प्रतिष्ठान निर्दिष्ट झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र में आते हैं।
यह कानूनी लड़ाई दिसंबर की है, जब अकबर नगर के निवासियों ने पहली बार एलडीए के विध्वंस आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एलडीए ने कुकरैल नदी के किनारे और किनारे पर निर्माण का हवाला देते हुए पूरे क्षेत्र को अवैध माना।